बांकेबिहारी को होली के रसिया सुना रिझा रहे भक्त
'तो सौं होरी खेलन में, मेरी गई है मुदरिया खोय। मेरी मुदरिया सवा लाख की, तो पै मोल न पैदा होए।। बिहारी सब रंग बोर दई अब, पूछेंगी मेरी सास-ननद मैं होरी खेलन गई..ÓÓ ब्रज में बसंत पंचमी से शुरू हुई होरी की उमंग में रसिया के जरिए बांके बिहारी
वृंदावन। ''तो सौं होरी खेलन में, मेरी गई है मुदरिया खोय। मेरी मुदरिया सवा लाख की, तो पै मोल न पैदा होए।। बिहारी सब रंग बोर दई अब, पूछेंगी मेरी सास-ननद मैं होरी खेलन गई..ÓÓ ब्रज में बसंत पंचमी से शुरू हुई होरी की उमंग में रसिया के जरिए बांके बिहारी को रिझाने की कोशिश शुरू हो गई हैं।
मंदिर में रोजाना शयनभोग परोसने से पहले सेवायत अपने आराध्य को होरी के रसिया सुना हे हैं। लगभग आधा घंटे तक चलने वाली इस परंपरा का निर्वहन में जब सेवायत कतारबद्ध खड़े होकर सामूहिक रूप से रसिया गायन करते हैं तो मंदिर में मौजूद भक्तों का मन भी झूम-झूम जाता है। उत्साह और उमंग से लबरेज देसी-विदेशी भक्त भी रसिया के सुर में ताल मिलाने से खुद को नहीं रोक पाते।
बसंत पंचमी से आरंभ हुई ब्रज की होली में बांकेबिहारी और उनके भक्त पूरी तरह मदमस्त नजर आ रहे है। पीतांबरधारी बांके बिहारी गालों पर गुलाल लगाकर भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। शाम लगभग 7.30 बजे शुरू होने वाली होरी के रसिया गायन की इस परंपरा को जीवंत रखने में युवा सेवायत भी पूरे उत्साह से जुटे हैं।
मंदिर के जगमोहन में कतारबद्ध खड़े होकर जब सेवायत रसिया गाते हैं तो भाव विभोर श्रद्धालु भी खुद को झूमने से नहीं रोक पाते।
बांकेबिहारी को होली के रसिया सुना रिझा रहे भक्त। होली खेलने के लिए ठाकुर जी को तैयार कर रहे सेवायत इन दिनों इत्र और बादाम के तेल से जमकर मालिश कर रहे हैं। सेवायत आचार्य गोपी गोस्वामी कहते हैं होली खेलने के लिए शरीर को बलवान बनाने की इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन मंदिर में बसंत पंचमी से ही शुरू हो चुका है।