शुभ फलदायक नृसिंह जयंती पर्व आज
भगवान विष्णु के दशावतारों में नृसिंह अवतार का प्रमुख स्थान है। नृसिंह जयंती वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को व्रत-पर्व के रूप में श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। इस बार नृसिंह चतुर्दशी व्रत पर्व दो मई (शनिवार) को पड़ रहा है।
वाराणसी। भगवान विष्णु के दशावतारों में नृसिंह अवतार का प्रमुख स्थान है। नृसिंह जयंती वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को व्रत-पर्व के रूप में श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। इस बार नृसिंह चतुर्दशी व्रत पर्व दो मई (शनिवार) को पड़ रहा है।
नृसिंह चतुर्दशी की तिथि इसी दिन सुबह 5.42 से तीन मई को सुबह 7.14 तक प्राप्त रहेगी। आचार्य ऋषि द्विवेदी ने बताया कि नृसिंह पुराण के अनुसार इस पर्व को दोपहर के समय पवित्र नदी, सरोवर आदि पर जाकर आंवले के लेप के साथ अति शुभ फलदायक बताया गया है। उल्लिखित है कि मानसिक संकल्प के साथ उस दिन उपवास करना चाहिए। शाम को प्रदोष के बाद वेदी पर कमल बनाकर उस पर नृसिंह व लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित कर भगवान नृसिंह का पंचोपचार पूजन करना चाहिए। रात में गायन, वादन, नृसिंह पुराण का श्रवण तथा हरिकीर्तन आदि के साथ रात्रि जागरण से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। दूसरे दिन विप्रों को भोजन कराने के बाद पारण का विधान है।
जयंती पर भगवान नृसिंह के दर्शन पूजन औेर व्रत दान से समस्त पापों का शमन होता है। ईश्वरीय कृपा से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है। भगवान नृसिंह के उग्र रूप का दर्शन तथा इनके मंत्रों का जप शत्रुओं की पराजय व नौ ग्रहों की शांति का कारक तो है ही, इससे बाधाओं से पार करने की शक्ति भी प्राप्त होती है। इनका मंत्र ही कष्टों का दमनकारी है।
दैवीय आपदाओं जैसे भूकंप, बाढ़, आंधी-पानी आदि के शमन के लिए श्रीजगन्नाथ जी के तत्वाधान में पांच दिनी नृसिंह पुराण पारायण एवं कथा का अस्सी घाट स्थित मंदिर प्रांगण में आयोजन किया गया। कथा के तीसरे दिन शुक्रवार को कथा वाचक डा. रमाकांत पांडेय पौराणिक ने कहा कि पृथ्वी भगवान विष्णु की पत्नी मानी जाती हैं। पर्वत पृथ्वीधर है। पृथ्वी भूमिधर है। पर्वत कटोरा है जिसने पृथ्वी को संभाल रखा है। इंसान अपने सुख-सुविधाओं के लिए उसको नष्ट कर रहे हैं। इसी कारण पृथ्वी असंतुलित हो रही है। जीव-जंतुओं की रक्षा के लिए प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बंद होना चाहिए।