क्यों कि जाती है इस ऋतु में कामदेव की पूजा
वसंत ऋतु में हर किसी में एक नई ऊर्जा का प्रभाव दिखाई देता है। ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा के द्वारा वसंतोत्सव मनाया जाता है। इस दिन कामदेव की पूजा की जाती है, क्योंकि प्रकृति नवशृंगार करके वातावरण को मादक बनाने लगती है।
वसंत ऋतु में हर किसी में एक नई ऊर्जा का प्रभाव दिखाई देता है। ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा के द्वारा वसंतोत्सव मनाया जाता है। इस दिन कामदेव की पूजा की जाती है, क्योंकि प्रकृति नवशृंगार करके वातावरण को मादक बनाने लगती है।
वसंत के आगमन का उत्सव है वसंत पंचमी। वसंत में हर ओर प्रकृति अपने उल्लासमयी रूप में रहती है। शीत का प्रभाव कम होते ही वायु आनंदमयी हो जाती है। खेतों में लहरा रही हरी-हरी फसलें पीतांबर ओढ़ लेती हैं।
विभिन्न रंगों के पुष्प वाटिकाओं में खिल कर चारों तरफ अपनी सुगंध से हर किसी को मदमस्त कर देते हैं। प्रकृति द्वारा प्रदत्त यह ऊर्जा हर किसी में अपना प्रभाव दिखाने लगती है। हमारे भीतर संपूर्ण प्रकृति के प्रति प्रेम का स्फुरण होने लगता है और हर किसी कार्य में उत्साह के साथ प्रवृत्त होने लगते हैं। संपूर्ण सृष्टि में काम का संचरण प्रतीत होने लगता है। इस दिन कामदेव की पूजा भी होती है। वस्तुत: यह ऋतु हमारे भीतर असीम ऊर्जा का संचार करने लगती है। ऐसे में हमें आवश्यकता पड़ती है अपनी इस ऊर्जा के सही प्रबंधन की, ताकि हम इस ऊर्जा का अधिक से अधिक उपयोग कर सकेें और यह व्यर्थ कार्र्यों में व्यय न हो पाए। ऐसे में वसंत पंचमी का पर्व हमें अपनी ऊर्जा को ज्ञान और विवेक की ओर मोड़ देने के लिए प्रेरित करता है। यही कारण है कि इस दिन सरस्वती पूजा का विधान किया गया। इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा का निहितार्थ यही है कि हम ज्ञान और विवेक का संबल अपने कार्र्यों में बनाए रखें, ताकि अनीति के रास्ते पर जाने से बच जाएं और जो भी करें, वह सभी के हित में हो। माता सरस्वती विद्या, कला और संगीत की देवी हैं। हम अपनी ऊर्जा को ज्ञान प्राप्त करने में, कला और संगीत के संवद्र्धन में लगाएं, तो हम गलत रास्ते पर जाने से बच सकते हैं और अपने सद्गुणों का विकास कर सकते हैं।
मान्यता के अनुसार, माघ मास की शुक्ल पक्ष पंचमी को ही माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी और उन्होंने प्रथम शब्द नाद की उत्पत्ति की, इसे ही हम वसंत पंचमी कहते हैं। माना जाता है कि यही नाद आगे चलकर ज्ञान का आधार बना। यही कारण है कि देवी सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की जननी माना जाता है। उनके चित्र में वीणा संगीत की, पुस्तक विचार की और मयूर कला की अभिव्यक्ति है।
सरस्वती के जन्म के विषय में पुराणों में एक कथा है। ब्रह्मांड की रचना के बाद जब ब्रह्मा ने मनुष्य और पशुओं की रचना की, तो यह महसूस किया कि नाद यानी शब्द बिना सृष्टि का कोई मतलब नहीं है। शब्द के बिना कोई भी अपने विचार एक दूसरे तक नहीं पहुंचा पाएगा। कहते हैं कि उन्होंने मां सरस्वती की उत्पत्ति की। सरस्वती द्वारा वीणा को झंकृत करने से पैदा हुई गूंज ही वह आदिशब्द माना जाता है, जिससे आगे चलकर ज्ञान का विकास हुआ। ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा के द्वारा वसंतोत्सव मनाया जाता है। इस दिन कामदेव की पूजा की जाती है, क्योंकि प्रकृति नवशृंगार करके वातावरण को मादक बनाने लगती है। इस दिन लोग अपने बच्चों को अक्षर का अभ्यास भी करवाते हैं।
वसंत ऋतु द्वारा प्राप्त अपनी असीमित ऊर्जा को ज्ञान और विवेक द्वारा सत्कर्र्मों में लगाकर हम अपनी ऊर्जा का समुचित प्रबंधन कर सकते हैं।