बांकेबिहारीजी को भा रही है दही, मक्खन और 'ठंडाई'
मौसम में हुए बदलाव से फूल बंगला बनने भले ही बंद हो गए हों, लेकिन ठा. बांकेबिहारी को पंचमेवा और गरिष्ठ भोजन से परहेज अब भी है। उनके भोग में मेवा की मात्र में कमी कर दूध, दही, माखन के अलावा 'ठंडाई' परोसी जा रही है। दूध में केसर की भी मात्र कम कर शाम को पकवान तो दिन में कच्चे प्रसाद की मात्र अधिक परोसी जा रही है। बर
वृंदावन। मौसम में हुए बदलाव से फूल बंगला बनने भले ही बंद हो गए हों, लेकिन ठा. बांकेबिहारी को पंचमेवा और गरिष्ठ भोजन से परहेज अब भी है। उनके भोग में मेवा की मात्र में कमी कर दूध, दही, माखन के अलावा 'ठंडाई' परोसी जा रही है।
दूध में केसर की भी मात्र कम कर शाम को पकवान तो दिन में कच्चे प्रसाद की मात्र अधिक परोसी जा रही है। बरसात केबाद उमसभरी तेज गर्मी से राहत पाने को ठा. बांकेबिहारीजी के पहनावे, खान-पान में अभी परिवर्तन नहीं हुआ। सर्दी के दिनों में जहां पंचमेवा और गरिष्ठ भोग परोसा जाता रहा, अब गर्मी में शीतल पेय पदाथार्ें का भोग में प्रयोग होने लगा है।
भोग में ड्राई फ्रुट, केसर कम तो बढ़ी दही, मक्खन और दूध की मात्रठा. बांकेबिहारीजी को सुबह श्रृंगार आरती के दौरान बालभोग, दोपहर को राजभोग, शाम को मंदिर के पट खुलने पर उत्थापन भोग और रात को शयन भोग परोसे जाते हैं, इसके अलावा रात को मंदिर के पट बंद होने के दौरान केसर, दूध और पानी बीड़ा भी ठा. श्रीबांकेबिहारी को परोसा जाता है। सर्दी के दिनों में भोग में काजू, बादाम, चिलगोजा, पिस्ता समेत पंचमेवा का जमकर प्रयोग हुआ तो अब दूध-दही से बने व्यंजन और मक्खन की मात्र बढ़ा दी गयी है। दूध, खीर और हलवा में केसर की मात्र कम कर दी गई है।
पढ़ें: जय कन्हैया लाल की.