Move to Jagran APP

जहां आस्था, वहीं मिल जाती है गंगा

स्वर्ग और धरती का संधिस्थल ही हरिद्वार है। यहां गंगा प्रकट होती है, इसलिए नाम पड़ा गंगाद्वार, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अस्थि विसर्जन और कहीं नहीं हो सकता। देवभूमि की सभी नदियां गंगा का ही रूप हैं और सभी में अस्थि विसर्जन शास्त्रसम्मत है। हरिद्वार का महत्व इसलिए ज्यादा बढ़ गया, क्योंकि यह सर्वसुलभ स्थल है।

By Edited By: Published: Sat, 25 Feb 2012 09:32 PM (IST)Updated: Sat, 25 Feb 2012 09:32 PM (IST)
जहां आस्था, वहीं मिल जाती है गंगा

देहरादून, जागरण संवाददाता। स्वर्ग और धरती का संधिस्थल ही हरिद्वार है। यहां गंगा प्रकट होती है, इसलिए नाम पड़ा गंगाद्वार, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि अस्थि विसर्जन और कहीं नहीं हो सकता। देवभूमि की सभी नदियां गंगा का ही रूप हैं और सभी में अस्थि विसर्जन शास्त्रसम्मत है। हरिद्वार का महत्व इसलिए ज्यादा बढ़ गया, क्योंकि यह सर्वसुलभ स्थल है। यहां से ऊपर भूगोल जटिल हो जाता है। रही बात कर्मकांड की तो इसका अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों के पास है और यही परंपरा भी है। संत तो आशीर्वाद देने के अधिकारी हैं। अस्थि विसर्जन को लेकर विवाद खड़ा करने के मूल में तो व्यवसाय है और प्रचार पाने की लालसा इसे तूल दे रही है। अस्थि विसर्जन के मामले में ऋषिकेश व हरिद्वार के तीर्थ पुरोहितों में बहस छिड़ी है। ऋषिकेश में अस्थि विसर्जन के बाद हरिद्वार के तीर्थ पुरोहित यह दावा कर रहे हैं कि केवल हरिद्वार में ही अस्थि विसर्जन हो सकता है, जबकि ऋषिकेश के तीर्थ पुरोहित ऐसा नहीं मानते। अस्थि विसर्जन को लेकर चारधाम के धर्माचार्यो का सहज दृष्टिकोण है। वह कहते हैं कि हरिद्वार धरती और स्वर्ग का संधि स्थल है, इसलिए इसे ज्यादा महत्व मिला। फिर पुराने जमाने में आवागमन के साधन भी नहीं थे, सो कर्मकांड के लिए हरिद्वार ही प्रमुख स्थल बनता चला गया। रही बात अस्थि विसर्जन की तो वह गंगा के उद्गम से लेकर गंगा सागर तक कहीं भी किया जा सकता है। फिर देवभूमि के तो कण-कण में देवताओं का वास है। यहां से बहने वाली हर नदी पतित पावनी गंगा का ही रूप है। धर्माचार्यो के अनुसार गंगा धरती और अलकनंदा स्वर्ग में बहती है। देवप्रयाग में भागीरथी भी अलकनंदा का स्वरूप धारण कर लेती है और हरिद्वार पहुंचने पर गंगा के रूप में प्रकट होती है। गंगा ही कैलाश में मंदाकिनी, स्वर्ग में अलकनंदा और मणिद्वीप में नंदाकिनी है। इसलिए कहीं भी अस्थि विसर्जन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। धर्माचार्यो की मानें तो विवाद के मूल में सिर्फ व्यवसाय है, जिसे प्रचार पाने की होड़ तूल दे रही है। हां, इतना जरूर है कि कर्मकांड सिर्फ ब्राह्मणों को ही करना चाहिए। सनातनी परंपरा में जो कार्य विभाजन हुआ है, वह कर्मकांड करने का हक उसी को देता है, जो टीका लगाता है।

prime article banner

व्यापारिक दृष्टिकोण के चलते ही ऐसा हो रहा है। शास्त्र तो कहते हैं कि हजार मील दूर से भी कोई गंगा का स्पर्श करे तो उसे मुक्ति मिल जाती है। कौन कहां अस्थि विसर्जन करता है, यह उसकी श्रद्धा पर निर्भर है। जितना पावन गंगा का उद्गम है, उतना ही संगम भी। -आचार्य पवन उनियाल, रावल, यमुनोत्री धाम

गंगा मोक्षदायिनी है और यमुना फलदायिनी, इसलिए गंगा में अस्थि विसर्जन की मान्यता है, लेकिन ऐसा कोई ग्रंथ नहीं कहता कि सिर्फ हरिद्वार में ही अस्थि विसर्जन हो सकता है। हरिद्वार सुविधाजनक स्थल है, इसलिए वहां ज्यादा लोग पहुंचते हैं। बात कर्मकांड की करें तो वह सिर्फ ब्राह्मणों का कार्य है। -पं.संदीप सेमवाल, मुख्य पुजारी, गंगोत्री धाम हरिद्वार को पुण्य क्षेत्र माना गया है, इसलिए अस्थि विसर्जन को लोग वहां पहुंचते हैं। शास्त्रों के अनुसार गंगा में कहीं भी अस्थि विसर्जन हो सकता है, लेकिन कर्मकांड ब्राह्मण के हाथों ही होगा। हालांकि, अपरिहार्य परिस्थितियों में अगर संत भी यह कार्य कर दें तो कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। -आचार्य शंकर लिंगम, प्रधान पुजारी, केदारनाथ धाम

पुरोहित क्या कहते हैं, यह उनका अपना मामला है, लेकिन शास्त्रों में ऐसा कहीं उल्लेख नहीं है कि अस्थि विसर्जन हरिद्वार के अलावा अन्य स्थानों पर नहीं हो सकता। यह जरूर है कि कर्मकांड सिर्फ ब्राह्मण ही कर सकते हैं। संन्यास की दीक्षा लेने के साथ ही संतों के पास से यह अधिकार चला गया। -पं.जगदंबा प्रसाद सती, धर्माधिकारी, बदरीनाथ धाम

तीर्थ पुरोहितों का यह कहना सही है कि कर्मकांड सिर्फ वही कर सकते हैं। इसके लिए हरिद्वार में जगह निश्चित है। विजयाहोम के बाद संन्यासी को न तो खुद और न खुद के नेतृत्व में इस तरह का कार्य (वरूणाश्रम) करवाने का कोई अधिकार रह जाता है। -स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, परमाध्यक्ष, परमार्थ आश्रम हरिद्वार

चिदानंद मुनि को कोई अधिकार नहीं कि वे आदिकाल से चली आ रही परंपरा को तोड़ने का प्रयास करें। इससे संत समाज की छवि भी खराब होगी। अस्थि विसर्जन का कार्य तीर्थ पुरोहितों का है। -महंत ज्ञानदास, अध्यक्ष, अखाड़ा परिषद

हिंदू धर्म की मान्यताओं में ऋषिकेश में अस्थि विसर्जन का जिक्र नहीं हुआ है। फिर भी ऐसा होने लगा है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है। संन्यासी को परंपराओं से खिलवाड़ शोभा नहीं देता। -बाबा हठयोगी, राष्ट्रीय प्रवक्ता अखिल भारतीय संत समिति जो कुछ हुआ, वह परंपरा के विरुद्ध है। ऋषिकेश में अस्थि विसर्जन की परंपरा नहीं है और ना ही यह अधिकार संन्यासी को है। इसलिए परंपरा से खिलवाड़ करना उचित नहीं। चिदानंद मुनि का यह कार्य अशोभनीय है। -श्रीमहंत हरि गिरि, महामंत्री, अखाड़ा परिषद ऋषिकेश में अस्थि विसर्जन करना ठीक नहीं है। धर्मशास्त्र इसकी इजाजत नहीं देते। आदिकाल से चली आ रही परंपराओं के साथ छेड़छाड़ किसी भी दृष्टि से धर्मसम्मत नहीं है। -महंत बलवंत सिंह, अध्यक्ष नई अखाड़ा परिषद

गंगा को कलियुग का तीर्थ बताया गया है इसलिए हर संस्कार के लिए गंगा किनारे स्थित प्रत्येक तीर्थ व स्थल का महत्व होता है। पौराणिक काल से ही श्रद्धालु गंगा तटीय तीर्थो में अस्थि विसर्जन करते आए हैं। अस्थि विसर्जन जैसे कार्य संत नहीं करा सकते। -डॉ. रामेश्वर दास श्रीवैष्णव, हनुमतपीठाधीश्वर मायाकुंड प्राचीन हनुमान मंदिर गंगा पापनाशिनी है और इसकी एक बूंद से ही सब पाप तर जाते हैं। इसलिए गंगा के जल को अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। हरिद्वार में अस्थि विसर्जन होते हैं मगर ऐसा नहीं कि अन्य स्थानों में पुण्य कम हो जाए। -महंत रामेश्वर गिरी महाराज सोमेश्वर महादेव मंदिर

यह कोई विवाद का प्रश्न नहीं, बल्कि श्रद्धा का सवाल है। मन चंगा तो कठौती में गंगा की कहावत को समझने की जरूरत आज लोगों को है। व्यक्ति की श्रद्धा है कि वह अस्थियां गंगा में कहां विसर्जित करता है। गंगा के साथ ही यमुना आदि नदियों में भी अस्थि विसर्जन किया जाता है। -महंत ईश्वरदास महाराज ईश्वर आश्रम

गोमुख से लेकर गंगा सागर तक कहीं भी गंगा में अस्थि विसर्जन हो सकता है। इस तरह के विवाद श्रद्धालुओं की आस्था को ठेस पहुंचाते हैं। तीर्थ पुरोहित इसे अपने व्यवसाय से जुड़ा बता रहे हैं, मगर यह श्रद्धा का विषय है। -महंत हरिनारायणाचार्य, श्री पुष्कर मंदिर

हरिद्वार के पुरोहितों द्वारा ऋषिकेश में अस्थि विसर्जन को लेकर किया जा रहा विरोध गलत है। पौराणिक काल से ही ऋषिकेश में ही अस्थि विसर्जन के साथ अन्य कर्मकांड किए जाते हैं। यह आस्था से जुड़ा प्रश्न है। -महंत विनय सारस्वत, अध्यक्ष तीर्थ पुरोहित समिति ऋषिकेश ऋषिकेश में अस्थि विसर्जन की परंपरा नहीं है। तमाम धर्मग्रंथों में केवल हरिद्वार में ही अस्थि विसर्जन का विधान बताया गया है। अस्थि विसर्जन का अधिकार केवल तीर्थ पुरोहितों के ही पास है, लेकिन अब इस परंपरा को तोड़ने की कोशिश हो रही है। -उ”वल पंडित, अध्यक्ष, अखिल भारतीय युवा तीर्थ पुरोहित महासभा धर्म विरुद्ध आचरण करने वालों को संत और पंडित सही मार्ग दिखाते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण है कि संत ही हिंदू धर्मावलंबियों को गलत राह दिखाकर शास्त्रीय मान्यताओं की अनदेखी कर रहा है। -यतींद्रनाथ सिखौला, तीर्थ पुरोहित

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.