सावन के प्रत्येक मंगल को करें मंगला गौरी का व्रत एवम् पूजन
जिस प्रकार सावन के सोमवार को शिव पूजा का महत्व है, उसी तरह सावन के प्रत्येक मंगलवार को माता गौरी के व्रत और पूजन का महत्व माना गया है।
सावन में खास
वैसे तो मंगला गौरी का व्रत मंगलवार को ही होता है किंतु सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी की पूजा का महत्व बहुत बढ़ जाता है। ये ठीक उसी प्रकार है जैसे यूं तो हर सोमवार शिव पूजा के लिए अच्छा होता है किंतु सावन माह में किया जाने वाला सोमवार का व्रत अधिक महात्म्य वाला और फलदायी माना जाता है। मंगला गौरी का व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान देने वाला होता है। इस बार श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किए जाने वाले इस व्रत का आरंभ 11 जुलाई से किया जाएगा। कहते हैं कि जिस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने हेतु कठोर तप किया उसी प्रकार स्त्रियां इस व्रत को करके अपने पति की लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
ये है मंगला गौरी व्रत कथा
मंगला गौरी व्रत की कथा इस प्रकार है प्राचीन काल में धर्मपाल नामक का एक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहा होता है। उसे कोई आभाव नहीं था सिवाय इस दुख के कि उसके कोई संतान नहीं थी। उसने बहुत पूजा पाठ और दान पुण्य भी किया। तब प्रसन्न हो भगवान ने उसे एक पुत्र प्रदान किया परंतु ज्योतिषियों के अनुसार पुत्र की आयु अधिक नहीं थी उन्होंने बताया कि सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से मृत्यु का ग्रास बन जाएगा। दुखी सेठ ने इसे भाग्य का दोष मान कर धैर्य रख रख लिया। कुछ समय बाद उसने पुत्र का विवाह एक योग्य संस्कारी कन्या से कर दिया। कन्या की माता सदैव मंगला गौरी के व्रत का पूजन किया करती थी। इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त था जिसके परिणाम स्वरुप सेठ के पुत्र की मृत्यु टल गयी और उसे दीर्घायु प्राप्त हुई।
ऐसे करें मंगलागौरी का पूजन
इस व्रत की पूजा के लिए फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लौंग, जीरा, धनिया आदि सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में लें। साड़ी सहित श्रंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडियां और पांच प्रकार के सूखे मेवे 16 जगह होने चाहिए। सात प्रकार के धान्य होने चाहिए। व्रत का आरंभ करने वाली महिलाओं को श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए। सावन के पहले मंगलवार को प्रातकाल स्नान आदि करके मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लपेट कर, लकडी की चौकी पर स्थापित करें। अब आटे का दीया बना कर इसमें 16-16 तार कि चार बातियां बना कर लगायें। सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन करें और उन पर जल, रोली, मौलि, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढ़ायें। इसके बाद इसी प्रकार कलश का पूजन करें। फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा करें। चढाई गई सभी सामग्री दान कर दी जाती है।
तत्पश्चात करें मंगला गौरी की पूजा
इसके बाद मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगायें। श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजायें। सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला, मेवे, सुपारी, लौंग, मेंहदी और चूडियां चढायें। अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुने या खुद पाठ करें। इसके बाद विवाहित महिलायें अपनी सास और ननद को सोलह लड्डू दें। यही प्रसाद ब्राह्मण को भी दें। इस प्रकार सावन के हर मंगलवार को पूजा और व्रत करें। आखिरी मंगल के दूसरे दिन यानि बुधवार को देवी की प्रतिमा को विर्सिजित करें। इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक करने के बाद इसका उद्यापन कर देना चाहिए।