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शक्तिपीठ कालीघाट

18 वीं सदी में ही स्थापित हुआ शक्ति उपासना का केंद्र काली घाट। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक दस महाविद्याओं में प्रमुख और शक्ति-प्रभाव की अधिष्ठात्री देवी काली का प्रभाव लाखों कोलकाता वासियों के मन पर है।

By Edited By: Published: Fri, 19 Oct 2012 10:39 AM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2012 10:39 AM (IST)
शक्तिपीठ कालीघाट

कोलकाता। 18 वीं सदी में ही स्थापित हुआ शक्ति उपासना का केंद्र काली घाट। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक दस महाविद्याओं में प्रमुख और शक्ति-प्रभाव की अधिष्ठात्री देवी काली का प्रभाव लाखों कोलकाता वासियों के मन पर है। महानगर के दक्षिणी हिस्से में गंगा के तट पर बसा कालीघाट अंचल का काली मंदिर न सिर्फ करोड़ों लोगों की धार्मिक आस्था के केंद्र में है बल्कि महानगर की संस्कृति को इसने खास आयाम दिया है। समूचे देश के काली मंदिरों में यह मंदिर अन्यतम है। कहा जाता है कि भक्तों की मंगल कामना के लिए बरीशा के शिवदेव राय चौधरी ने इस मंदिर का निर्माण शुरू किया और उनके पुत्र रामलाल व भतीजे लक्ष्मीकांत ने इसे पूरा किया। सन् 1809 में निर्मित इस आठचाला मंदिर में पक्की माटी का काम काल के थपेड़ों से आज नष्ट हो गया है। कालीघाट की काली खूब जा‌र्ग्रत हैं। प्रतिमा का आधा भाग अदृश्य है। काली का मुखमंडल काले पत्थरों से निर्मित है। जिह्वा, हाथ व दांत सोने से मढ़े हुए हैं। देवी के हाथ का खड़ग चांदी का बना है। मुण्ड चांदी का, गले के मुंडमाला सोना व चांदी के सथा माथे पर मुकुट सोने का बना है। छतरी चांदी की बनी है। कहा जा जाता है कि शिव के तांडव के समय सती के दाहिने पैर के अंगूठे के गिरने के कारण देश के 51 शक्तिपीठों में एक कालीघाट की काली हैं। वैसे कोलकाता का हल्दर परिवार भी अपने को मंदिर का संस्थापक कहता है।

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कालीघाट की काली की खासियत है उनकी सोने की विशाल जीभ जो उनकी जीवंतता का प्रमाण है। जय काली कलकत्तेवाली तेरा वचन न जाए खाली, और कलकत्ता में काली की दया से आदमी भूखा नहीं सोता, जैसे मुहावरे और मान्यताएं शक्ति की देवी की इसी सोने की जीभ के कारण ही पैदा हुई हैं। कहा जाता है कि सिर्फ मुख आंखे और जिह्वा का ही यहां निर्माण किया गया। भुजा का निर्माण बाद में हुआ। हर वर्ष स्नान यात्रा के दिन वि‌र्ग्रह को स्नान कराया जाता है। देवी को स्नान कराते समय धार्मिक मान्यताओं के कारण प्रधान पुरोहित की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है।

नाट्यमंदिर से होता है काली दर्शन-

गर्भगृह के ठीक सामने बने नाट्य मंदिर से देवी की प्रतिमा का भव्य दर्शन मिलता है। 1836 में धार्मिक आस्था संपन्न जमींदार काशीनाथ राय ने इसका निर्माण कराया था। मंदिर में ही बने जोर बंगला में देवी पूजन का कर्मकांड होता है। यहां काली के अलावा शीतला, षष्ठी और मंगलाचंडी के भी स्थान है। मंदिर प्रांगण में ही एक प्राचीन राधाकृष्ण मंदिर भी है जहां शाकाहारी प्रसाद अर्पित होता है और इसके लिए अलग कक्ष निर्धारित है। यहां कुडूपुकुर नाम से परिचित एक प्राचीन तालाब भी है। मंदिर में नवरात्र की अष्टमी को पशु बलि संपन्न होती है, एक ही झटके में धड़ से अलग हुए सिर की बलि देवी स्वीकार करती हैं।

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