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बैलाडीला की पहाड़ी पर विराजित गणेश की अद्भुत प्रतिमा

राजधानी से 385 किमी दूर दक्षिण बस्तर जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से 24 किमी दूर बैलाडीला की एक पहाड़ी का नाम है ढोलकल।

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 03 Sep 2016 11:52 AM (IST)Updated: Sat, 03 Sep 2016 12:00 PM (IST)
बैलाडीला की पहाड़ी पर विराजित गणेश की अद्भुत प्रतिमा

दंतेवाड़ा। बस्तर जिला मुख्यालय दंतेवाड़ा से 24 किमी दूर बैलाडीला की एक पहाड़ी का नाम है ढोलकल। यह स्थल बचेली वन परिक्षेत्र अंतर्गत ढोलकल शिखर पर दुर्लभ गणेश प्रतिमा फूलगट्टा वन कक्ष अंतर्गत है। समुद्र तल से इस शिखर की ऊंचाई 2994 फीट है। वहीं ढोलकल शिखर के पास स्थित दूसरे शिखर में सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित थी जो 15 वर्षों से गायब है।

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लोक मान्यता

दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा (ढोलकल) की महिला पुजारी से मानते हैं। क्षेत्र में यह कथा प्रचलित है कि भगवान गणेश और परशूराम का युद्ध इसी शिखर पर हुआ था। युद्ध के दौरान भगवान गणेश का एक दांत यहां टूट गया। इस घटना को चिरस्थाई बनाने के लिए छिंदक नागवंशी राजाओं ने शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापति की। चूंकि परशूराम के फरसे से गणेश का दांत टूटा था, इसलिए पहाड़ी की शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखा।

पुरातात्विक महत्व

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ढोलकल शिखर पर स्थापित दुर्लभ गणेश प्रतिमा लगभग 11वीं शताब्दी की है। इसकी स्थापना छिंदक नागवंशी राजाओं ने की थी। यह प्रतिमा पूरी तरह सुरक्षित और ललितासन मुद्रा में है।

दुर्गम पहुंचमार्ग

ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से करीब 18 किलोमीटर दूर फरसपाल जाना पड़ता है। यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है। जामपारा में वाहन खड़ी कर तथा ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है। जामपारा पहाड़ के नीचे है। यहां से करीब तीन घंटे पैदल चलकर तक पहाड़ी पगडंडियों से होकर ऊपर पहुंचना पड़ता है। बारिश के दिनों में पहाड़ी नाला बाधक है। वहीं मच्छरों से भी लोगों को परेशानी होती है।

प्रतिमा को खतरा

बैलाडीला की पहाड़ियों को लौह अयस्क के कारण कई कंपनियों को लीज पर दिया गया है। बैलाडीला की पहाड़ियों का सर्वे करने वाले भूगर्भशास्त्री डॉ. क्रूकसेंक ने अपने सर्वे रिपोर्ट में लिखा है कि बैलाडीला के पहाड़ियों में कई दुर्लभ प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। इसके बावजूद भी बैलाडीला की पहाड़ियों में पुरातात्विक महत्व को नजरअंदाज करते हुए पहाड़ियों को लीज पर दिया गया है। लौह अयस्क की खुदाई प्रारंभ हुई तो ढोलकल जैसे शिखर नष्ट हो जाएंगे। वहीं पुरातात्विक संपदाओं का भी लोप हो जाएगा।


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