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कैसे हुई थी आचार्य चाणक्य की मृत्यु, आखिर आचार्य चाणक्य के साथ क्या हुआ था

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार आचार्य चाणक्य ने खुद प्राण त्यागे थे या फिर वे किसी षड़यंत्र का शिकार हुए थे यह आज तक साफ नहीं हो पाया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 15 Mar 2017 02:40 PM (IST)Updated: Wed, 05 Jul 2017 11:23 AM (IST)
कैसे हुई थी आचार्य चाणक्य की मृत्यु, आखिर आचार्य चाणक्य के साथ क्या हुआ था
कैसे हुई थी आचार्य चाणक्य की मृत्यु, आखिर आचार्य चाणक्य के साथ क्या हुआ था

आचार्य चाणक्य कहते हैं – “आत्पद्वेषाद् भवेन्मृत्यु: परद्वेषाद् धनक्षय:। राजद्वेषाद् भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषाद कुलक्षय:।।“ अर्थात, चाणक्य कहते हैं कि हमें जीवन में कुछ ऐसे लोगों से कभी भी शत्रुता नहीं रखनी चाहिए जो आगे चलकर हमें भारी नुकसान दे। जैसे कि हमें किसी राजा से या फिर अपने से उच्च पद पर विराजमान व्यक्ति से दुश्मनी नहीं करनी चाहिए। जो लोग शासन से विरोध करते हैं, उनके प्राण संकट में आ सकते हैं। चाणक्य नीतियों का लोग आज भी पालन करते हैं, उन्हें मानते हैं और अपनी लाइफ पर अमल करने की पूरी कोशिश करते हैं।

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आचार्य चाणक्य ने जीवन के हर क्षेत्र में सफल होने के सूत्र बताए हैं। व्यक्ति अपने रिश्तों को कैसे सफल बनाए, संबंधियों के साथ कैसे बना कर रखे इस बारे में भी बताया है आचार्य चाणक्य ने।

आचार्य चाणक्य की इन्हीं सब नीतियों में से हम आपके सामने कुछ खास नीतियां लेकर आए हैं। यूं तो आपने चाणक्य की कई नीतियों के बारे में सुना होगा, पढ़ा भी होगा लेकिन ये नीतियां अनमोल हैं। इन्हें जानने के बाद आपका जीवन मानो सफल ही है।

चाणक्य बताते हैं कि जब तक हम स्वयं मजबूत स्थिति में न हो, तब तक हमें खुद से मजबूत व्यक्ति से बैर नहीं लेना चाहिए। सही समय की प्रतीक्षा करना चाहिए।इसके बाद चाणक्य कहते हैं कि हमें कभी खुद की आत्मा से द्वेष नहीं करना चाहिए। क्योंकि जो भी व्यक्ति ऐसा करता है, उसका अनादर करता है, स्वयं के शरीर का ध्यान नहीं रखता, खान-पान में असावधानी रखता है तो ऐसी स्थिति में व्यक्ति की मृत्यु कभी भी हो सकती है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य स्वयं ही अपना सबसे बड़ा मित्र है और स्वयं ही अपना सबसे बड़ा शत्रु भी हो सकता है।आचार्य चाणक्य कहते हैं कि हमें कभी किसी ब्राह्मण से द्वेष नहीं करना चाहिए। क्योंकि किसी ब्राह्मण या विद्वान व्यक्ति से द्वेष करने पर कुल का ही क्षय हो जाता है।

यदि दुनिया में कोई महान राजनीतिज्ञ कभी हुआ था तो वे थे आचार्य चाणक्य, आचार्य चाणक्य द्वारा बताए गए उसूलों पर चलना चाहते हैं। यह दुनिया उनसे एक सफल इंसान और बुद्धिमान व्यक्तित्व पाने की चाहत रखती है और कई लोग ऐसा करने में सफल भी हो जाते हैं। यदि आप नहीं जानते तो बता दें कि आचार्य चाणक्य मौर्यकाल के महान व्यक्ति थे। दूसरे लफ़्ज़ों में कहें तो यदि आज दुनिया मौर्य काल को याद करती है या फिर वह काल यदि ऐतिहासिक किताबों का हिस्सा बन पाया है तो वह केवल आचार्य चाणक्य की वजह से ही संभव हुआ है। इतिहास की बात करें, तो कुछ जगहों पर कौटिल्य के नाम से विख्यात आचार्य चाणक्य ने ही नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। चन्द्रगुप्त मौर्य को सीख प्रदान की, एक महान राजा बनने के उपदेश दिए और मौर्य समाज के झंडे को स्वतंत्र हवा में लहरा सकने की सक्षमता प्रदान की।आचार्य चाणक्य के जीवन से जुड़ी कई बातें हम जानते हैं।

उनका जन्म, उनके द्वारा अपने जीवन में किए गए महान कार्य जैसे कि अर्थशास्त्र जैसे महान ग्रंथ का लेखन करना, जिसमें उन्होंने जीवन के विभिन्न पहलुओं को हिम्मत से पार कर सकने का ज्ञान प्रदान किया है। आचार्य चाणक्य से जुड़ी कई कहानियां हमने सुनी हैं लेकिन आज भी लोग इस बात से अनजान हैं कि आखिरकार आचार्य चाणक्य की मौत कैसे हुई?यह कोई सामान्य मौत थी या बनी बनाई साजिश? क्योंकि जाहिर है कि जिस स्तर पर आचार्य चाणक्य मौजूद थे, वहीं उनके कई दुश्मन भी मौजूद थे। उनकी मृत्यु को लेकर इतिहास के पन्नों में एक नहीं अनेक कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन कौन सी सच है यह कोई नहीं जानता। परंतु आज हम इसी राज से पर्दा उठाने की कोशिश करने जा रहे हैं।आचार्य चाणक्य की मौत को लेकर इतिहास के पन्नों में से दो कहानियां खोजी गई हैं, लेकिन कौन सी सही है इस सार तक कोई नहीं पहुंच पाया है। महान शोधकर्ता भी आज तक यह जान नहीं पाए कि आखिर आचार्य चाणक्य के साथ क्या हुआ था? उनकी मृत्यु का कारण क्या वे स्वयं थे या कोई और?

जो दो कहानियां प्रचलित हैं उनमें से पहली कहानी के अनुसार शायद आचार्य चाणक्य ने तब तक अन्न और जल का त्याग किया था जब तक मृत्यु नहीं आई। परंतु दूसरे कहानी के अनुसार वे किसी दुश्मन के षड्यंत्र का शिकार हुए थे, जिसकी वजह से उनकी मौत हुई।लेकिन दोनों में से कौन सी कहानी सत्य है इस बात को शोधकर्ता खोज पाने में असमर्थ हैं।

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार एक आम से बालक चंद्रगुप्त मौर्य को आचार्य चाणक्य की सह ने सम्राट बनाया। मौर्य वंश का राजा बनाया, एक बड़ा साम्राज्य उसके हाथों में सौंपा और उसका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से लिखवा दिया।आचार्य चाणक्य की सीख से चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य वंश को एक नया रूप दिया, इस वंश को दुनिया के शक्तिशाली वंश के रूप में प्रकट किया और खुद को एक महान राजा की छवि प्रदान की। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र राजा बिंदुसार ने भी पिता चंद्रगुप्त मौर्य की तरह आचार्य के सिखाए कदमों पर चलना सीखा। चंद्रगुप्त मौर्य की तरह ही आचार्य ने बिंदुसार को भी एक सफल राजा होने का पाठ पढ़ाया।

सब कुछ सही चल रहा था, आचार्य के अनुशासन तले राजा बिंदुसार अपनी प्रजा को पूर्ण रूप से सुखी रखने में सफल थे लेकिन दूसरी ओर कोई था जिसे आचार्य की राजा के प्रति इतनी करीबी पसंद नहीं थी। वह था सुबंधु, राजा बिंदुसार का मंत्री जो कुछ भी करके आचार्य चाणक्य को राजा से दूर कर देना चाहता था।इसके लिए उसने कई षड्यंत्र रचे, उसे राजा को आचार्य चाणक्य के विरुद्ध करने के विभिन्न प्रयास किए जिसमें से एक था राजा के मन में यह गलतफ़हमी उत्पन्न कराना कि उनकी माता की मृत्यु का कारण कोई और नहीं वरन् स्वयं आचार्य चाणक्य ही हैं। ऐसा करने में सुबंधु कुछ मायनों में सफल भी हुए, धीरे-धीरे राजा और आचार्य में दूरियां बनने लगीं।यह दूरियां इतनी बढ़ गईं कि आचार्य सम्राट बिंदुसार को कुछ भी समझा सकने में असमर्थ थे। अंतत: उन्होंने महल छोड़कर जाने का फैसला कर लिया और एक दिन वे चुपचाप महल से निकल गए। उनके जाने के बाद जिस दाई ने राजा बिंदुसार की माता जी का ख्याल रखा था उन्होंने उनकी मृत्यु का राज सबको बताया।उस दाई के अनुसार जब सम्राट चंद्रगुप्त को आचार्य एक अच्छे राजा होने की तालीम दे रहे थे तब वे सम्राट के खाने में रोज़ाना थोड़ा थोड़ा विष मिलाते थे ताकि वे विष को ग्रहण करने के आदी हो जाएं और यदि कभी शत्रु उन्हें विष का सेवन कराकर मारने की कोशिश भी कर तो उसका राजा पर कोई असर ना हो।

लेकिन एक दिन विष मिलाया हुआ खाना राजा की पत्नी ने ग्रहण कर लिया जो उस समय गर्भवती थीं। विष से पूरित खाना खाते ही उनकी तबियत बिगड़ने लगी, जब आचार्य को इस बात का पता चला तो उन्होंने तुरंत रानी के गर्भ को काटकर उसमें से शिशु को बाहर निकाला और राजा के वंश की रक्षा की। यह शिशु आगे चलकर राजा बिंदुसार के रूप में विख्यात हुए।

आचार्य चाणक्य ने ऐसा करके मौर्य साम्राज्य के वंश को खत्म होने से बचाया था लेकिन बाद में किसी ने यह गलत अफवाह फैला दी कि रानी की मृत्यु आचार्य की वजह से हुई। अंतत: जब राजा बिंदुसार को दाई से यह सत्य पता चला तो उन्होंने आचार्य के सिर पर लगा दाग हटाने के लिए उन्हें महल में वापस लौटने को कहा लेकिन आचार्य ने इनकार कर दिया।उन्होंने ताउम्र उपवास करने की ठान ली और अंत में प्राण त्याग दिए। परंतु एक दूसरी कहानी के अनुसार राजा के मंत्री सुबंधु ने आचार्य को जिंदा जलाने की कोशिश की थी, जिसमें वे सफल भी हुए।

ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार आचार्य चाणक्य ने खुद प्राण त्यागे थे या फिर वे किसी षड़यंत्र का शिकार हुए थे यह आज तक साफ नहीं हो पाया है। क्योंकि विभिन्न शोधकर्ता हर बार भिन्न-भिन्न परिणामों के साथ सामने आते हैं जो अंत में यह सवाल खड़ा कर देते हैं कि आखिर चाणक्य के साथ हुआ क्या था?

खैर सच जो भी हो, लेकिन आचार्य चाणक्य के कारण भारतीय इतिहास एक तिजोरी के रूप में सामने आया है। जिसमें चाणक्य नीतियों से भरा खजाना है। यह खजाना आज भी लोगों के काफी काम आता है।


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