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अगर उनकी दासियां इतनी रूपवान हैं... तो राधारानी स्वयं कैसी होंगी

रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंचीं। राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा... और, उनके मुख पर तेज होने कारण सोचा कि ये ही राधाजी हैं और उनके चरण छुने लगीं!

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 24 Aug 2016 11:49 AM (IST)Updated: Wed, 24 Aug 2016 12:13 PM (IST)
अगर उनकी दासियां इतनी रूपवान हैं... तो राधारानी स्वयं कैसी होंगी

एक दिन रुक्मणी ने भोजन के बाद, श्री कृष्ण को दूध पीने को दिया। दूध ज्यादा गरम होने के कारण श्री कृष्ण के हृदय में लगा और उनके श्रीमुख से निकला- " हे राधे ! "

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सुनते ही रुक्मणी बोलीं- प्रभु ! ऐसा क्या है राधा जी में, जो आपकी हर सांस पर उनका ही नाम होता है? मैं भी तो आपसे अपार प्रेम करती हूं... फिर भी, आप हमें नहीं पुकारते !!

श्री कृष्ण ने कहा -देवी ! आप कभी राधा से मिली हैं? और मंद मंद मुस्काने लगे...

अगले दिन रुक्मणी राधाजी से मिलने उनके महल में पहुंचीं। राधाजी के कक्ष के बाहर अत्यंत खूबसूरत स्त्री को देखा... और, उनके मुख पर तेज होने कारण उसने सोचा कि ये ही राधाजी हैं और उनके चरण छुने लगीं!

तभी वो बोली -आप कौन हैं ? तब रुक्मणी ने अपना परिचय दिया और आने का कारण बताया...

तब वो बोली- मैं तो राधा जी की दासी हूं। राधाजी तो सात द्वार के बाद आपको मिलेंगी। रुक्मणी ने सातों द्वार पार किये... और, हर द्वार पर एक से एक सुन्दर और तेजवान दासी को देख सोच रही थी कि अगर उनकी दासियां इतनी रूपवान हैं... तो, राधारानी स्वयं कैसी होंगी?

सोचते हुए राधाजी के कक्ष में पहुंचीं... कक्ष में राधा जी को देखा- अत्यंत रूपवान तेजस्वी जिसका मुख सूर्य से भी तेज चमक रहा था। रुक्मणी सहसा ही उनके चरणों में गिर पड़ीं... पर, ये क्या राधा जी के पूरे शरीर पर तो छाले पड़े हुए हैं!

रुक्मणी ने पूछा- देवी आपके शरीर पे ये छाले कैसे? तब राधा जी ने कहा- देवी! कल आपने कृष्णजी को जो दूध दिया... वो ज्यादा गरम था! जिससे उनके ह्रदय पर छाले पड गए... और, उनके ह्रदय में तो सदैव मेरा ही वास होता है..!!


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