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कड़ाके की ठंड से आराध्य को भी बचाने का प्रयत्न

कड़ाके की ठंड से आराध्य को भी बचाने का प्रयत्न हो रहा है। तकरीबन सभी मंदिरों में भगवान को यथाशक्ति गर्म एवं ऊनी पोशाक तो धारण ही कराई गई है, उनके लिए रजाई-कंबल की भी व्यवस्था की गई है। बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी जैसे भी कुछ मंदिर हैं, जहां

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 22 Dec 2014 10:41 AM (IST)Updated: Mon, 22 Dec 2014 11:17 AM (IST)
कड़ाके की ठंड से आराध्य को भी बचाने का प्रयत्न

अयोध्या कड़ाके की ठंड से आराध्य को भी बचाने का प्रयत्न हो रहा है। तकरीबन सभी मंदिरों में भगवान को यथाशक्ति गर्म एवं ऊनी पोशाक तो धारण ही कराई गई है, उनके लिए रजाई-कंबल की भी व्यवस्था की गई है। बजरंगबली की प्रधानतम पीठ हनुमानगढ़ी जैसे भी कुछ मंदिर हैं, जहां अगहन मास की अमावस्या से लेकर माघ अमावस्या तक चौबीसों घंटे अंगीठी जलती है। हर दिन के हिसाब से बजरंगबली की ऊनी पोशाक है ही, पांच किलो रुई की मखमली रजाई है, जिसे उन्हें ओढ़ाया जाता है।

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निर्वाणी अनी अखाड़ा के राष्ट्रीय महासचिव महंत गौरीशंकर दास के अनुसार हनुमानगढ़ी में विराजमान हनुमान की आराधना महाराज के रूप में होती है और मौसम के हिसाब से उन्हें राजसी सुविधा प्रदान की जाती है। आराध्य को राजसी सुविधा प्रदान करने की बात हो तो वैष्णव उपासकों की प्रमुख पीठ कनकभवन भी पीछे नहीं है। शयन के वक्त उच्च कोटि का कंबल एवं सुबह-शाम लहकने वाले इमली के कोयले की अंगीठी ठिठुरन को कनकबिहारी सरकार के करीब तक नहीं फटकने देती। बिड़ला मंदिर में विराजमान भगवान राजराजेश्वर के लिए भी ठंड से बचाव की व्यवस्था में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है। उनके पास दर्जन भर के करीब ऊनी पोशाकें हैं, रात के लिए मखमली रजाई है और शीतलहरी से निपटने के लिए उच्च क्षमता का हीटर है। बिड़ला मंदिर एवं धर्मशाला के प्रबंधक पवन ङ्क्षसह के अनुसार भगवान को भोग भी मौसम के अनुरूप लगाया जाता है। ठंड में उड़द की दाल, पकौड़ी,घी-तेल में तले व्यंजन की प्रधानता रहती है। मणिरामदास जी की छावनी, लक्ष्मणकिला,रामवल्लभाकुंज, जानकीमहल जैसे प्रमुख मंदिरों सहित सैकड़ों अन्य मंदिरों में भी मौसम के लिहाज से भगवान की पूजा-सेवा में पूर्ण समर्पण बरता जाता है।

रामलला को अंगीठी के लाले&

रामनगरी के अन्य मंदिरों में भगवान को शीतलहरी से बचाने के लिए भले ही समुचित प्रबंध किया जाता हो,पर रामलला इस फलक पर भी मुफलिसी के शिकार हैं। उनके पास कामचलाऊ गर्म कपड़े ही हैं। मात्र एक रजाई है। खुले एवं ऊंचे टीले पर हाड़कपाऊ ठंड से बचने के लिए उनके लिए अंगीठी भी नहीं जलाई जा सकती। रामलला के मुख्य अर्चक आचार्य सत्येंद्रदास के अनुसार यह प्रबंध अदालती आदेशों से निर्दिष्ट है और हम चाहकर भी इस दिशा में कोई बेहतरी नहीं कर सकते।


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