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ईद पर परिधानों में दिखेगा छोटे-बड़े पर्दे का असर

रमजानुल मुबारक के 18वें रोजे पर सोमवार को बाजारों में कुछ ज्यादा ही चहल-पहल रही। रमजान अपनी रफ्तार से धीरे-धीरे मंजिल की जानिब बढ़ रहा है। इबादत व घर गृहस्थी से खाली होकर महिलाएं पूरे परिवार के साथ बाजारों की ओर रुख कर रही हैं। ईद पर इस बार सिल्वर

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 07 Jul 2015 04:25 PM (IST)Updated: Tue, 07 Jul 2015 04:30 PM (IST)
ईद पर परिधानों में दिखेगा छोटे-बड़े पर्दे का असर

वाराणसी रमजानुल मुबारक के 18वें रोजे पर सोमवार को बाजारों में कुछ ज्यादा ही चहल-पहल रही। रमजान अपनी रफ्तार से धीरे-धीरे मंजिल की जानिब बढ़ रहा है। इबादत व घर गृहस्थी से खाली होकर महिलाएं पूरे परिवार के साथ बाजारों की ओर रुख कर रही हैं। ईद पर इस बार सिल्वर स्क्रीन व छोटे पर्दे का स्पष्ट असर दिखेगा। खास ईद के लिए महिलाएं पूरे साल थोड़ा-थोड़ा पैसा बचाकर रखती हैं। उन पैसों से कुछ अलग हटकर सामान खरीद रही हैं। इफ्तार से पहले खजूर की खरीदारी की जा रही है। सहरी के लिए देररात तक बाकरखानी की खरीदारी हो रही है।

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लड़कियों से लेकर विवाहित महिलाएं भी सजने की तैयारी में हैं। मुख्य मार्केट दालमंडी में बुर्कानशीं महिलाएं छोटे पर्दे की गोपी, बहू, मीरा, जोया, फरीदा व पाकिस्तानी सीरियलों के पहनावे को ज्यादा पसंद कर रही हैं। सलवार सूट के साथ ही कुर्ती का भी फैशन सर चढ़कर बोल रहा है। साथ ही लांग सूट, फ्राक सूट, पटियाला सूट की भी मांग की जा रही है। ईद के त्योहार को मनाने के लिए महिलाएं कुछ अधिक ही गम्भीर हैं। कपड़े से रंग मिलाकर ज्वेलरी की खरीदारी कर रही हैं। सोना महंगा होने से नकली आभूषण पर अधिक ध्यान दे रही हैं। चूड़ियां भी कपड़ों से रंग मिलाकर खरीदारी की जा रही है। कामदार चूड़ियों की मांग अधिक है। इसके अलावा जयपुरी ब्रास के कड़ों की भी मांग अधिक है। चार कड़ों की कीमत 12 सौ से लेकर 2 हजार रुपये तक है।

पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद मुस्तफा (सल्ल.) के दामाद मौला मुश्किल कुशा अली की शहादत की मजलिसें सोमवार को प्रारंभ हो गई। मुख्य आयोजन दरगाह फातमान में हुआ। शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता सैय्यद फरमान हैदर ने अंजुमन हैदरी द्वारा पढ़ा जाने वाला मशहूर नौहा के बोल सुनाए तो लोगों की आंखें नम हो गईं। सुनाया-पुकारते हैं नमाजी अली शहीद हुए, फलक पे सुबह का तारा तुलू (उदय) होता है, इमाम जाग रहा है जमाना सोता है, खुदा के सजदे में साजिद शहीद होता है। खिताब करते हुए कहा कि मौला अली की शहादत 21 रमजान को इराक के कूफा नामक स्थान पर हुई थी। इससे पहले 19 रमजान को सुबह फज्र की नमाज में जब मौला अली सजदे में रहे तो दुश्मने इस्लाम ने जहर से बुझी तलवार से वार कर दिया। मौला अली गम्भीर रूप से घायल हो गए। कहा कि मौला अली तीसरे दिन दुनियां से रुख्सत हुए। दरगाह फातमान के अलावा शिवाला, गौरीगंज, मदनपुरा, मुकीमगंज, चौहट्टालाल खां, कालीमहाल, चाहमामा आदि में मजलिस के बाद मातम किया गया


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