मनाइए एक और लोक उत्सव
पर्व-उत्सवों की नगरी काशी में देव दीपावली और गंगा दशहरा जैसी ठाट वाला एक और उत्सव उभार ले रहा है। त्रिविध ताप-पापों का नाश करने वाली गंगा से जुड़े होने की वजह से यह उत्सव कोमल भावनाओं से पोषित है और गंगा किनारे जुटान का बहाना खोजने वाले उत्सवमना काशीवासियों
वाराणसी। पर्व-उत्सवों की नगरी काशी में देव दीपावली और गंगा दशहरा जैसी ठाट वाला एक और उत्सव उभार ले रहा है। त्रिविध ताप-पापों का नाश करने वाली गंगा से जुड़े होने की वजह से यह उत्सव कोमल भावनाओं से पोषित है और गंगा किनारे जुटान का बहाना खोजने वाले उत्सवमना काशीवासियों को मगन करने वाला है।
यह उत्सव है गंगा के प्राकट्य का, जो काशी में गंगा जयंती की शक्ल में आकार ले चुका है। पुराणविदों के अनुसार गंगा ने देवजनों के आवाहन पर वैशाख शुक्ल सप्तमी को पृथ्वी को अपनी पुण्यधारा से सींचने और दुखीजनों को तारने के मंतव्य से देव लोक में अवतार लिया और भगीरथ के अटूट प्रयासों से धरती पर अवतरण किया (गंगा दशहरा)
वैसे तो गंगा से रिश्ते को लेकर गंगा किनारे वाले (काशीवासी) हमेशा से ही अति भावुक रहे हैं, लेकिन भौतिकता की दौड़ से पैदा छीजन के दौर में बहुत कुछ के साथ गंगा से आत्मीयता के सरल भावों में भी छीजन आई है। आज गंगा की अविरलता और निर्मलता के लिए चल रहे तकनीकी प्रयासों के साथ ही इस 'भाववंचित खालीपनÓ को भरने की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है। ऐसे में आपके सामने है गंगा सप्तमी। इस बार 25 अप्रैल को। परंपरागत तौर पर पूजित इस परंपरा को उत्सव का रूप दिया जा चुका है, बस आपकी सहभागिता इसे लोक उत्सव का रंग देने वाली है।
राष्ट्रीय पर्व घोषित हो-
भाजपा के वरिष्ठ नेता फिरोज खां मुन्ना का मानना है कि राष्ट्रीय नदी घोषित होने के बाद गंगा जयंती को राष्ट्रीय पर्व घोषित किया जाना चाहिए। यही वह धार है जिसका आचमन और वजू दोनों ही पकीजगी का मरकज बन जाते हैं।