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पांच शताब्दी में बदलता रहा स्वरूप, मेवा से सजने लगे फूल बंगले

ठाकुर जी के समक्ष सजने वाले फूल बंगले ने तकरीबन पांच शताब्दी में अनेक रूप देखे हैं। कई पड़ाव पार कर चुकी फूल बंगले की कला में पहले बांस की खपच्चियों का प्रयोग होता था, लेकिन अब इसका स्वरूप और विकसित हो गया है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 30 Mar 2015 02:35 PM (IST)Updated: Mon, 30 Mar 2015 02:40 PM (IST)
पांच शताब्दी में बदलता रहा स्वरूप, मेवा से सजने लगे फूल बंगले

वृंदावन। ठाकुर जी के समक्ष सजने वाले फूल बंगले ने तकरीबन पांच शताब्दी में अनेक रूप देखे हैं। कई पड़ाव पार कर चुकी फूल बंगले की कला में पहले बांस की खपच्चियों का प्रयोग होता था, लेकिन अब इसका स्वरूप और विकसित हो गया है।

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एक फूल बंगला सजाने में अब कई लाख रुपये खर्च होते हैं। न सिर्फ रंगीन फूलों बल्कि मेवों के बंगले भी सजाने का चलन शुरू हो गया है। ठाकुर जी के समक्ष फूल बंगला सजाने का दौर पंद्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में शुरू हुआ माना जाता है। चैतन्य महाप्रभु, गोस्वामी हित हरिवंश, स्वामी श्री हरिदास और संत श्री हरिराम व्यास आदि संतों के वृंदावन आगमन ने यहां सांस्कृतिक उत्कृष्टता बढ़ाया। इष्ट विग्रह को उन्होंने लता-कुंजों के मध्य सजाकर सेवा की। तभी से फूल बंगला कला मानी जाती है। यह कला धीरे-धीरे विकसित होती गई। फूल बंगला कला के लिए पहले बांस की खपच्चियां प्रयोग की जाती थीं। इस पर ही फूलों की लडिय़ां लपेटी जाती थीं।

अब फूल बंगले को तैयार करने में विदेशी फूलों का भी इस्तेमाल होता है। केले के तने का उपयोग करते हुए अनेक फ्रेमों में आकर्षक बेल-बूटे का भी प्रयोग किया जाता है। इससे बंगले की शोभा बढ़ जाती है।

वृंदावन शोध संस्थान के निदेशक डॉ. महेश नारायण शर्मा बताते हैं कि फूल बंगले में ऊपर की ओर मार्का लगाए जाते हैं। इससे यह शिखरनुमा भवन की तरह दिखता है। बंगले में मनमोहक जालियां और नक्काशीदार पाषाण जालियों की तरह ही इन पर अलंकृत फूल आदि से बने अनेक तरह के जाल श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं। फूल बंगले में श्रीविग्रह के सिंहासन के दोनों ओर आयताकार फ्रेम सिंहासन पर बाहर की तरफ दरवाजा और पीछे की ओर पिछवाई व द्वार होता है, उसके ऊपर बुर्जी लगाई जाती है। अगर फूल बंगला बुर्जीदार न बनाना हो तो श्रीविग्रह के ऊपर फूलों की लड़ी से कसा छप्पर बनाया जाता है। इसके अलावा और भी तरह-तरह की कलाकारी की जाती है।

इन मंदिरों में देखते ही बनती है फूल बंगले की छटा- वृंदावन के श्री बांकेबिहारीजी, राधा बल्लभ, राधा रमण, लाला बाबू, राधा दामोदर, रंगजी, यशोदानंदन, राधा मोहन, राधिका बल्लभ, गोदा-हरिदेव, निधिवन, गोविंद देव, राधा सनेह बिहारी, गौड़ीय मठ, राधा श्याम सुंदर आदि मंदिर

फूल बंगला सजाने के कारोबारी जुगल किशोर शर्मा बताते हैं कि फूल बंगलों को बनाने में देसी-विदेशी फूलों और केले के तने आदि का अधिक इस्तेमाल होता है। मगर अब बदले परिवेश में हर समय इनका सुलभ रहना संभव नहीं है, इसलिए बंगला बनाने में फोम, थर्माकोल की शीट, रंगीन कागज आदि का भी प्रयोग होने लगा है। इसके अलावा बादाम, अखरोट, पिस्ता, छुहारे और अंजीर आदि मेवों का प्रयोग करते हुए अनेक प्रकार के बंगले बनाए जाते हैं।

श्री बांकेबिहारी मंदिर में फूल बंगला कल से- श्री बांकेबिहारी मंदिर में कामदा एकादशी यानी मंगलवार से फूल बंगलों के सजने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। सावन माह में हरियाली तीज तक यह सिलसिला जारी रहेगा।


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