यह बृहस्पति मंत्र बहुत ही असरदार माना गया है
रवि, मंगल ग्रह की लाल रंग, बुध ग्रह की हरे रंग से, गुरु की पीली रंग, चंद्र, शुक्र की श्वेत रंग, शनि, राहु, केतु की जाप्य काले या नीले रंग की माला से करनी चाहिए |
हर ग्रह विशेष का अलग-अलग रूपों में शुभ प्रभाव सुख-सफलता लाने वाला बताया गया है। धर्म परंपराओं में हर दिन ग्रह विशेष के मंत्रों के स्मरण का महत्व बताया गया है। बृहस्पतिवार को देवगुरु बृहस्पति के विशेष मंत्र ध्यान के शुभ प्रभाव से ज्ञान, बुद्धि, सुख-सौभाग्य, वैभव व मनचाही कामयाबी पाना आसान हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक बृहस्पति ने शिव कृपा से देवगुरु का पद पाया। इसलिए बृहस्पति उपासना शिव को प्रसन्न कर सांसारिक जीवन की कामनाओं जैसे विवाह, संतान, धन आदि को भी सिद्ध करने वाली मानी गई है।
कामनापूर्ति व भाग्य बाधा दूर करने के लिए ही यहां बताया जा रहा बृहस्पति मंत्र बहुत ही असरदार माना गया है। जानिए यह गुरु बृहस्पति मंत्र और पूजा की सरल विधि -
- गुरुवार को स्नान के बाद यथासंभव पीले वस्त्र पहन नवग्रह मंदिर में गुरु बृहस्पति की प्रतिमा को केसर मिले दूध व पवित्र जल से स्नान कराकर, पीला चंदन, पीले फूल या फूल माला, पीला वस्त्र, हल्दी से रंगी पीली जनेऊ, पीले फल, हल्दी, पीला अन्न व पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
- गाय के शुद्ध घी का दीप व धूप बत्ती लगाकर यथासंभव पीले आसन पर बैठकर सुख-सौभाग्य की कामना से नीचे लिखे मंत्र का स्मरण कर देवगुरु की आरती करें। मंत्र स्मरण व पूजा के बाद गुरु ग्रह से संबंधित पीली सामग्रियों जैसे पीली दाल, वस्त्र, गुड़, सोना आदि का यथाशक्ति दान करें -
जीवश्चाङ्गिर-गोत्रतोत्तरमुखो दीर्घोत्तरा संस्थित:
पीतोश्वत्थ-समिद्ध-सिन्धुजनिश्चापो थ मीनाधिप:।
सूर्येन्दु-क्षितिज-प्रियो बुध-सितौ शत्रूसमाश्चापरे
सप्ताङ्कद्विभव: शुभ: सुरुगुरु: कुर्यात् सदा मङ्गलम्।।
गुरु महाग्रह मंत्र
बृहस्पति का स्वरूप: : बृहस्पति देव की चार भुजाएं हैं, तीन भुजाओं में दण्ड, रुद्राक्ष की माला और कमण्डलु तथा चौथी भुजा वरमुद्रा में है। बृहस्पति की प्रतिमा पीले रंग की होनी चाहिए।
विशेष- श्वेत चावलों की वेदी के उत्तर में बृहस्पति देव की स्थापना करनी चाहिए। बृहस्पति के अधिदेव भगवान ब्रह्मा माने जाते हैं। बृहस्पति को दही-भात का नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
बृहस्पति का मंत्र
ऊं नमो अर्हते भगवते श्रीमते वर्धमान तीर्थकराय मातंगयक्ष |
सिद्धायिनीयक्षी सहिताय ऊं आं क्रों ह्रीं ह्र: गुरु महाग्रह मम दुष्टग्रह,
रोग कष्ट निवारणं सर्व शान्तिं च कुरू कुरू फट् |
मध्यम यंत्र- ऊं औं क्रौं ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं गुरु अरिष्ट निवारक ऋषभ अजितसंभवअभिनंदन सुमति सुपार्श्वशीतल श्रेयांसनाथ अष्ट जिनेन्द्रेभ्यो नम: शान्तिं कुरू कुरू स्वाहा |
लघु मंत्र - ऊं ह्रीं णमो उवज्झायाणं |
तान्त्रिक मंत्र- ऊं ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम: |
नोट- रवि, मंगल ग्रह की जाप्य लाल रंग, बुध ग्रह की हरे रंग से, गुरु ग्रह की जाप्य पीली रंग, चंद्र, शुक्र ग्रह की जाप्य श्वेत रंग, शनि, राहु, केतु की जाप्य काले या नीले रंग की माला से करनी चाहिए |