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इनकी पूजा बच्चे के जन्म और विवाह में बाधाओं को दूर करते हैं

मंदिर के हर कदम पर हल्दी का छिड़काव है। मंदिर में हर जगह हल्दी के छिड़काव से पूरा मंदिर सुनहरा दिखाई देता है इसे मराठी में सोन्याची जेजुरी कहते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 15 Oct 2016 02:58 PM (IST)Updated: Sat, 15 Oct 2016 04:32 PM (IST)
इनकी पूजा बच्चे के जन्म और विवाह में बाधाओं को दूर करते हैं

पुणे से लगभग 48 किलोमीटर दूर स्थित पुणे जिले में ही पड़ने वाला धार्मिक मगर जेजुरी, अपने खंडोबा मंदिर के लिए पूरे देश में सुप्रसिद्ध है। यह देश के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है। इसे मराठी भाषा में 'खंडोबाची जेजुरी' (खंडोबा की जेजुरी) के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ की शोभा और लोगों की भक्ति भावना इस मंदिर में देखते ही बनती है। चलिए आज हम आपको सुनहरे रंग से चमकते हुए इसी मंदिर की पवित्र यात्रा पर लिए चलते हैं।

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कैसे पहुँचें?

जेजुरी में स्थित खंडोबा मंदिर एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थापित है, जहाँ पहुँचने के लिए करीब दो सौ से अधिक सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। जब आप इस पहाड़ी पर पहुँच जाते हैं तो यहाँ से आपको सम्पूर्ण जेजुरी का मनमोहक दृश्य दिखाई पड़ता है। जेजुरी मुख्यतः अपनी दीपमालाओं के लिए बहुत प्रसिद्ध है जिनका चढ़ाई करते समय मंदिर के प्रांगण से अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है।

मंदिर के देवता

जेजुरी के इस प्रसिद्ध मंदिर के मुख्य देवता खंडोबा देवता हैं जिनके नाम पर इस मंदिर का नाम है। जेजुरी नगर खंडोबा भगवान के लिए ही समर्पित है। इन्हें मार्तण्ड, भैरव और मल्हारी जैसे अन्य नामों से भी पुकारा जाता है, जो भगवान शिव जी के ही अन्य रूप हैं। मंदिर के देवता मराठी में किसी बड़े को सम्मान देते हुए नाम के बाद 'बा', 'राव' या 'राया' लगाया जाता है इसलिए इन्हें खंडोबा, खंडेराया और खंडेराव के नाम से भी पुकारा जाता है।मंदिर के देवता खंडोबा की प्रतिमा एक घोड़े की सवारी करते हुए एक योद्धा के रूप में यहाँ विराजमान है। उनके हाथ में राक्षसों को मारने के लिए एक बड़ी खड्ग है। खंडोबा नाम, इस शस्त्र खड्ग के नाम से ही लिया गया है। कुछ लोग खंडोबा को शिव, भैरव (शिव का क्रूर रूप ), सूर्य देवता और कार्तिकेय, देवताओं के समामेलन के रूप में विश्वास करते हैं।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

खंडोबा का महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई लोक गीतों और साहित्यिक कृतियों में उल्लेख है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार, राक्षसों मल्ला और मणि को भगवान ब्रह्मा से वरदान द्वारा संरक्षण प्राप्त था। इस वरदान के साथ वे अपने आपको अजेय मानने लगे और पृथ्वी पर संतों और लोगों को आतंकित करने लगे। यह सब देख गुस्से में भगवान शिव जी ने मार्तण्ड भैरव के रूप में जिन्हें खंडोबा भी कहते हैं, नंदी की सवारी करते हुए पृथ्वी को बचाने के लिए दोनों राक्षसों को मारने का जिम्मा उठाया। कहा जाता है कि इस उत्तेजना में मार्तण्ड भैरव चमकते हुए सुनहरे सूरज की तरह लग रहे थे, पूरे शरीर पर हल्दी लगा हुआ था जिसकी वजह से उन्हें हरिद्रा भी कहा जाता है।

जब भगवान मार्तण्ड ने दोनों राक्षसों को मर दिया, तब मरने के दौरान मणि ने पश्चाताप के रूप में उन्हें अपना सफ़ेद घोडा प्रदान किया और उनसे वरदान माँगा। वरदान यह था कि वह खंडोबा के हर मंदिर में स्थापित होगा जिससे कि मानव जाति की भलाई हो। खंडोबा ने ख़ुशी ख़ुशी यह वरदान दे दिया।

इसके उलट मल्ला ने वरदान माँगा कि मानव जाति का विनाश हो। जिससे भगवान ने गुस्से में आकर उसका सर धड़ से अलग कर दिया और मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ दिया ताकि मंदिर में प्रवेश करने वाले भक्तों द्वारा वह कुचला जा सके। मंदिर की वास्तुकला पूरा मंदिर मुख्य रूप से पत्थर का निर्मित है। मंदिर को मुख्य रूप से दो भागों में विभाजित किया गया है। पहला भाग मंडप कहलाता है, जहाँ श्रद्धालु एकत्रित होकर पूजा भजन इत्यादि में भाग लेते हैं जबकि दूसरा भाग गर्भगृह है, जहाँ खंडोबा की चित्ताकर्षक प्रतिमा विद्यमान है।

मंदिर के हर कदम पर हल्दी का छिड़काव किया गया है। मंदिर में हर जगह हल्दी के छिड़काव से पूरा मंदिर सुनहरा दिखाई देता है जिसकी वजह से इसे मराठी में सोन्याची जेजुरी कहते हैं।

हेमाड़पंथी शैली में बने इस मंदिर में 10/12 फीट आकार का पीतल से बना कछुआ भी स्थापित है। मंदिर में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई हथियार रखे गए हैं। दशहरे के दिन यहाँ तलवारों को ज़्यादा समय तक उठाने की प्रतिस्पर्द्धा भी प्रसिद्ध है। खंडोबा मंदिर भक्तों के अनुसार माना जाता है कि खंडोबा बच्चे के जन्म और विवाह में बाधाओं को दूर करते हैं। इनकी पूजा सारे रीती रिवाज़ों के साथ पूरी सख्ती से निभाई जाती हैं। मणि दानव की प्रतिमा के समक्ष बकरी की बलि भी दी जाती है।खंडोबा मंदिर हर साल मल्ला और मणि पर उनकी जीत का जश्न मनाने के लिए एक छह दिवसीय मेला भी यहाँ आयोजित किया जाता है। इस मेले को मार्गशीर्ष के हिंदू महीने में मनाते हैं। अंतिम दिन को चंपा षष्टी कहा जाता है और इस दिन भक्तगण भगवान जी के लिए व्रत रखते हैं।

जेजुरी पहुँचें कैसे?

पुणे से जेजुरी लगभग 48 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और सोलापुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर। सड़क यात्रा द्वारा: पुणे से और महाराष्ट्र के कई अन्य प्रमुख शहरों से जेजुरी तक के लिए कई बस सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

रेल यात्रा द्वारा: जेजुरी रेलवे स्टेशन यहाँ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन जहाँ तक के लिए पुणे और महाराष्ट्र के मुख्य शहरों से कई लोकल ट्रेनें चलती हैं।


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