जया पार्वती व्रत पूजन में ध्यान रखें विधि-विधान, मिलेगा अखंड सौभाग्यवती का वरदान
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए विजया पार्वती व्रत या जया पार्वती व्रत किया जाता है।
व्रत का महातम्य
जया पार्वती व्रत का वर्णन भविष्योत्तर पुराण में भी मिलता है। हर वर्ष आषाढ़ मास में शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को ये खास व्रत आता है। इसका नाम है विजया पार्वती व्रत भी है। यह मालवा क्षेत्र का एक प्रचलित व्रत है जो मां पार्वती की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के बारे में भगवान विष्णु ने श्री लक्ष्मी जी को बताया था। यह व्रत मुख्य रूप से महिलाओं के लिए होता है, जिसको करने से स्त्रियां सौभाग्यवती होती हैं। यह उत्तर भारत के हरतालिका या मारवाड़ के गणगौर की तरह का एक व्रत होता है।
व्रत विधि
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन सुबह नहाकर हाथ में जल लेकर जया पार्वती व्रत का संकल्प लें और प्रार्थना करें कि स्वादहीन धान से सिर्फ एक समय भोजन करेंगे ताकि ईश्वर पापों का नष्ट कर सौभाग्य का वर दें। इसके बाद अपनी सार्मथ्य के अनुसार सोने, चांदी या मिट्टी के, बैल पर बैठे शिव-पार्वती की मूर्ति की स्थापना करें। स्थापना किसी पंडित या द्वारा घर अथवा मंदिर कहीं पर भी वेदमंत्रों से करवायें या स्वयं करें।
पूजा विधि
व्रत का संकल्प लेने के बाद सबसे पहले कुंकुम, कस्तूरी, अष्टगंध, शतपत्र व फूल चढ़ाएं। इसके बाद नारियल, दाख, अनार या जो भी मौसम के फल उपलब्ध हों अर्पित करें। अब विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें। माता पार्वती का स्मरण करें व उनकी स्तुति करें। देवी से कहें कि हे प्रथमे। हे देवि। हे शंकर की प्रिया मुझ पर कृपा कर यह पूजन स्वीकार कर मुझे सौभाग्य का वर दें। इसके बाद व्रत से संबंधी कथा ब्राह्मण से सुनें या स्वयं पढ़े। कथा पूरी होने पर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उसके बाद स्वयं नमकरहित भोजन करें। अगले दिन शिवपार्वती की मूर्ति का विर्सजन कर दें। इस प्रकार जया पार्वती व्रत विधि-विधान से करने से माता पार्वती प्रसन्न होती हैं और हर मनोकामना पूरी करने का आर्शिवाद देती हैं।