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धर्म और सीमा का रक्षक है चमोली, रीति रिवाज और परंपराएं

चमोली जिले में देवी देवताओं की पूजा, एड़ी आंछरी, नाग, सिध्वा, बिध्वा, ग्वरील, भैरों, बगड़वाल, पांडव नृत्य, रामलीला, जन्म से लेकर मृत्यु तक के 16 संस्कारों को विधिवत संपन्न किया जाता है। कोई सार्वजनिक कार्य हों या शादी विवाह। धान कूटना हो, घराट में गेहूं पीसना हो, मकान का निर्माण

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 24 Feb 2015 02:36 PM (IST)Updated: Tue, 24 Feb 2015 02:39 PM (IST)
धर्म और सीमा का रक्षक है चमोली, रीति रिवाज और परंपराएं

गोपेश्वर। चमोली जिले में देवी देवताओं की पूजा, एड़ी आंछरी, नाग, सिध्वा, बिध्वा, ग्वरील, भैरों, बगड़वाल, पांडव नृत्य, रामलीला, जन्म से लेकर मृत्यु तक के 16 संस्कारों को विधिवत संपन्न किया जाता है।

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कोई सार्वजनिक कार्य हों या शादी विवाह। धान कूटना हो, घराट में गेहूं पीसना हो, मकान का निर्माण हो, खेतों की रोपाई हो। इन कार्यो को लोग श्रमदान से संपन्न करते हैं।

धर्म और सीमा का रक्षक है चमोली-

भारतवर्ष के मुकुट हिमालय के मध्य भाग में व उत्तराखंड राज्य में स्थित चमोली जिला न केवल उत्तराखंड की शोभा बढ़ाता है बल्कि भारत का सीमांत जनपद होने के कारण सीमा की रक्षा के साथ साथ देश के गौरव में वृद्धि कर रहा है।

जनपद चमोली अपने सृजन से पूर्व एक तहसील के रूप में जनपद पौड़ी का ही एक भाग था। इतिहासकार डॉ.शिवचंद सिंह रावत के मुताबिक प्राचीन काल से ही यहां मानव की उपस्थिति के अवशेष विद्यमान हैं। यहां उपलब्ध पाषाणकालीन शैल चित्र इस तथ्य के साक्षी हैं कि पाषाण काल में भी इस क्षेत्र में मानव गतिविधियां जारी रही। वैदिक काल में यह क्षेत्र हिमवंत नाम से प्रसिद्ध था। उसके बाद बद्रिका, अलकापुरी, गन्दमादन आदि नामों से जाना जाता रहा।


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