गुरु पूर्णिमा: जीवन को नई राह दिखाने वाले गुरु के प्रति सिर झुकाकर आभार व्यक्त करने का दिन
यूं तो गुरु हमेशा हर दिन ही ही पूज्यनीय होते हैं लेकिन गुरु पूर्णिमा का दिन बेहद खास होता है। आषाढ़ की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं...
व्यास पूजा के नाम से
हमेशा की तरह से इस बार भी आषाढ़ मास की शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जा रहा है। हिंदू शास्त्रों के मुताबिक आज के दिन ही महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास जन्मे थे। इन्होंने ने ही चारों वेदों को लिपिबद्ध किया था। इसलिए आज के दिन को व्यास पूजा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गुरु की पूजा करने से ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति का अहसास होता है।
गुरु का ही योगदान
माता पिता के बाद जीवन में अगर किसी का स्थान होता है वह गुरु ही होता है। माता पिता बच्चे को जन्म देकर इस संसार में लाते है। वहीं गुरु बच्चे को शिष्य रूप में संसार से रूबरू कराता है। संसार का सही ज्ञान बताता है। जीवन को एक नई दिशा देने में गुरु का ही योगदान होता है। ऐसे में गुरु का पूजन तो हर दिन होना जरूरी होता है। यह हर दिन पूज्यनीय होते हैं लेकिन आषाण मास की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के नाम से ही जानी जाती है।
सम्मान करना जरूरी
ऐसे में इस दिन गुरु की पूजा व उनका सम्मान करना बहुत जरूरी होता है। गुरु पूर्णिमा गुरु के प्रति सिर झुकाकर उनके प्रति आभार व्यक्त करने का दिन है। इस दिन गुरु के चरण छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करना भाग्यवान बनाता है क्योंकि भारतीय परम्परा में गुरु को गोविंद से भी ऊंचा यानी कि भगवान से भी ऊंचा माना जाता है।