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आज है जया एकादशी, क्या करें कि मिले मोक्ष

आज है माघ शुक्ल जया एकादशी व्रत। कहते हैं एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति मिलती है। भगवान विष्णु के भक्त एकादशी व्रत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 30 Jan 2015 12:01 PM (IST)Updated: Fri, 30 Jan 2015 12:08 PM (IST)
आज है जया एकादशी, क्या करें कि मिले मोक्ष

आज है माघ शुक्ल जया एकादशी व्रत। कहते हैं एकादशी का व्रत करने से मोक्ष की प्राप्ति मिलती है। भगवान विष्णु के भक्त एकादशी व्रत करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है, वह उस परम धाम में जाता है, जहां साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं ।

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महात्म्य-

जिन्होंने श्रीहरि के व्रत किया है, उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय, देवताओं का पूजन, यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहां भागवत शास्त्र है, भगवान विष्णु के लिए जहां जागरण किया जाता है और जहां शालीग्राम शिला स्थित होती है, वहां साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं ।

विधि-

प्रात: एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें; नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उंगली से कंठ शुद्ध कर लें। वृक्ष से पत्ता तोडऩा भी वर्जित है, अत: स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करे। यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें। फिर पूजा करें,गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें।

हिन्दू पंचाग में प्रत्येक दशमी के बाद एकादशी व्रत करने का विधान है। भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने का यह सबसे सरलतम एवं उत्तम साधन है। पुराणों में 8 वर्ष से लेकर 80 वर्ष तक प्रत्येक जीव के लिए यह व्रत रखना अनिवार्य कहा गया है।

एकादशी के दिन भगवान विष्णु के पूजा करने का विधान है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए प्रत्येक श्रद्धालु अपने तन और मन की शक्ति के अनुसार व्रत करता है जैसे निर्जल-निराहार, फलाहार, अन्न रहित, चावल वर्जित या सात्विक भोजन के साथ आदि। आज जया एकादशी का शुभ दिन है। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से जया एकादशी का वृतांत बताने की प्रार्थना की तो श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को जया एकादशी का महत्व बताते हुए बताया था की इस व्रत के प्रभाव से व्रतधारी ब्रह्म हत्यादि पापों से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

सारा दिन व्रत रखने के उपरांत जागरण करें। रात्रि में व्रत करना संभव न हो तो फलाहार करें। शास्त्रों के अनुसार जो जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।

माघ शुक्ल जया एकादशी व्रत कथा-

धर्मराज युधिष्ठिर बोले - हे भगवन आपने माघ के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यन्त सुंदर वर्णन किया। आप स्वदेज, अंडज, उद्भिज और जरायुज चारों प्रकार के जीवों के उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले हैं। अब आप कृपा करके माघ शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिए। इसका क्या नाम है, इसके व्रत की क्या विधि है और इसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है?

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! इस एकादशी का नाम जया एकादशी है। इसका व्रत करने से मनुष्य ब्रह्महत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है तथा इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुमसे पद्मपुराण में वर्णित इसकी महिमा की एक कथा सुनाता हूं।

देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे। साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे।

पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी। उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया। हे राजन! वह पुष्पवती अत्यन्त सुंदर थी। अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था।

इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया। इंद्र ने कहा हे मूर्खों ! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिक्कार है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो।

इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यन्त दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था। वहां उनको महान दु:ख मिल रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी।

उस जगह अत्यन्त शीत था, इससे उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दाँत बजते रहते। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई। इस पिशाच योनि से तो नर्क के दु:ख सहना ही उत्तम है। अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे।

दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया। केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय महान दु:ख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे। उस रात को अत्यन्त ठंड थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे। उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई।

हे राजन् ! जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई। अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया। उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे। स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुआ और पूछने लगा कि तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ।

माल्यवान बोले कि हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है। अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो।

श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजा युधिष्ठिर ! इस जया एकादशी के व्रत से बुरी योनि छूट जाती है। जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए। जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करते हैं वे अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करते हैं।


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