श्रावण का पहला सोमवार आज, करें महाकाल की सवारी के सभी रूपों के दर्शन
बारह ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ अवंतिका के राजा भगवान महाकालेश्वर की रोज तड़के 4 बजे अनूठी भस्मारती होती है। इसका आकर्षण कुछ ऐसा है कि देश-दुनिया के भक्त शामिल होने के लिए उमड़ते हैं। आकर्षण के कारणों में एक जनश्रुति भी है। कई भक्त मानते हैं कि किसी दौर में भस्मारती
उज्जैन, [ब्यूरो]। बारह ज्योतिर्लिंगों में सिर्फ अवंतिका के राजा भगवान महाकालेश्वर की रोज तड़के 4 बजे अनूठी भस्मारती होती है। इसका आकर्षण कुछ ऐसा है कि देश-दुनिया के भक्त शामिल होने के लिए उमड़ते हैं। आकर्षण के कारणों में एक जनश्रुति भी है। कई भक्त मानते हैं कि किसी दौर में भस्मारती के लिए चिता की राख लाई जाती थी। हालांकि ऐसा नहीं है। पुजारियों के पास 1400 साल पुराने अभिलेख उपलब्ध हैं।
पं. महेश पुजारी ने बताया कि ज्ञात इतिहास के अनुसार प्रारंभ से ही आरती में कंडे की भस्मी का उपयोग किया जाता रहा है। जनश्रुति के विपरित कभी-भी चिता की राख नहीं लाई गई। पं. आशीष पुजारी बताते हैं कि मंदिर परिसर में दिव्य धुना है। 24 घंटे यह प्रज्ज्वलित रहता है। यहां से भस्मारती के लिए भस्मी ली जाती है। चिता की राख का उपयोग कपोल-कल्पित बात है।
भगवान महाकाल की सवारी में विविध रूप को जानिए...
श्रावण-भादौ मास में भगवान महाकाल हर सोमवार को विभिन्न रूपों में विविध वाहनों पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। भक्त इन रूपों की एक झलक पाकर ही निहाल हो जाते हैं। जानिए इनके बारे में-
ये मुघौटे किए जाते हैं शामिल
पहले सोमवार को पालकी में चंद्रमौलेश्वर निकलते हैं। दूसरी सवारी में चंद्रमौलेश्वर हाथी पर और पालकी में मनमहेश विराजते हैं। इसके बाद क्रमश: नंदी पर उमा-महेश, गरुड़ पर शिव-तांडव, बैल जोड़ी पर होलकर, जटशंकर रूप में भगवान दर्शन देते हैं।
यह परंपरा कब से
पालकी में भगवान के नगर भ्रमण की परंपरा अनादिकाल से मानी गई है। सिंधिया स्टेट के समय अन्य रूपों को सवारी में शामिल किया गया।
क्यों शुरू की गई...
ताकि हर भक्त तक भगवान हर रूप में पहुंच सकें। सवारी से पहले पुजारी मुघौटे सम्मुख रख महाकाल से इनमें विराजित होने का आह्वान करते हैं। पश्चात सवारी निकलती है। ऐसा इसलिए ताकि हर रूप में हर भक्त भगवान के दर्शन कर सके। खासकर वे जो वृद्ध, रुग्ण या नि:शक्तता की स्थिति में मंदिर नहीं आ सकते।
लौटने पर ही होती है संध्या आरती
यही वजह है कि श्रावण-भादौ मास में जब तक सवारी लौटकर नहीं आती, महाकाल की संध्या आरती नहीं होती। ऐसा माना जाता है कि प्रभु मुघौटे में विराजित हो नगर भ्रमण पर गए हैं।
[नई दुनिया विशेष]