हाईकोर्ट पहुंची ज्योतिषपीठ की लड़ाई
आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिषपीठ के पीठाधीश्वर (शंकराचार्य) को लेकर अर्से से जारी विवाद फिलहाल शांत होता नजर नहीं आ रहा। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) गोपाल उपाध्याय द्वारा मंगलवार को सुनाए गए निर्णय के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का संकेत दिया है।
इलाहाबाद। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिषपीठ के पीठाधीश्वर (शंकराचार्य) को लेकर अर्से से जारी विवाद फिलहाल शांत होता नजर नहीं आ रहा। सिविल जज (सीनियर डिवीजन) गोपाल उपाध्याय द्वारा मंगलवार को सुनाए गए निर्णय के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का संकेत दिया है।
ऐसे में माना जा रहा है कि छत्र व चंवर धारण करने की 52 वर्षो से चल रही कानूनी लड़ाई अभी और लंबी खिंच सकती है। ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य का विवाद पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है। विरासत का हवाला देते हुए वसीयत के आधार पर पीठाधीश्वर बनने का दावा है तो स्थापित परंपरा का हवाला भी। मामला पांच दशक से अधिक समय से कोर्ट में चल रहा है। पहली बार यह 1963 में अदालत की चौखट पर पहुंचा। स्वामी ब्रह्मनंद सरस्वती की वसीयत के आधार पर पीठाधीश्वर बने स्वामी शांतानंद सरस्वती के खिलाफ स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी महाराज ने कोर्ट में याचिका दायर की। वहां से उन्हें सफलता नहीं मिली। 10 सितंबर 1973 को स्वामी कृष्णबोधाश्रम जी के ब्रह्मलीन होने पर स्वामी स्वरूपानंद ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य बनाए गए। उन्होंने मध्य प्रदेश के सिवनी में 1974 में सिविल जज की अदालत में शांतानंद के खिलाफ याचिका दायर की। बाद में मामले की सुनवाई इलाहाबाद में होने लगी। कुछ वर्षो बाद स्वामी स्वरूपानंद द्वारिकापीठ के शंकराचार्य भी बनाए गए।
इधर स्वामी शांतानंद के बाद स्वामी विष्णुदेवानंद, फिर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से कोर्ट में लड़ाई चलती रही। मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। शीर्ष अदालत ने 23 अगस्त 2004 को ने हाईकोर्ट द्वारा स्वामी वासुदेवानंद के पक्ष में दिए गए फैसले पर रोक लगा दी। दोबारा याचिका दायर होने पर दो फरवरी 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने सिविल कोर्ट में मामले की जल्द सुनवाई करके फैसला देने का आदेश दिया। स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के प्रवक्ता ओंकारनाथ त्रिपाठी का दावा है कि गुरु परंपरा व कानूनी आधार पर न तो कभी स्वामी कृष्णबोधाश्रम न ही स्वामी स्वरूपानंद ज्योतिषपीठाधीश्वर नहीं रहे। कोर्ट ने 1965 में स्वामी शांतानंद के पक्ष में फैसला सुनाया। बाद में सिविल जज ने 1970 में कृष्णबोधाश्रम के खिलाफ फैसला सुनाते हुए उन्हें छत्र व चंवर का प्रयोग न करने का आदेश दिया था।
फर्जी शंकराचार्यो पर लगेगी रोक- ज्योतिष पीठाधीश्वर घोषित किए गए जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने मंगलवार को आए फैसले को न्याय की जीत बताया। 'दैनिक जागरणÓ से बातचीत में उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले से वह पूरी तरह से संतुष्ट हैं। इससे शंकराचार्य बनकर लोगों को ठगने वालों पर रोक लगेगी। जनता जनार्दन को फर्जी शंकराचार्यो से मुक्ति मिलेगी। शासन-प्रशासन स्वयंभू शंकराचार्यो के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। दैनिक जागरण से टेलीफोनिक चर्चा में वह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपराओं की रक्षा की लड़ाई लड़ रहे थे। आदि शंकराचार्य ने जो पीठ स्थापित की है, उसका उत्तरदायित्व योग्य व्यक्ति निभाए, यही उनका ध्येय था। स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के पक्ष में लिखी गई वसीयत का विरोध करते हुए कहा कि शंकराचार्य को इसका अधिकार ही नहीं है। अगर शंकराचार्य वसीयत लिखने लगेंगे तो वह अपने परिवार के सदस्य, गृहस्थ या किसी भी अयोग्य व्यक्ति को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर सकते हैं। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का पक्ष है कि स्वामी शांतानंद एवं उनके बाद के संतों को वसीयत लिखने का हक ही नहीं है। स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती का पक्ष है कि स्वामी कृष्णबोधाश्रम शंकराचार्य ही नहीं थे। ऐसे में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य कैसे बन सकते हैं।
विवाद का मूल बिंदु
ऊपरी अदालतों में भी देंगे जवाब - अविमुक्तेश्वरानंद
शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सिविल कोर्ट के फैसले की सराहना की। कहा कि ज्योतिषपीठ के विवाद से भक्तों में भ्रम की स्थिति थी, जो कोर्ट का फैसला आने के साथ खत्म हो गई। उन्होंने कहा कि अगर दूसरा पक्ष हाईकोर्ट जाता है तो इसमें उन्हें कोई एतराज नहीं है। न्यायिक प्रक्रिया में यह उनका अधिकार है, हम हाईकोर्ट में उन्हें जवाब देने को तैयार हैं। कहा कि आदि शंकराचार्य की परंपरा एवं निर्देशों का पालन करने वाला ही ज्योतिष का पीठाधीश्वर बन सकता है।
रुद्राभिषेक कर मनाई खुशी-सिविल कोर्ट से ज्योतिषपीठ पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के घोषित होने पर उनके भक्तों में खुशी की लहर दौड़ गई। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के भक्तों ने मंगलवार की शाम मनकामेश्वर मंदिर में पं. रामचंद्र की अगुवाई में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच रुद्राभिषेक हुआ। इसमें विद्याकांत, अभिषेक शर्मा, आलोक पांडेय आदि शामिल रहे। वहीं अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष विकास दुबे के नेतृत्व में शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का केस लड़ रहे गुलाब शंकर तिवारी का माल्यार्पण कर मिष्ठान का वितरण किया।