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मायके की खुशहाली को फिर आएंगी नौटी

'न मंत्रं नो यंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो, न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा, न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं, परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणं।' (हे माते! मंत्र, यंत्र, स्तुति, आह्वान, ध्यान और स्तुतिकथा आदि के माध्यम से उपासना कैसे की जाती है, मैं नहीं जानता। मुद्रा तथा विलाप आदि के प्रयोग से तुम्हारा

By Edited By: Published: Tue, 19 Aug 2014 01:15 PM (IST)Updated: Tue, 19 Aug 2014 03:48 PM (IST)
मायके की खुशहाली को फिर आएंगी नौटी

देहरादून, जागरण संवाददाता। 'न मंत्रं नो यंत्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो, न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा, न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं, परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणं।' (हे माते! मंत्र, यंत्र, स्तुति, आह्वान, ध्यान और स्तुतिकथा आदि के माध्यम से उपासना कैसे की जाती है, मैं नहीं जानता। मुद्रा तथा विलाप आदि के प्रयोग से तुम्हारा पूजन कैसे करूं, यह भी मैं नहीं जानता। मां! मैं तो बस इतना ही जानता हूं कि तुम्हारा अनुसरण समस्त क्लेशों का हरण करता है।) ऐसी ही है हम सबकी भगोती नंदा और उसकी जात, जो नंदाधाम नौटी से ईड़ा बधाणी के लिए प्रस्थान कर राजजात वापस फिर रात्रि विश्रम के लिए नौटी लौटती है।

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राजकुंवरों के कुल पुरोहित नौटियालों का गांव है नौटी। राजछंतौली, भगोती नंदा की स्वर्ण प्रतिमा और चौसिंग्या खाडू लेकर जब राजकुंवर कांसुवा से नौटी पहुंचते हैं तो कुल पुरोहित ही उनकी आगवानी करते हैं। राजजात के शुभारंभ से पूर्व नौटी स्थित नंदाचौंरा में देवी नंदा के पौराणिक भूमिगत श्रीयंत्र व पवित्र राजछंतौली की पूजा-अर्चना और स्वर्ण प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसी के बाद भगोती नंदा कैलाश की ओर प्रस्थान करती है। लेकिन, परंपरा के अनुसार नंदा को ईड़ा बधाणी से फिर नौटी वापस लौटना होता है। मान्यता है कि भगोती नंदा अपने मायके की खुशहाली के लिए क्षेत्र की परिक्त्रमा करती है। इसीलिए नंदा उस रास्ते से नौटी नहीं लौटती, जिससे कि वह ईड़ा बधाणी गई थी।

आज राजजात रिठोली, मांडाखाल, जाख, दियारकोट, पांडवमढ़ी, कुकड़ई, पुडियाणी, कनोठ, झड़कंडे व नैंणी गांव में पूजा लेकर रात्रि विश्राम के लिए नौटी लौटेगी। इस दौरान आगंतुकों का स्थानीय लोगों की ओर से भव्य आतिथ्य सत्कार किया जाता है। नौटी की तरफ यात्रा के बढ़ते हुए भी स्थान-स्थान पर लोग सम्मिलित होते रहते हैं। ऐसे में संपूर्ण यात्रा मार्ग स्वागत पथ के रूप में अनुभव किया जा सकता है।

नौटी में राजजात के पहुंचने पर दिव्य दृश्य साकार हो उठता है। नंदा के चौंरा में रातभर जागर गाए जाते हैं और जागृत हो उठते हैं भूमि का भूम्याल, थाती का कुरम, खोली का गणेश, मोरी का नारैण समेत छप्पन कोटि देव। समुद्रतल से 1650 मीटर की ऊंचाई पर अवस्थित नौटी गांव कर्णप्रयाग से 25 किमी की दूरी पर है। 185 परिवारों वाले इस गांव की कुल आबादी 735 है, लेकिन इन दिनों यह हजारों यात्रियों का पड़ाव स्थल बना हुआ है।

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