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खरमास के समापन के साथ शुरू हो जाएंगे मांगलिक कार्य

भगवान भास्कर का मकर राशि में प्रवेश इस बार 14 जनवरी की देर रात 1.20 बजे हो रहा है। इसके साथ ही सूर्यदेव उत्तरायण में आ जाएंगे। ऐसे में मकर संक्रांति यानी खिचड़ी पर्व 15 को मनाया जाएगा और खरमास के चलते एक माह से ठप मांगलिक कार्य शुरू हो

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 13 Jan 2015 02:56 PM (IST)Updated: Tue, 13 Jan 2015 02:59 PM (IST)
खरमास के समापन के साथ शुरू हो जाएंगे मांगलिक कार्य

वाराणसी। भगवान भास्कर का मकर राशि में प्रवेश इस बार 14 जनवरी की देर रात 1.20 बजे हो रहा है। इसके साथ ही सूर्यदेव उत्तरायण में आ जाएंगे। ऐसे में मकर संक्रांति यानी खिचड़ी पर्व 15 को मनाया जाएगा और खरमास के चलते एक माह से ठप मांगलिक कार्य शुरू हो जाएंगे।

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संक्रांति का पुण्य काल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से 16 घंटे तक होगा। इस अवधि में स्नान- दान और नियत खानपान का विधान है। ज्योर्तिविद पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार सूर्य जिस राशि पर स्थिर हों उसे छोड़ कर जब दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं उस काल विशेष को ही संक्रांति कहते हैं। इस प्रकार हिंदू मास में 12 संक्रांतियां होती हैं जिसमें मकर से लेकर मिथुन राशि की संक्रंति तक सूर्य उत्तरायण होते हैं। कर्क से धनु संक्रांति तक दक्षिणायन माना गया है। उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन उनकी रात्रि मानी गई है।

कहां करें स्नान, दें दान- मकर संक्रांति स्नान दान का विशेष पर्व है। इस अवसर पर प्रयाग संगम, काशी, समुद्र या किसी तीर्थ स्थान में स्नान का विधान है। असहायों व पुरोहितों को तिल, गरम वस्त्र, खिचड़ी, चावल, सब्जी आदि दान किया जाता है। मान्यता है कि इससे पापों का क्षय और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। संशय समाधान -लोकमान्यता है कि गुरुवार को खिचड़ी न तो पकाई और न ही खायी जाती है। इस बार गुरुवार को मकर संक्रांति पडऩे से लोगों में संशय है लेकिन धर्मशास्त्र के अनुसार मकर संक्रांति के पुण्य के नाते इस दोष में कमी आ जाती है।

सूर्य उपासना का पर्व - शास्त्र सम्मत है कि दक्षिणायन में शुभ कार्य निषेध है। मूलत: मकर संक्रांति सूर्य उपासना का पर्व है। स्कंद पुराण में सूर्य को साक्षात निश्चित रूप से दिव्य आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, धन, सुख, परिवार, इच्छा विकास से मोक्ष तक का कारक माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के आठवें अध्याय में अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि उत्तरायण काल में मृत्यु लोक का परित्याग करने वाले को जन्म मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। भागवत पुराण के अनुसार महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी इच्छा मृत्यु वर के आधार पर मकर संक्रांति पर्व पर ही मृत्यु का वरण किया। इस दिन भगवान भास्कर की आराधना करनी चाहिए।


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