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112 साल बाद क्‍यों इस मंदिर का दरवाजा खोला जाएगा

कोणार्क सूर्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। रथ के आकार में बनाया गया यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 11 Jan 2016 02:51 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jan 2016 09:45 AM (IST)
112 साल बाद क्‍यों इस मंदिर का दरवाजा खोला जाएगा

कोणार्क सूर्य मंदिर सूर्य देवता को समर्पित है। रथ के आकार में बनाया गया यह मंदिर भारत की मध्यकालीन वास्तुकला का अनोखा उदाहरण है। इस सूर्य मंदिर का निर्माण राजा नरसिंहदेव ने 13वीं शताब्दी में करवाया था। मंदिर अपने विशिष्ट आकार और शिल्पकला के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। कोणार्क (ओडिशा) सूर्य मंदिर के दरवाजे को 112 साल बाद फिर से खोलने की तैयारी की जा रही है, ताकि लोग इसके भीतर के आर्ट को देख सकें। सूर्य मंदिर को देखने के लिए रोज करीब 10 हजार लोग आते हैं।

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हिन्दू मान्यता के अनुसार सूर्य देवता के रथ में बारह जोड़ी पहिए हैं और रथ को खींचने के लिए उसमें 7 घोड़े जुते हुए हैं। रथ के आकार में बने कोणार्क के इस मंदिर में भी पत्थर के पहिए और घोड़े है। ऐसा शानदार मंदिर विश्व में शायद ही कहीं हो। इसे देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक यहां आते हैं। यहां की सूर्य प्रतिमा पुरी के जगन्नाथ मंदिर में सुरक्षित रखी गई है और अब यहां कोई भी देव मूर्ति नहीं है।

सूर्य मंदिर समय की गति को भी दर्शाता है, जिसे सूर्य देवता नियंत्रित करते हैं। पूर्व दिशा की ओर जुते हुए मंदिर के 7 घोड़े सप्ताह के सातों दिनों के प्रतीक हैं। 12 जोड़ी पहिए दिन के चौबीस घंटे दर्शाते हैं, वहीं इनमें लगी 8 ताड़ियां दिन के आठों प्रहर की प्रतीक स्वरूप है। कुछ लोगों का मानना है कि 12 जोड़ी पहिए साल के बारह महीनों को दर्शाते हैं। पूरे मंदिर में पत्थरों पर कई विषयों और दृश्यों पर मूर्तियां बनाई गई हैं।

कहां है मंदिर- ओडिशा राज्य मे पुरी के निकट कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है।

कैसे पहुंचे- रेल, सड़क या वायु मार्ग से पुरी या भुवनेश्वर पहुंचकर आसानी से सड़क या रेल मार्ग से कोणार्क पहुंचा जा सकता है।

सालों पहले क्यों बंद कर दिया गया था मंदिर...

- कई आक्रमणों और नेचुरल डिजास्टर्स के कारण जब मंदिर खराब होने लगा तो 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह रेत से भर दिया। ताकि ये सलामत रहे और इस पर किसी डिजास्टर का इफेक्ट न पड़े।

- इस काम में तीन साल लगे और 1903 में ये पूरी तरह पैक हो गया।

- वहां जाने वाले को कई बार यह पता नहीं होता है कि मंदिर का अहम हिस्सा जगमोहन मंडप बंद है।

- बाद में आर्कियोलॉजिस्ट्स ने कई मौकों पर इसके अंदर के हिस्से को देखने की जरूरत बताई और रेत निकालने का प्लान बनाने की बात भी कही।

- हाल ही में सीबीआरआई की टीम ने एंडोस्कोपी कर मंदिर के भीतर के फोटो लिए हैं और इसके वीडियो भी बनाए हैं।

- फोटो और वीडियो की स्टडी जारी है। रिपोर्ट की एक कॉपी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के हेडक्वार्टर को भेजी भी जा चुकी है।

मंदिर से कैसे निकाली जाएगी रेत?

- मंदिर दोबारा खोलने की प्रॉसेस का अभी पहला फेज ही पूरा हुआ है।

- एंडोस्कोपी के आधार पर अंदर की दीवारों की स्ट्रेन्थ, इंजीनियरिंग और मंदिर के फाउंडेशन सिस्टम की स्टडी की जा रही है।

- दूसरे फेज में रेत निकालने और तीसरे में 1903 में दरवाजों की जगह बनी दीवारों को हटाने का प्लान है, ताकि इसे पुराना रूप मिल सके।

- अपनी विशिष्ट कलाकृति और इंजीनियरिंग के लिए मशहूर इस मंदिर को पर्यटकों ने अधूरा ही देखा है। इसके लिए एएसआई और सीबीआरआई (सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, रुड़की) की टीम काम रही है।

- एएसआई के डायरेक्टर जनरल डॉ. राकेश तिवारी के मुताबिक टेंपल में एंडोस्कोपी के संकेत अच्छे मिले हैं, लेकिन हम फाइनल रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं। जब टीम हमें रिपोर्ट सौंपेगी तो इसे दो अन्य एक्सपर्ट कमिटी के पास भेजा जाएगा।

- इन दोनों कमिटियों की रिकमेंडेशन के बाद ही रेत को निकालने और दरवाजों को हटाने की प्रक्रिया शुरू होगी। एएसआई के बंगाल और ओडिशा के चीफ अशोक कुमार पटेल के मुताबिक, हम यह भी पता लगा रहे हैं जगमोहन मंडप के भीतर कौन-सा हिस्सा कमजोर है और कौन-सा हिस्सा मजबूत।

- सीबीआरआई के प्रिंसिपल साइंटिस्ट और कोणार्क प्रोजेक्ट के इंचार्ज डॉ. अचल मित्तल के मुताबिक, अंतरिम जांच की एक छोटी रिपोर्ट एएसआई हेडक्वार्टर को सौंप दी गई है। लेकिन ये पूरी रिपोर्ट नहीं है। अगले महीने एएसआई की बैठक है। वहां इस अंतरिम रिपोर्ट पर बात होगी।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने क्या लिखा है मंदिर के बारे में?

- मंदिर के बारे में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है- "कोणार्क, जहां पत्थरों की भाषा मनुष्य से श्रेष्ठ है। भारत के पास ये विश्व की धरोहर है।"

- "अगर आप मंदिर गए हैं, तो आपने देखा होगा कि तीन मंडपों में बंटे इस मंदिर का मुख्य मंडप और नाट्यशाला ध्वस्त हो चुके हैं और अब इसका ढांचा ही शेष है।"

- "बीच का हिस्सा, जिसे जगमोहन मंडप या सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है, इसमें 1901 में चारों तरफ से दीवारें उठवाकर रेत भर दी गई थी।"

लाइट और साउंड शो की भी तैयारी

- सूर्य मंदिर के मुख्य अधिकारी निर्मल कुमार महापात्र के मुताबिक, कोणार्क में रोज करीब 10 हजार लोग आते हैं। सीजन में यह संख्या 25 हजार तक पहुंच जाती है।

- कोणार्क में लाइट और साउंड शो की तैयारी है, जिसके लिए ट्राइकलर इंडिया कंपनी से बातचीत हो चुकी है और काम चल रहा है।


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