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नैमिषारण्यः 84 लाख योनियों से मुक्ति देती 84 कोसी परिक्रमा

नैमिषारण्य में 84 कोसी परिक्रमा शुरू हो रही है। इसका ऐतिहासिक महत्व है। बताते हैं कि यह परिक्रमा 84 लाख योनियों से मुक्ति देती है।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 26 Feb 2017 06:37 PM (IST)Updated: Mon, 27 Feb 2017 10:22 AM (IST)
नैमिषारण्यः 84 लाख योनियों से मुक्ति देती 84 कोसी परिक्रमा
नैमिषारण्यः 84 लाख योनियों से मुक्ति देती 84 कोसी परिक्रमा

नैमिषारण्य में सोमवार से 84 कोसी परिक्रमा शुरू हो रही है। इसका ऐतिहासिक महत्व है। बताते हैं कि यह परिक्रमा 84 लाख योनियों से मुक्ति देती है। नैमिष में प्रभु श्रीराम ने अयोध्यावासियों संग परिक्रमा की थी। इसी लिए परिक्रमार्थियों के समूह को रामादल कहा जाता हैं। सीतापुर और हरदोई में परिक्रमा के 11 पड़ाव हैं। फाल्गुन मास की प्रतिपदा से शुरू होने वाली नैमिष की 84 कोसी परिक्रमा सोमवार (27 फरवरी) से शुरू हो रही है। 15 दिवसीय इस परिक्रमा का समापन पूर्णिमा (12 मार्च) को मिश्रिख में दधीचि आश्रम पर होगा। इस परिक्रमा में कुल 11 पड़ाव आते है जिनमें सात सीतापुर में तथा चार हरदोई जिले में हैं। 

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चक्रकुंड में डुबकी 
नैमिषारण्य के पौराणिक चक्रकुंड में डुबकी लगाने के बाद परिक्रमार्थी कुंड के तट पर स्थित मंदिर में भगवान गणेश को लड्डू का भोग अर्पित कर तड़के परिक्रमा का शुभारंभ करते हैं। पहले पड़ाव के रूप में यह श्रद्धालु 27 फरवरी की रात कोरौना में विश्राम करते हैं। इस परिक्रमा में प्रति वर्ष लाखों की संख्या में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के अलावा हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, दिल्ली और कर्नाटक प्रांतों के संत, महंत और पीठाधीश्वरों समेत लाखों की संख्या में गृहस्थ श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। इसके अलावा इस परिक्रमा में बड़ी संख्या में नेपाल और मॉरीशस के श्रद्धालु शामिल होते हैं। परिक्रमा के दौरान अधिकांश परिक्रमार्थी 252 किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करते हैं। इसके अलावा कई परिक्रमार्थी वाहनों से तो तमाम संत और महंत, हाथी, घोड़ा व पीनस (पालकी) से इसे पूरा करते हैं। 
पौराणिक मान्यता 
चौरासी कोसी परिक्रमा समिति के अध्यक्ष एवं पहला आश्रम के महंत भरत दास (डंका वाले बाबा) का कहना है कि हिंदू धर्म में इस प्रकार की 15 दिनी परिक्रमा का स्कंद पुराण के अलावा अन्य कहीं उल्लेख नहीं है। यह परिक्रमा मानव के समस्त पापों को नष्ट कर चौरासी लाख योनियों से मुक्ति देती है। स्कंद पुराण के अनुसार यह परिक्रमा सबसे पहले भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने की थी। स्कंदपुराण के धर्मारण्य खंड में इस बात का वर्णन है कि भगवान श्रीराम ने भी अयोध्यावासियों के साथ यह परिक्रमा की थी। इसी कारण इस परिक्रमा में शामिल श्रद्धालुओं को रामादल कहा जाता है।
पंचकोसी परिक्रमा 
पौराणिक आख्यानकों के अनुसार जो व्यक्ति संपूर्ण परिक्रमा न कर सके वह यदि मिश्रित तीर्थ में पांच दिनों तक पंचकोसी परिक्रमा करेगा तो उसे पुण्य का लाभ मिलेगा। ललिता देवी मंदिर के प्रधान पुजारी एवं कालीपीठ के संस्थापक जगदंबा पुजारी ने बताया कि एक पौराणिक आख्यानक के अनुसार महर्षि दधीचि के अस्थिदान में आए सभी देवों एवं तीर्थगणों ने चक्र गिरे स्थान से चौरासी कोस की परिधि में अपना विश्राम स्थल बनाया था। भगवान श्रीराम के अश्वमेघ यज्ञ के समय यही चौरासी कोसी परिक्रमा यज्ञ की सफलता हेतु की गई थी। 
तीर्थो के होंगे दर्शन 
परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को जानकी कुंड, कुमनेश्वर, कुर्कुरी, मानसरोवर, कोटीश्वर, महादेव, कैलाशन, हत्या हरण, नर्मदेश्वर, दस कन्या, जगन्नाथ, गंगासागर, कपिल मुनी, नागालय, नीलगंगा, श्रृंगीऋषि, द्रोणाचार्य पर्वत, चंदन तालाब, मधुवसनक, व्यास गद्दी, मनु सतरूपा तपस्थली, ब्रम्हावर्त, दशाश्वमेघ, हनुमान गढ़ी, यज्ञवाराह कूप, हंस-हंसिनी, देव-देवेश्वर, रुद्रावर्त आदि तीर्थ स्थलों का दर्शन करने का सौभाग्य मिलता है।यह भी पढ़ें-सीतापुर को मुख्यमंत्री की सौगातें,नैमिष को २४ घंटे बिजली
कब और कहां रामादल करेगा विश्राम
27 फरवरी - पहला पड़ाव - कोरौना 
28 फरवरी - दूसरा पड़ाव - हर्रैया 
01 मार्च  - तीसरा पड़ाव - नगवा कोथावां 
02 मार्च - चौथा  पड़ाव - गिरधरपुर उमरारी 
03 मार्च - पांचवां पड़ाव - साकिन गोपालपुर 
04 मार्च - छठा पड़ाव - देवगवां 
05 मार्च - सातवां पड़ाव - मंडरुआ 
06 मार्च - आठवां पड़ाव -  जरिगवां 
07 मार्च - नवां पड़ाव - नैमिषारण्य 
08 मार्च - दसवां पड़ाव - कोल्हुआ बरेठी 
09 मार्च - 11 वां पड़ाव - मिश्रिख (यहां पंचकोसी परिक्रमा होगी)

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