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गुरु हरिगोबिंद सिंह ने शुरु की थी सिक्‍ख धर्म में शस्‍त्र परंपरा

गुरू हरगोबिन्द सिखों के छठें गुरू थे। साहिब की सिक्ख इतिहास में गुरु अर्जुन देव जी के सुपुत्र गुरु हरगोबिन्द साहिब की दल-भंजन योद्धा कहकर प्रशंसा की गई है।

By prabhapunj.mishraEdited By: Published: Tue, 06 Jun 2017 05:31 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jul 2017 02:23 PM (IST)
गुरु हरिगोबिंद सिंह ने शुरु की थी सिक्‍ख धर्म में शस्‍त्र परंपरा
गुरु हरिगोबिंद सिंह ने शुरु की थी सिक्‍ख धर्म में शस्‍त्र परंपरा

सिक्‍खों के छठवें गुरु थे हरिगोबिंद

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गुरु हरिगोबिंद जी सिक्खों के छठवें गुरु थे। वो अपने पिता गुरु अर्जन देव की लाहौर में हुई शहादत के बाद ग्यारह वर्ष की आयु में गुरुगद्दी पर आसीन हुए। बाल्यावस्था में गुरु हरिगोबिंद साहिब की शिक्षा-दीक्षा बाबा बुढ्डा जी की देख रेख में हुई। उन्हें धर्म शास्त्रों के ज्ञान के साथ युद्ध कला की शिक्षा भी दी गई। वे अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व के स्वामी थे। गुरुगद्दी पर आसीन होने के समय उन्होंने गुरु घर की पारंपरिक वेशभूषा के स्थान पर कलगी लगी सुंदर दस्तार सजाई और दो तलवारें पहनीं। उन्होंने कहा कि उनकी एक तलवार धर्म और दूसरी राज शक्ति की प्रतीक है। इस तरह उन्होंने मीरी और पीरी की अवधारणा सामने रखी। 

अन्‍याय से लड़ने के लिये धारण किये शस्‍त्र

उनके शस्त्र धारण करने का उद्देश्य अन्याय से रक्षा करना था। गुरु हरिगोबिंद जी ने सिखों की फौज भी तैयार की जिसमें चुन कर योद्धाओं को भर्ती किया। गुरु हरिगोबिंद जी ने ईश्वर की सत्ता की सर्वोच्चता प्रकट करने के लिए अमृतसर में श्री हरिमंदिर साहिब के प्रवेश द्वार के ठीक सामने श्री अकाल तख्त साहिब की रचना कराई। इसका अर्थ था कि ईश्वर सबसे बड़ा राजा है और सांसारिक शक्तियां सारहीन हैं। गुरु जी प्रात:काल श्री हरिमंदिर साहिब में गुरुवाणी सुनते। नितनेम में शामिल होते। दोपहर बाद वे अकाल तख्त पर विराजमान होकर साध संगत से चर्चा करते उनका मार्गदर्शन करते। 

शेर से बचाये थे बादशाह जहांगीर के प्राण

अपने उन्होंने शस्त्र कौशल से बादशाह जहांगीर के प्राणों की रक्षा शेर से की थी। जहांगीर ने उन्‍हें धोखे से ग्वालियर के किले में कैद कर लिया। दो वर्ष की कैद के दौरान गुरु साहिब पूर्ण संयम और धैर्य के साथ परमात्मा के ध्यान में लीन रहे। जहांगीर ने जब उन्हें रिहा करने का हुक्म दिया तो गुरु जी ने शर्त रखकर सौ बंदी राजाओं को भी रिहा करा लिया। गुरु हरिगोबिंद जी ने धर्म प्रचार के लिये व्यापक यात्राएं कीं। जहांगीर की मृत्यु के बाद शाहजहां शासक बना तो उसने गुरु जी से वैरभाव अपनाया। इसके चलते गुरु जी को चार युद्धों का सामना करना पड़ा। चारों युद्धों में उनकी जीत हुई।

डॉ. सत्येन्द्र पाल सिंह


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