सुप्रीमकोर्ट ने दशहरा पूजा में नहीं दी पशु बलि की अनुमति
हिमाचल प्रदेश में सदियों से चला आ रहा कुल्लू दशहरा इस बार पशु बलि के बगैर मनाया जाएगा। सुप्रीमकोर्ट ने दशहरा पूजा में पशु बलि की इजाजत देने से इन्कार कर दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करने से इन्कार करते हुए कहा कि दूसरे पक्ष को सुने बगैर कोई भी अंतरिम आदेश नहीं जारी किया जा सकता। हालांकि
नई दिल्ली। हिमाचल प्रदेश में सदियों से चला आ रहा कुल्लू दशहरा इस बार पशु बलि के बगैर मनाया जाएगा। सुप्रीमकोर्ट ने दशहरा पूजा में पशु बलि की इजाजत देने से इन्कार कर दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने अंतरिम आदेश जारी करने से इन्कार करते हुए कहा कि दूसरे पक्ष को सुने बगैर कोई भी अंतरिम आदेश नहीं जारी किया जा सकता।
हालांकि हिमाचल हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीमकोर्ट ने राज्य सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया है। कुल्लू में गुरुवार यानी कल दशहरा उत्सव है जिसमें पशु बलि देने की परंपरा है।
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गत 1 सितंबर को किसी भी धार्मिक स्थल या सार्वजनिक स्थल पर पशु बलि देने पर रोक लगा दी है। हिमाचल के महेश्वर सिंह ने सुप्रीमकोर्ट में याचिका दाखिल कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। याचिका में गुरुवार को होने वाले दशहरा उत्सव की पूजा में पशु बलि दिये जाने की अनुमति मांगी गई थी और कोर्ट से इस बाबत अंतरिम आदेश देने का अनुरोध किया गया था।
मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध स्वीकार करते हुए याचिका पर आज ही सुनवाई तो कर ली लेकिन अंतरिम आदेश देने से इन्कार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला ऐसा है जिसमें काफी लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हैं लेकिन वह दूसरे पक्ष को सुने बगैर कोई अंतरिम आदेश जारी नहीं कर सकते। हालांकि कोर्ट ने याचिकाकर्ता की वकील किरण सूरी की दलीलें सुनने के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए नोटिस जारी किया। इससे पहले किरण सूरी ने कोर्ट से अंतरिम आदेश जारी करने का अनुरोध करते हुए कहा था कि कल कुल्लू में दशहरा उत्सव है जिसमें पशु बलि दिए जाने की धार्मिक परंपरा है। उन्होंने कल्लू दशहरा की पूरी परंपरा और प्रक्रिया भी बताई लेकिन पीठ एक तरफा सुनवाई में अंतरिम आदेश जारी करने के लिए नहीं राजी हुई।
देव संसद में सभी देवताओं ने आदेश सुनाया कि पुरानी परंपरा नहीं छोड़ेंगे और नई को नहीं अपनाएंगे। यानी उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी जाएगी।
लंका दहन के स्थान पर पुलिस द्वारा कड़ा पहरा रहेगा। चप्पे चप्पे पर पुलिस जवान रहेंगे। कोई भी कानून को न तोड़े, इसका हर सूरत ध्यान रखा जाएगा।
-सुरेंद्र वर्मा, एसपी कुल्लू
पशुबलि के खिलाफ प्रशासन मुस्तैद
हालांकि कुल्लू प्रशासन पहले से ही पशुबलि पर लगे प्रतिबंध का पालन करने के लिए कमर कसे हुए था लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट से भी देवी देवता कारदार संघ को कोई राहत न मिलने से उसका दायित्व और बढ़ गया है। कुल्लू दशहरा के समापन अवसर पर पशुबलि की परंपरा है। वीरवार को दशहरे के समापन पर दी जाने वाली अष्टांग बलि न हो पाए, यह देखना लंका दहन प्रशासन सहित पुलिस कप्तान के लिए भी चुनौतीपूर्ण होगा। लंका दहन में मां हिडिंबा सहित अन्य देवी-देवता उपस्थित रहते हैं। यहां सात प्रकार की बलि मान्यता के अनुसार दी जाती है। पुलिस लंका दहन के लिए पूरी तरह सक्त्रिय हो चुकी है। गुप्तचर विभाग ने भी अतिरिक्त कर्मचारी तैनात किए हैं जो सादा कपड़ों में देवताओं के बीच रहेंगे।
देव, जिन्हें नहीं चाहिए बलि
हिमाचल प्रदेश में अब तक दो ऐसे देवी देवता सामने आ चुके हैं जिन्होंने हाईकोर्ट के फैसले के पक्ष में परंपरा को छोड़ने का ऐलान किया है। इनमें से एक मंडी के सिराज हलके में चिऊणी की देवी हिडिम्बा हैं और दूसरे सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र के नाग नावणा देवता हैं। सिराज की देवी ने तो भविष्य में बलि न लेने के आदेश दे दिए हैं।