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नवरात्र: नकारात्मकता को करें दूर

नवरात्र में हम अपने भीतर की नकारात्मक शक्तियों का विनाश करते हैं और विजयादशमी पर उन पर पूर्ण विजय प्राप्त करते हैं। श्री श्री रवि शंकर का चिंतन.. नवरात्र के नौ दिन का समय स्वयं के स्वरूप को पहचानने का और अपने मूल स्वरूप में आने का है। जैसे एक नवजात जन्म लेने से पहले अपन

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 02 Oct 2014 11:27 AM (IST)Updated: Thu, 02 Oct 2014 11:30 AM (IST)
नवरात्र: नकारात्मकता को करें दूर

नवरात्र में हम अपने भीतर की नकारात्मक शक्तियों का विनाश करते हैं और विजयादशमी पर उन पर पूर्ण विजय प्राप्त करते हैं। श्री श्री रवि शंकर का चिंतन..

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नवरात्र के नौ दिन का समय स्वयं के स्वरूप को पहचानने का और अपने मूल स्वरूप में आने का है। जैसे एक नवजात जन्म लेने से पहले अपनी मां के गर्भ में नौ महीने व्यतीत करता है उसी तरह एक साधक भी इन नौ दिनों और रातों मे उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के द्वारा अपने सच्चे श्चोत की ओर वापस आता है। जब नकारात्मक शक्तियां हमारे मन को घेरती हैं तो मन विचलित रहता है। राग, द्वेष, अनिश्चितता और भय नकारात्मक शक्तियां हैं। इन सब से राहत पाने के लिए अपने अंदर ऊर्जा के श्चोत में वापस जाएं। यही शक्ति है। कथाओं में मां दिव्य रूप में मधु-कैटभ, शुंभ-निशुंभ और महिषासुर जैसे असुरों का वध कर शांति और सत्य की स्थापना करती हैं। देवी ने जिन असुरों पर विजय प्राप्त की, वे नकारात्मक शक्तियों के प्रतीक हैं। ये असुर कौन हैं? मधु राग है और कैटभ का अर्थ है द्वेष। ये सबसे प्रथम असुर हैं। कई बार हमारा व्यवहार हमारे नियंत्रण में नहीं रहता। वह आनुवंशिक (जेनेटिक) है। रक्तबीजासुर का अर्थ है गहरी समाई हुई नकारात्मकता और वासनाएं। महिषासुर का अर्थ है जड़ता, एक भैंस की तरह। दैवी शक्ति ऊर्जा लेकर आती है और जड़ता को उखाड़ फेंकती है। शुंभ-निशुंभ का अर्थ है सब पर संशय। खुद पर संशय 'शुंभ' है। कुछ लोग खुद पर संशय करते हैं- 'क्या मैं सही हूं? क्या मुझमें बुद्धिमत्ता है? क्या मैं यह कर सकता हूं?' निशुंभ का अर्थ है अपने आसपास सब पर संशय करना। हमारे भीतर की ऊर्जा ही इन असुरों का अंत कर सकती है।

नवरात्र के नौ दिनों मे तीन-तीन दिन तीन गुणों के प्रतिरूप हैं- तमस, रजस और सत्व। हमारी चेतना तमस और रजस के बीच बहते हुए अंत के तीन दिनों में सत्व गुण में प्रस्फुटित होती है। हम तीनों गुणों को संतुलित करके वातावरण में सत्व की वृद्धि करते हैं।

जब सत्व गुण बढ़ता है तब विजय की प्राप्ति होती है। नवरात्र के अंत में हम विजयादशमी का उत्सव मनाते है। यह दिन जागी हुई दिव्य चेतना में परिणत होने का है। इस दिन अपने आप को धन्य महसूस करें और जीवन में जो कुछ भी मिला है उसके लिए और भी कृतज्ञता महसूस करें।


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