कालाष्टमी पर रात्रि में भगवान शिव के भैरव रूप की पूजा विधि जानें, दूर होगा डर और दर्द
मार्गशीर्ष मास की कालाष्टमी के दिन दिन भैरव जयंती भी मनाई जाती है। भैरव बाबा देवों के देव महादेव के अवतार हैं।
भैरव उत्पति की कथा
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने भोलेनाथ की वेशभूषा एवं उनके गणों को लेकर भगवान शिव के बारे में अशिष्ट बातें कहीं। इस पर शिव के क्रोध से विशालकाय दंडधारी प्रचंडकाय काया प्रकट हुई। यह काया ब्रह्मा जी का संहार करने दौड़ी। इस काया ने ब्रह्मा के एक शीश को अपने नाखून से काट दिया। भगवान शिव ने उसे शांत किया। तभी से ब्रह्मा जी के चार शीष शेष रह गये। जिस दिन इस विशाल काया प्रकट हुई वह मार्गशीर्ष मास की कृष्णाष्टमी का दिन था। भगवान शिव के क्रोध से उत्पन्न इस काया का नाम भैरव पड़ा। कालांतर में भैरव साधना बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में होने लगी।
तंत्र सम्राट हैं भैरव बाबा
तंत्रशास्त्र में असितांग-भैरव, रुद्र-भैरव, चंद्र-भैरव, क्रोध-भैरव, उन्मत्त-भैरव, कपाली-भैरव, भीषण-भैरव तथा संहार-भैरव आदि अष्ट-भैरव का उल्लेख मिलता है। ब्रह्मा जी का शीष काटने के कारण इन पर ब्रह्म हत्या का दोष भी लगा जिससे मुक्ति पाने के लिये कई वर्षों तक भटकने के पश्चात काशी में आकर इन्हें मुक्ति मिली। एक अन्य कथा के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य के संहार के लिये भगवान शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति मानी जाती है। अंधकासुर के वध के बाद भगवान शिव ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया।
भैरव अष्टमी व्रत व पूजा का महत्व
भैरव को भय का हरण और जगत का भरण करने वाला बताया गया। भैरव शब्द के इन तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियां समाहित मानी जाती हैं। वेदों में जिस परम पुरुष की महिमा का गान रुद्र रूप में हुआ उसी स्वरूप का वर्णन तंत्र शास्त्र में भैरव नाम से किया गया है। जिनके भय से सूर्य एवं अग्नि भी ताप लेते हैं, इंद्र-वायु व मृत्यु देवता अपने-अपने कामों में तत्पर हैं वे परम शक्तिमान भैरव हैं। भैरव का जन्म मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी के दिन हुआ था इसलिये इस दिन मध्यरात्रि के समय भैरव की पूजा आराधना की जाती है। रात्रि जागरण भी किया जाता है। दिन में भैरव उपासक उपवास भी रखते हैं। भैरव की साधना करने से हर तरह की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। विशेषकर शनि, राहू, केतु व मंगल जैसे मारकेश ग्रहों के कोप से जो जातक पीड़ित होते हैं उन्हें भैरव साधना अवश्य करनी चाहिये। भैरव के जप, पाठ और हवन अनुष्ठान से मृत्यु तुल्य कष्ट भी समाप्त हो जाते हैं।
काल भैरवाष्टमी पर व्रत व पूजन विधि
भैरव बाबा की पूजा रात्रि में की जाती है। पुरी रात शिव पार्वती एवं भैरव की पूजा की जाती है। भैरव बाबा तांत्रिको के देवता कहे जाते हैं इसलिये यह पूरा रात्रि में की जाती है। इस दिन काले कुत्ते की पूजा की जाती है। भैरव बाबा की पूजा करने से किसी के जीवन में डर, बीमारी, परेशानी, दर्द नहीं रहता है। अष्टमी के दिन प्रात:काल उठकर नित्य क्रिया से निवृत होकर स्नानादि कर स्वच्छ होना चाहिये। तत्पश्चात पितरों का तर्पण व श्राद्ध करके कालभैरव की पूजा करनी चाहिये। इस दिन व्यक्ति को पूरे दिन व्रत रखना चाहिये व मध्यरात्रि में धूप, दीप, गंध, काले तिल, उड़द, सरसों तेल आदि से पूजा कर भैरव आरती करनी चाहिये। उपवास के साथ-साथ रात्रि जागरण का भी बहुत अधिक महत्व होता है। काले कुत्ते को भैरव की सवारी माना जाता है इसलिये व्रत समाप्ति पर सबसे पहले कुत्ते को भोग लगाना चाहिये। इस दिन कुत्ते को भोजन करवाने से भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं।