आस्था का केन्द्र है भद्रकाली मंदिर
यहां से 20 किमी दूर इंद्रावती और गोदावरी के संगम पर बने मंदिर में मां भद्राकाली के दर्शन को महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के लोग जुटते हैं। ये आस्था का केन्द्र है। मंदिर की देखरेख के लिए एक कमेटी बनाई गई है। इसमें कुरसम आनंद राव को अध्यक्ष एव के राजेन्द्र को उपाध्यक्ष बनाया गया है। समिति के सदस्य पूरे बीजापुर जिले के ि
भोपालप। यहां से 20 किमी दूर इंद्रावती और गोदावरी के संगम पर बने मंदिर में मां भद्राकाली के दर्शन को महाराष्ट्र, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के लोग जुटते हैं। ये आस्था का केन्द्र है। मंदिर की देखरेख के लिए एक कमेटी बनाई गई है। इसमें कुरसम आनंद राव को अध्यक्ष एव के राजेन्द्र को उपाध्यक्ष बनाया गया है।
समिति के सदस्य पूरे बीजापुर जिले के विभिन्न स्थानों के हैं। पहले इस मंदिर में पूजा पाठ सुरेश्नैया करते थे। अब वे वृद्ध हो गए हैं। उनके बदले पुजारी का काम कुरसम नलैया कर रहे हैं। गांव के बुजुर्ग एकैया कुरसम बताते हैं कि वारंगल से कई साल पहले काकतीय राजा आए थे और वे मां भद्राकाली के भक्त थे। वे पहाड़ी में इसी स्थान पर ठहरे थे जहां आज मंदिर है। यहां पहले एक सुरंग थी।
इस स्थान को मां भद्राकाली का वास माना जाता था। कुछ साल पहले यहां मंदिर का निर्माण किया गया। तत्कालीन कमिश्नर नारायण सिंह की मौजूदगी में राजमहेन्द्री से प्रतिमा लाकर यहां प्राण-प्रतिष्ठा की गई। 1975 से यहां वसंत पंचमी पर मेला भरना शुरू हुआ। इस मेले के दौरान तेलंगाना, महाराष्ट्र और छग के भक्त आते हैं। हर तीन साल में अग्निकुंड होता है। इस पर भक्त चलते हैं। इस अनुष्ठान को संपादित करने बाहर से पंडित आते हैं। नवरात्र पर ज्योत जलाई जाती है। विभिन्न स्थानों के भक्त दीप जलाते हैं। ---