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मृत्यु सदियों से एक रहस्य है, और यह रहस्य आज भी बरकरार है

महाभारत के शान्तिपर्व में उल्लेख है कि 'जो व्यक्ति सूर्य के उत्तर दिशा में जाने पर (उत्तरायण होने पर) मरता है या किसी अन्य शुभ नक्षत्र एवं मुहूर्त में मरता है, वह पुण्यवान है। मृत्यु सदियों से एक रहस्य है, और यह रहस्य आज भी बरकरार है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 21 Jan 2016 03:02 PM (IST)Updated: Thu, 21 Jan 2016 03:18 PM (IST)
मृत्यु सदियों से एक रहस्य है, और यह रहस्य आज भी बरकरार है

महाभारत के शान्तिपर्व में उल्लेख है कि 'जो व्यक्ति सूर्य के उत्तर दिशा में जाने पर (उत्तरायण होने पर) मरता है या किसी अन्य शुभ नक्षत्र एवं मुहूर्त में मरता है, वह पुण्यवान है। मृत्यु सदियों से एक रहस्य है, और यह रहस्य आज भी बरकरार है।

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इसलिए जलाते हैं शव : वैदिक परंपरा को मानें तो हमारा शरीर पंचभूतों यानी अग्नि, वायु, जल, पृथ्वी और आकाश से मिलकर बना है। जब शरीर से आत्मा चली जाती है तो हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार शव का अग्नि में दाह संस्कार किया जाता है।

माना जाता है कि ऐसा करने पर जब व्यक्ति मर जाता है तो उसमें जो हानिकारण कीटाणु बन जाते हैं उनका अंत हो जाता है। ऐसे में पर्यावरण सुरक्षित रहता है। और पंचभूतों से मिलकर बना शरीर पंचतत्वों में विलीन हो जाता है।

वैदिक काल में शव का दहन करते समय अथर्ववेद के बहुत-से मन्त्रों का मंत्रोच्चार किया जाता था, जो चिता जलाने पर एवं हवि( चिता में अग्नि प्रज्वलित करना) देते समय कहे जाते थे।


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