Move to Jagran APP

होली का त्योहार मस्ती और रंग का पर्व है

माज को एक-दूसरे से जोडे रखने और करीब लाने के लिये होली जैसे पर्व आज समाज की जरूरत बन कर रह गये है

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 11 Mar 2017 03:24 PM (IST)Updated: Sat, 11 Mar 2017 03:30 PM (IST)
होली का त्योहार मस्ती और रंग का पर्व है
होली का त्योहार मस्ती और रंग का पर्व है

 होली का त्योहार प्राकृ्तिक सौन्दर्य का पर्व है। होली का त्योहर प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिम के दिन मनाया जाता है। होली से ठिक एक दिन पहले रात्रि को होलिका दहन होता है। उसके अगले दिन प्रात: से ही लोग रंग खेलना प्रारम्भ कर देते हे होली का त्योहार मस्ती और रंग का पर्व है। यह पर्व बंसत ऋतु से चालीस दिन पहले मनाया जाता है। सामान्य रुप से देखे तो होली समाज से बैर-द्वेष को छोडकर एक दुसरे से मेल मिलाप करने का पर्व है. इस अवसर पर लोग जल में रंग मिलाकर, एक -दूसरे को रंगों से सरोबोर करते है। टेसू के फूलों से युक्त जल में चन्दन, केसर और गुलाब तथा इत्र इत्यादि से बनाये गये प्राकृतिक रंग इस उत्सव की खूबसुरती बढा देते है

loksabha election banner

 पौराणिक समय में श्री कृ्ष्ण और राधा की बरसाने की होली के साथ ही होली के उत्सव की शुरुआत हुई फिर इस होली को मुगलों ने अपने ढंग से खेला मुगल सम्राज्य के समय में होली की तैयारियां कई दिन पहले ही प्रारम्भ हो जाती थी मुगलों के द्वारा होली खेलने के संकेत कई ऎतिहासिक पुस्तकों में मिलते है जिसमें अकबर, हुमायूं, जहांगीर, शाहजहां और बहादुरशाह जफर मुख्य बादशाह थे जिनके समय में होळी खेली जाती थी

अकबर काल में होली के दिन बाकायदा बडे बडे बरतनों में प्राकृ्तिक वस्तुओं का प्रयोग करते हुए, रंग तैयार किये जाते थें रंग के साथ स्वादिष्ट व्यंजनों का भी प्रबन्ध होता था राग-रंग का माहौल होता है तानसेन अपनी आवाज से सभी को मोहित कर देते है कुछ इसी प्रकार का माहौल जहांगीर और बहादुरशाह जफर के समय में होली के दिन होता था ऎसे अवसरों पर आम जनता को भी बादशाह के करीब जाने, उनसे मिलने के अवसर प्राप्त होते थे आज होली के रंग, इसकी धूम केवल भारत तथा उसके प्रदेशों तक ही सीमित नहीं है, अपितु होली का उडता हुआ रंग आज दूसरों देशों तक भी जा पहुंचा है ऎसा लगता है कि हमारी परम्पराओं ने अपनी सीमाओं का विस्तार कर लिया है यह पर्व स्नेह और प्रेम का है
प्राचीन काल में होली खेलने के लिये पिचकारियों का प्रयोग होता था, परन्तु समय का पहिया घूमा ओर समय बदल गया, आज पिचकारियों से होली केवल बच्चे ही खेलते है. प्रत्येक वर्ग होली खेलने के लिये अपने अलग तरह के संसाधनों का प्रयोग करता है, उच्च वर्ग एक और जहां, इत्र, चंदन और उतम स्तर के गुलाल को प्रयोग करता है. वहीं, दुसरा वर्ग पानी, मिट्टी ओर कभी कभी कीचड से भी होली खेल कर होली के त्यौहार को मना लेता है
होली का त्यौहार बाल, युवा, वृ्द्ध, स्त्री- पुरुष, बिना किसी भेद भाव से उंच नीच का विचार किये बिना, एक-दूसरे पर रंग डालते है धूलैण्डी की सुबह, घर पर होली की शुभकामनाएं देने वाली की भीड लग जाती है. होली के दिन जाने - पहचाने चेहरे भी होली के रंगों में छुपकर अनजाने से लगते है होली पर बडों को सम्मान देने के लिये पैरों पर गुलाल लगा कर आशिर्वाद लिया जाता है समान उम्र का होने पर गुलाल माथे पर लगा कर गले से लगा लिया जाता है और जो छोटा हों, तो स्नेह से गुलाल लगा दिया जाता है
होली की विशेषता
भारत के सभी त्यौहारों पर कोई न कोई खास पकवान बनाया जाता है खाने के साथ अपनी खुशियों को मनाने का अपना ही एक अलग मजा है इस दिन विशेष रुप से ठंडाई बनाई जाती है. जिसमें केसर, काजू, बादाम और ढेर सारा दूध मिलाकर इसे बेहद स्वादिष्ट बना दिया जाता है ठंडाई के साथ ही बनती है, खोये की गुजिया और साथ में कांजी इन सभी से होली की शुभकामनाएं देने वाले मेहमानों की आवभगत की जाती है और आपस में बैर-मिटाकर गले से लगा लिया जाता है दुश्मनों को भी दोस्त बनाने वाला यह पर्व कई दोनों तक सबके चेहरों पर अपना रंग छोड जाता है
होली का पर्व सूरज के चढने के साथ ही अपने रंग में आता है होली खेलने वाली की टोलियां नाचती-गाती, ढोल- मृ्दगं बजाती, लोकगीत गाती सभी के घर आती है, ओर हर घर से कुछ जन इस टोली में शामिल हो जाती है, दोपहर तक यह टोली बढती-बढती एक बडे झूंड में बदल जाती है. नाच -गाने के साथ ही होली खेलने आई इन टोलियों पर भांग का नशा भी चढा होता है जो सायंकाल तक सूरज ढलने के बाद ही उतरता है
होली की टोली के लोकगीतों में प्रेम के साथ साथ विरह का भाव भी देखने में आते है
भावनाओं की अभिव्यक्ति
होली भारतीय समाज में लोकजनों की भावनाओं की अभिव्यक्ति का आईना है यहां परिवार को समाज से जोडने के लिये होली जैसे पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। समाज को एक-दूसरे से जोडे रखने और करीब लाने के लिये होली जैसे पर्व आज समाज की जरूरत बन कर रह गये है

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.