श्रद्धालुओं को दी गुरु ज्ञान की कुंजी
संत आसाराम बापू ने श्रद्धालुओें को गुरुज्ञान की कुंजी दी। उन्होंने सत्संग से हार को जीत में, बैर को प्रीत में और सद्गुरु की दीक्षा से मौत को अमरता में बदलने की कला से रूबरू कराया।
जम्मू, जागरण संवाददाता। संत आसाराम बापू ने श्रद्धालुओें को गुरुज्ञान की कुंजी दी। उन्होंने सत्संग से हार को जीत में, बैर को प्रीत में और सद्गुरु की दीक्षा से मौत को अमरता में बदलने की कला से रूबरू कराया।
भगवती नगर आश्रम में दो दिवसीय सत्संग कार्यक्रम के समापन अवसर पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु बापू के प्रवचन सुन धन्य हुए। बापूजी का नजदीक से दर्शन करने और सामने बैठकर सत्संग सुनने के लिए श्रद्धालुओं में होड़ रही। उन्होंने प्रश्नात्मक अंदाज में कहा कि वह कौन है जो मरता नहीं, बिछुड़ता नहीं और बेवफाई नहीं करता है। शरीर मरेगा और सगे संबंधियों से बिछुड़ शरीर अंत में बेवफाई करेगा। वही एक है जो ऐसा नहीं करता वह है परमात्मा! हम नहीं चाहते हैं मरना बिछुड़ना अथवा बेवफाई, लेकिन फिर भी यह हो रहा है। नश्वर वस्तुएं संसार से गायब हो जाती हैं।
परमात्मा मरने से पहले भी था, आज भी है और मरने के बाद भी साथ रहता है। आप उस परमात्मा को अपना मान लें। जिसे हम अपना मानते हैं। वह प्यारा लगता है। उन्होंने कहा कि हम संसार की वस्तुओं को व्यक्तियों को अपना मानते हैं।
आसाराम बापू ने जीवन जीने की कला बताते हुए कहा कि संसार का उपयोग करना चाहिए। भगवान से प्रेम करना चाहिए। मनुष्य का दुर्भाग्य वहां से शुरू होता है जब वह संसार व संसार के संबंधों को सच मानने लगता है। मानव देह के मुख्य उद्देश्य परमात्म प्राप्ति को भूल जाता है जो प्रेम उसे परमात्मा से करना चाहिए वह संसार से कर बैठता है। संसार की इच्छा मनुष्य को असंत बना देती है। भगवान की इच्छा संत बना देती है।
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