डमरुओं की गड़गड़ाहट से भोर तक गूंजता रहा दशाश्वमेध घाट
चैत्र शुक्ल चतुर्दशी तदनुसार सोमवार की रात तीसरे पहर जब घड़ियों ने ढाई बजाये तो दशाश्वमेध घाट स्थित शीतला मंदिर प्रांगण सहस्त्र दीप शिखाओं वाली आरती के दिव्य प्रकाश में नहा उठा। घरी-घंटाल और दर्जनों डमरुओं की गड़गड़ाहट के बीच मंदिर के श्री महंत पं. शिव प्रसाद पांडेय ने भारी भरकम आरती पात्र को ज्यों ही पहला स्पंद
वाराणसी। चैत्र शुक्ल चतुर्दशी तदनुसार सोमवार की रात तीसरे पहर जब घड़ियों ने ढाई बजाये तो दशाश्वमेध घाट स्थित शीतला मंदिर प्रांगण सहस्त्र दीप शिखाओं वाली आरती के दिव्य प्रकाश में नहा उठा। घरी-घंटाल और दर्जनों डमरुओं की गड़गड़ाहट के बीच मंदिर के श्री महंत पं. शिव प्रसाद पांडेय ने भारी भरकम आरती पात्र को ज्यों ही पहला स्पंदन दिया भक्तों की भीड़ ने मां शीतला की जयकारों से पूरा मंडप गुंजा दिया।
इसके पूर्व देवी शीतला के स्वरूप का श्रृंगार और पूजन करते हुए महंत जी ने इस वर्ष की आरती को देश की नारी शक्ति को समर्पित करने का संकल्प व्यक्त किया। अवसर था देवी शीतला के वार्षिक श्रृंगार महोत्सव और पारंपरिक विराट आरती का। आरती के पूर्व पारंपरिक रस्मों के क्रम में श्री महंत ने स्नान और क्षौरादि कर्मो से निवृत हो कर गंगा माता और देवी शीतला का सविधि पूजन अर्चन किया और उपस्थित भक्तों के बीच मां शीतला की महिमा का बखान किया। इस दौरान मंदिर की अंगनाई बधावा गीतों से गुंजरित रही। दीप आरती को विश्रम देने के बाद श्री महंत ने जब 21 किलो कपूर से भरा खप्पर उठाया तो उपस्थित श्रद्धालु एक अलौकिक भाव से रोमांचित हो उठे। साथ में धूप आरती भी समर्पित की गई। लगभग दो घंटे तक चली आरती को शीतलता देने के लिए देवी को वस्त्र, मयूरपंख और जल के अलावा शीतल पुष्पों का स्पर्श प्रदान किया गया। समापन श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण से हुआ।