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66वां राम प्राकट्योत्सव: रामलला के अर्चक को सौंपा गया कलश

सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रामजन्मभूमि के वाद में रामजन्मभूमि सेवा समिति पुन: पार्टी बनना चाहती है। यह जानकारी सेवा समिति के महामंत्री रामप्रसाद मिश्र ने दी। उन्होंने बताया कि जिन राजेंद्र सिंह विशारद ने इस वाद में सेवा समिति के प्रतिनिधि की हैसियत से रामलला के सखा का समर्थन किया

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 23 Dec 2014 09:36 AM (IST)Updated: Tue, 23 Dec 2014 09:42 AM (IST)
66वां राम प्राकट्योत्सव: रामलला के अर्चक को सौंपा गया कलश

अयोध्या। सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन रामजन्मभूमि के वाद में रामजन्मभूमि सेवा समिति पुन: पार्टी बनना चाहती है। यह जानकारी सेवा समिति के महामंत्री रामप्रसाद मिश्र ने दी। उन्होंने बताया कि जिन राजेंद्र सिंह विशारद ने इस वाद में सेवा समिति के प्रतिनिधि की हैसियत से रामलला के सखा का समर्थन किया था, उन्हें इसका हक ही नहीं था। वे यह वाद दाखिल करने वाले गोपाल सिंह विशारद के पुत्र तो थे पर यह वाद गोपाल सिंह विशारद का वैयक्तिक न होकर सेवा समिति के महामंत्री की हैसियत से था और सेवा समिति का सामूहिक निर्णय आज भी इस वाद में किसी का समर्थन न कर स्वयं पार्टी बने रहने का है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि रामजन्मभूमि मामले की प्रथम वादी सेवा समिति ही थी।

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66वें राम प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से रंगमहल बैरियर पर रामलला के अर्चक अशोकदास को रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से पूर्वाह्न कलश सौंपा गया। कलश सौंपने वालों में सेवा समिति के महामंत्री रामप्रसाद मिश्र, संयोजक संजय शुक्ल, उपाध्यक्ष रामभद्र पाठक, मंत्री हरिशंकर सिंह, गोपीनाथ शुक्ल, रामप्रसाद यादव आदि रहे। इस मौके पर सेवा समिति के पदाधिकारियों के साथ नगर पालिकाध्यक्ष राधेश्याम गुप्त एवं सभासद ङ्क्षपटू मांझी भी रहे। समिति के पदाधिकारी बुधवार को रामलला के अर्चक से कलश वापस लेकर शोभायात्रा निकालेंगे। वह 22-23 दिसंबर सन् 1949 की अर्धरात्रि थी, जब विवादित रामजन्मभूमि पर रामलला के प्राकट्य का दावा किया गया। प्रति वर्ष इसी तारीख को ध्यान में रखकर रामजन्मभूमि सेवा समिति की ओर से राम प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। छह दिसंबर 1992 को ढांचा ध्वंस से पूर्व तक प्राकट्योत्सव का केंद्र रामलला का गर्भगृह होता रहा पर उसके बाद से प्राकट्योत्सव के आयोजन में गतिरोध आ गया। यद्यपि पूर्व की तरह प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में शोभायात्रा निकलने की परंपरा बदस्तूर है पर गर्भगृह में पूजन की परंपरा संक्रामित हुई। जहां पूर्व में सेवा समिति के पदाधिकारी गर्भगृह में जाकर प्राकट्योत्सव के कलश का पूजन करते रहे, वहीं बाद में समिति के पदाधिकारी तो रोक दिए गए पर कलश गर्भगृह में ले जाया जाता रहा। 17 अक्टूबर 2002 को विहिप की अगली कतार के तीन दर्जन से अधिक नेताओं के जबरन गर्भगृह के करीब तक प्रवेश कर जाने के बाद से अदालती आदेश का अनुपालन सख्त हुआ और उसी के परिणामस्वरूप राम प्राकट्योत्सव का कलश भी गर्भगृह तक पहुंचना प्रतिबंधित हो गया। हालांकि सेवा समिति के महामंत्री ने विश्वास जताया कि उन्होंने रामलला के अर्चक को प्राकट्योत्सव का कलश सौंपा है और वह गर्भगृह में रखा जाएगा।

कहां रखा प्राकट्योत्सव का कलश- प्राकट्योत्सव के कलश को लेकर रहस्य बना हुआ है। अधिग्रहीत परिसर के रिसीवर मंडलायुक्त विशाल चौहान ने बताया कि बैरियर नं. दो पर रामलला के अर्चक प्राकट्योत्सव का कलश लेकर परंपरागत ढंग से पूजन करते हैं। उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अक्षरश: पालन किया जाता है। विधि विशेषज्ञों की मानें तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते गर्भगृह क्या अधिग्रहीत परिसर तक में भी कलश ले जाने की इजाजत नहीं है। विगत कुछ वर्षों से बीच का रास्ता निकालते हुए रामलला के अर्चक प्राकट्योत्सव का कलश तो स्वीकारते हैं पर उसे गर्भगृह तक न ले जाकर अधिग्रहीत परिसर से ही लगे फकीरेराम मंदिर में स्थापित कर देते हैं। समझा जाता है कि इस बार भी कलश वहीं स्थापित किया गया पर इस बारे में अर्चक ने कुछ भी बताने से इंकार किया।


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