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क्रोध हमेशा उन घटनाओं पर होता है, जो पहले ही बीत चुकी हैं

क्रोध का प्रदर्शन करना गलत नहीं है, लेकिन इसके प्रति सजग नहीं होने से आपको ही नुकसान पहुंचता है। कभी-कभी आप जानबूझ कर गुस्सा दिखा सकते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 01 Feb 2017 02:41 PM (IST)Updated: Wed, 01 Feb 2017 02:48 PM (IST)
क्रोध हमेशा उन घटनाओं पर होता है, जो पहले ही बीत चुकी हैं
क्रोध हमेशा उन घटनाओं पर होता है, जो पहले ही बीत चुकी हैं

-योग-ध्यान. क्रोध पर नियंत्रण हर इंसान चाहता है कि उसे क्रोध से छुटकारा मिल जाए, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो पाता। वर्तमान में जीने और लय के साथ श्वास लेने से क्रोध पर नियंत्रण किया जा सकता है। श्री श्री रविशंकर का चिंतन..

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हर सच्चा जिज्ञासु क्रोध से छुटकारा पाकर पूर्ण होना चाहता है, लेकिन प्राय: वह अपनी भावनाओं के आवेश में बह जाता है। जब क्रोध आए, तो आप क्या कर सकते हैं? आप अपने आप को सौ बार याद दिला सकते हैं कि आपको क्रोध नहीं करना चाहिए। जब क्रोध आता है, तो आप उस पर काबू नहीं कर पाते हैं। क्रोध एक आंधी की तरह आता है। आपकी भावनाएं आपके विचारों एवं स्वयं को दिए वादों से अधिक शक्तिशाली होती हैं। क्रोध आपके सच्चे स्वभाव की विकृति है, जो आपकी प्रदीप्तिमान चेतना की आभा को धूमिल कर देता है। मनुष्य की चेतना या मन की संरचना एक परमाणु की तरह ही है। धनात्मक आवेशित प्रोटोन एवं न्यूट्रॉन परमाणु केंद्र में हाते हैं। ऋ णात्मक आवेशित कण सिर्फ परिधि पर ही रहते हैं। उसी तरह मनुष्य की चेतना, मन एवं जीवन में सभी नकारात्मकता और व्यसन बाहरी परिधि पर ही होते हैं।

क्रोध का प्रदर्शन करना गलत नहीं है, लेकिन इसके प्रति सजग नहीं होने से आपको ही नुकसान पहुंचता है। कभी-कभी आप जानबूझ कर गुस्सा दिखा सकते हैं। जैसे एक मां अपनी संतान पर क्रोधित होती है। अगर वे किसी खतरे से खेल रहे हों, तो वह सख्ती से पेश आ सकती है या उन पर चिल्ला सकती है। क्रोध दिखाने के लिए उपयुक्त स्थान होना चाहिए, पर जब आप क्रोधित होते हैं, तब आप पर क्या बीतती है? आप पूरी तरह से हिल जाते हैं। क्रोधित होने के परिणामों को देखिए। क्या आप कभी क्रोध में लिए गए फैसलों से अथवा क्रोध में कहे शब्दों से खुश रहे हैं? नहीं, क्योंकि आप अपनी संपूर्ण सजगता खो देते हैं। अगर आप क्रोध करते समय पूरी तरह से सजग हैं और क्रोध करने का अभिनय कर रहे हैं, तो कोई हर्ज नहीं है।

क्रोध हमेशा उन घटनाओं पर होता है, जो पहले ही बीत चुकी हैं। क्या उन बातों पर क्रोध करना उचित है, जिनको आप बदल नहीं सकते? मन हमेशा भूतकाल एवं भविष्य के बीच में डोलता रहता है। मन भूतकाल की घटना को लेकर क्रोधित होता है, पर यह क्रोध व्यर्थ है, क्योंकि हम अतीत को बदल नहीं सकते। मन जब भविष्य में होता है, तो वह ऐसी बातों के प्रति चिंतित रहता है, जो शायद हो या न हो। मन जब वर्तमान क्षण में होता है, तब चिंता एवं क्रोध निरर्थक लगते हैं।साधना से मन केंद्रित हो जाता है, जिससे छोटी-छोटी घटनाओं में वह विचलित नहीं होता है। यहीं पर आत्मज्ञान, अपने मन व चेतना के स्वभाव का ज्ञान और हमारी प्रकृति में विकृति आने के मूल कारण का ज्ञान सहायक होता है। जब आप तनावग्रस्त होते हैं या थके हुए होते हैं, तब आप अपनी सहज प्रकृति खो देते हैं और क्रोधित हो जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में संसार के सभी सद्गुण निहित हैं। वे केवल नासमझी एवं तनाव के आवरण से ढक जाते हैं। हमें सिर्फ अपने सद्गुणों का अनावरण करने की आवश्यकता है, जो हममें पहले से ही निहित हैं।

कुछ श्वास की प्रक्रिया, प्राणायाम एवं ध्यान मन को शांत करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली हैं। श्वास के बारे में जानना बहुत आवश्यक है। श्वास से हमें कुछ सीखना चाहिए, जो हम भूल चुके हैं। मन की हर लय के अनुसार एक विशेष श्वास की लय होती है और श्वास की हर लय के अनुसार एक विशेष भावना पैदा होती है। जब आप अपने मन पर सीधे नियंत्रण नहीं कर पाते, तब श्वास के द्वारा मन को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं। ध्यान यानी अतीत एवं अतीत की घटनाओं का क्रोध निकाल देना। हर क्षण को स्वीकार करते हुए हर क्षण को संपूर्ण गहराई से जीना ध्यान है। प्राय: वर्तमान क्षण को स्वीकार नहीं कर पाने पर क्रोध आता है। उत्तमता की अधिक अपेक्षा करने से क्रोध आता है। जब आप आनंदविभोर होते हैं, तब आपकी दृष्टि उत्तमता पर नहीं रहती है। अगर आप उत्तमता पाने की अपेक्षा कर रहे हैं, तब आप आनंद के स्त्रोत पर स्थित नहीं हैं।संसार ऊपरी सतह से अपूर्ण प्रतीत होता है, परंतु भीतर से वह संपूर्ण है। परिपूर्णता अप्रत्यक्ष है, अपूर्णता प्रत्यक्ष है। ज्ञानी ऊपरी सतह पर नहीं जाते, बल्कि उसकी जड़ों की गहराइयों तक जाते हैं। चीजें धुंधली नहीं हैं, बल्कि हमारी नजर धुंधली पड़ गई है। इस समष्टि में अनगिनत क्रियाएं हो रही हैं, फिर भी यह परम चेतना संपूर्ण है, निरंजन है। यह जानो और सहज हो जाओ।


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