गुरु को परमात्मा से भी श्रेष्ठ माना गया है
संसार के लगभग सभी धर्मो ने गुरु के महत्व को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए उन्हें परम आदरणीय कहा है। यह आदर परंपरा भारतीय संस्कृति में भी दिखाई देती है। भारतीयों ने तो गुरु को परमात्मा से भी श्रेष्ठ माना है। गुरु और भगवान अगर एक साथ सामने आ जाएं, तो वे सर्वप्रथम गुरु के ही चरण छूने की बात कही गई है। कारण यह है कि हम परम
संसार के लगभग सभी धर्मो ने गुरु के महत्व को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए उन्हें परम आदरणीय कहा है। यह आदर परंपरा भारतीय संस्कृति में भी दिखाई देती है। भारतीयों ने तो गुरु को परमात्मा से भी श्रेष्ठ माना है। गुरु और भगवान अगर एक साथ सामने आ जाएं, तो वे सर्वप्रथम गुरु के ही चरण छूने की बात कही गई है।
कारण यह है कि हम परमात्मा की बातें भले ही करें, किंतु परमात्मा का हमें कोई पता नहीं, उसकी कोई अनुभूति नहीं। हमें यह भी पता नहीं कि परमात्मा एक जीवंत अनुभव है या कुछ और। हम परमात्मा के संबंध में कितनी ही जानकारियां एकत्र कर लें बात बनने वाली नहीं है। गुरु परमात्मा के जीवंत अनुभव में उतरते हुए परमात्मा के साथ एकाकार हो चुका होता है और वही हमें सच्च मार्ग दिखा सकते हैं।
जीवन मुक्ति के बाद भी चूंकि शरीर संबंधी ऋण शेष रहता है। इसलिए वह शरीर में टिका होता है। वह हमारी भाषा के सीमित शब्दों की मजबूरियों को समझता है। इसलिए अगर उसे हमारी सुपात्रता का यकीन हो जाए तो वह परमात्मा की ओर स्पष्ट संकेत कर सकता है। चूंकि वह हमारी ही दुनिया का व्यक्ति है, इसलिए हम उसके संकेत को समझ सकते हैं। जीवित गुरु को इसीलिए सर्वाधिक महत्व दिया गया है। परमात्मा करोड़ों सूर्य के समान है और हम अगर एक सूर्य से सीधे आंख मिलाना चाहें तो हमारी आंखें क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
जाहिर है कि अनंत कोटि वाले परमात्मा को जान-समझ पाना सामान्य मानव के वश की बात नहीं है। इसके लिए हमें एक योग्य व्यक्ति अथवा परमात्मा का साक्षात्कार चुके ज्ञानी गुरू की आवश्यकता जरूरी है। अपने अनुभवों के आधार पर हम परमात्मा के साक्षात्कार की कल्पना भी नहीं कर सकते। परमात्मा अगर हमारे सामने आ खड़ा हो तो भी हम उसे पहचानेंगे कैसे? गुरु ही उससे हमारा परिचय करा सकता है इसलिए गुरु का स्थान सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इस संदर्भ में स्मरण रहे कि यहां गुरु से आशय समाज में मौजूद कुछ साधु वेश में भ्रष्ट, अहंकारी और पाखंडियों से हर्गिज नहीं है जो जनता को धर्म के नाम पर लूटते हैं। ऐसे लोगों से सदा सावधान रहते हुए हमें सद्गुरु की तलाश करनी चाहिए ताकि परमात्मा की खोज का पथ प्रशस्त हो सके।