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इस बार यह यात्रा इसलिए रहेगी खास

देवता और दानवों के सागर मंथन के पश्चात अन्य अनमोल रत्नों के साथ अमृत कुंभ भी निकाला था। इस कुंभ को स्वर्ग में हिफाजत के साथ पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्द्रपुत्र जयंत पर सोंपी गई थी। इस शुभ काम में सूर्य, चंद्र, शनि एवं बृहस्पति (गुरू) का बड़ा योगदान था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 26 Jan 2015 04:36 PM (IST)Updated: Mon, 26 Jan 2015 04:41 PM (IST)
इस बार यह यात्रा इसलिए रहेगी खास

देवता और दानवों के सागर मंथन के पश्चात अन्य अनमोल रत्नों के साथ अमृत कुंभ भी निकाला था। इस कुंभ को स्वर्ग में हिफाजत के साथ पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्द्रपुत्र जयंत पर सोंपी गई थी। इस शुभ काम में सूर्य, चंद्र, शनि एवं बृहस्पति (गुरू) का बड़ा योगदान था।

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अमृतकुंभ स्वर्ग तक ले जाते समय देवताओं को राक्षसों का चार बार सामना करना पड़ा। इन चार हमलों में देवताओं ने अमृतकुंभ धरती पर यानि पृथ्वी रखा गया उन चार स्थानों पर प्रति बारह साल बाद कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

यह चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग (इलाहाबाद), त्र्यंबकेश्वर, और उज्जैन है। कुंभ मेले का जिन राशियों में बृहस्पति होने पर कुंभ रखा जाता है उन राशि में गुरू आने पर उस स्थान पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है।

यह ध्यान में रखना चाहिए कि हरिद्वार, प्रयाग, त्र्यंबकेश्वर, उज्जैन स्थानों के अलावा अन्य किसी भी स्थान पर कुंभमेला नहीं लगता। कुंभ पर्व एवं कुंभ योग ज्योतिष परंपराओं में कुंभ पर्व को कुंभ राशि एवं कुंभ योग से जोड़ा गया है। कुंभ योग विष्णु पुराण के अनुसार चार तरह के हैं।

जब गुरू कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेष राशि में प्रविष्ट होता है, तब कुंभ पर्व हरिद्वार में लगता है। जब गुरू मेष राशि चक्र में प्रवेश करता है और सूर्य, चन्द्रमा मकर राशि में माघ अमावास्या के दिन होते हैं तब कुंभ का आयोजन प्रयाग इलाहाबाद में किया जाता है।

सूर्य एवं गुरू सिंह राशि में प्रकट होने पर कुंभ मेले का आयोजन नाशिक (महाराष्ट्र) में गोदावरी नदी के मूल तट पर लगता है। गुरू कुंभ राशि में प्रकट होने पर उज्जैन में कुंभ पर्व मनाया जाता है।

त्र्यंबकेश्वर का कुंभ मेला सन 2015 एवं 2016 में सिंह राशि में गुरू प्रविष्ट होगा। अत: त्र्यंबकेश्वर में कुंभ मेले का आयोजन होगा ।

सिंह राशि के गुरू का प्रविष्ट होना बारह वर्षों के पश्चात होता है । इस पर्व को सिंहस्थ कहा जाता है। सिंहस्थ के संदर्भ में इन पंक्तियों से पुष्टि होती है।

सिंह गुरूज्ञतथा भानु चंद्रश्चंक्षयस्तथा ।

गोदावर्या भवेत्कुंभो जायतेह्यवनि मण्डले ।।

त्र्यंबकेश्वर सिंहस्थ कुंभ मेला सन 2015 एवं 2016 शुरूआत मंगलवार शके 1937 दिनांक 14/07/2015 को शाम 00/07बजे होगी।

समाप्ति श्रावण शुध्द 08 (अष्टमी) गुरूवार शके 1938 दिनांक 11/08/2016 को सुबह 07/26 बजे होगा।


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