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वृद्ध धार्मिक ग्रंथों की अग्निभेंट सेवा

विश्वभर में जो धार्मिक ग्रंथ वृद्ध होकर जर्जर हो जाते हैं। पन्ने फट जाते हैं, उन ज्ञान व भक्ति का मार्ग दिखाने वाले ग्रंथों व पुस्तकों की ससम्मान अग्निभेंट सेवा होती है। खुशहालपुर स्थित गुरुद्वारे में 18 जून तक चलने वाली अग्निभेंट सेवा का उद्देश्य है कि पवित्र ग्रंथों निरादर न हो।

By Edited By: Published: Tue, 12 Jun 2012 05:33 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jun 2012 05:33 PM (IST)
वृद्ध धार्मिक ग्रंथों की अग्निभेंट सेवा

विकासनगर। विश्वभर में जो धार्मिक ग्रंथ वृद्ध होकर जर्जर हो जाते हैं। पन्ने फट जाते हैं, उन ज्ञान व भक्ति का मार्ग दिखाने वाले ग्रंथों व पुस्तकों की ससम्मान अग्निभेंट सेवा होती है। खुशहालपुर स्थित गुरुद्वारे में 18 जून तक चलने वाली अग्निभेंट सेवा का उद्देश्य है कि पवित्र ग्रंथों निरादर न हो।

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गुरुद्वारा श्री गुरुग्रंथ साहिब अंगीठा साहिब खुशहालपुर में नौ जून से शुरू हुई अग्निभेंट सेवा आठ दिन तक चलेगी। यहां गुरु के उस वचन को पूरा किया जाता है, जिसमें उन्होंने धार्मिक ग्रंथों व पुस्तकों को बदहाली से बचाने का संदेश दिया था। अग्निभेंट सेवा के लिए गुरुद्वारे के सेवक विश्वभर से ऐसे फटे पुराने ग्रंथों को लाए हैं, जो वृद्ध स्वरूप जीर्ण हो चुके हैं। खुशहालपुर स्थित अंगीठा साहिब में जर्जर ग्रंथों को मखमली कपड़े से साफ करके नए सफेद वस्त्र में लपेटा जाता है। इसके बाद अग्निभेंट सेवा की जाती है। जिसमें पीला चोला पहने पंच प्यारों की विशेष भूमिका होती है। गुरु के सेवक पूर्ण विधि विधान से एक एक ग्रंथ को अपने सिर पर उठाकर पूरी आस्था के साथ हाल तक पहुंचाते हैं। अंगीठों को लकडि़यों व सामग्री से सजाया गया, पंचप्यारों ने हर अंगीठे की परिक्त्रमा कर अरदास के बाद अग्नि प्रज्जवलित की। दूसरे दिन अंगीठे के फूल चुने जाते हैं और सेवा के अंतिम चरण में हिमाचल प्रदेश के पांवटा साहिब में पंच प्यारों द्वारा फूलों को विधि विधान के साथ यमुना में प्रवाहित किया जाता है। मुख्य सेवादार हरशरण सिंह का कहना है कि सभी सेवादार निस्वार्थ भाव से सेवा में जुटे हैं। दूर दूर से सेवादार व संगत के लोग आए हैं। सुबह से भजन कीर्तन चल रहे हैं। यहां पर हर तीसरे माह सभी धर्मो के जर्जर हो चुके धर्म ग्रंथों की अग्निभेंट सेवा की जाती है। उन्होंने बताया कि इस बार पाकिस्तान, सिंगापुर, इंग्लैंड आदि देशों से धार्मिक ग्रंथ लाए गए हैं। सेवा का उद्देश्य यह है कि धर्म ग्रंथों का निरादर न हो और उनको ससम्मान मुक्ति मिल सके।

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