भगवान का दिव्य त्रिशूल आज भी यहां मौजूद है इसके दर्शन से कामना पूरी होती है
भगवान का दिव्य त्रिशूल आज भी यहां मौजूद है। कहते हैं जो भक्त इस दिव्य त्रिशूल के दर्शन करता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
माउंट आबू राजस्थान का इकलौता हिल स्टेशन है। यहां गुरु शिखर पर्वत है। यह पर्वत अरावली श्रंखला से संबंधित है। इसी गुरु शिखर पर मौजूद है भगवान दत्तात्रेय की तपस्थली। मान्यता है कि यहां प्रभु दत्तात्रेय ने कई हजार साल पहले तप किया था।
भगवान दत्तात्रेय, त्रिदेव यानी भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार हैं। दत्तात्रेय ईश्वर और गुरु दोनों ही हैं। यही कारण है कि उन्हें गुरुदेवदत्त के नाम से भी संबोधित किया जाता है। यहां वह गुफा मौजूद हैं जहां पर भगवान दत्तात्रेय ने तप किया था। भगवान का दिव्य त्रिशूल आज भी यहां मौजूद है। कहते हैं जो भक्त इस दिव्य त्रिशूल के दर्शन करता है उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
पौराणिक कथाओं में इस तीर्थ स्थल का उल्लेख मिलता है। यह वही स्थान है जहां ऋषि वशिष्ठ रहा करते थे। कहते हैं कि यहीं पर भगवान राम और उनके अनुज लक्ष्मण ने ऋषि वशिष्ठ से दीक्षा ली थी। यह क्षेत्र समुद्रतल से 1206 मीटर यानी 3970 फीट है। यहां हजारों वर्ष पुराना मंदिर भी मौजूद है।
अधर देवी मंदिर
माउंटआबू में ही अर्बुदा देवी यानी अधर देवी का मंदिर है। दरअसल अर्बुदा का अपभ्रंश ही आबू है, जिसके नाम पर माउंटआबू पर पड़ा। अर्बुद पर्वत पर अर्बुदा देवी का मंदिर है जो देश की 52 शक्तिपीठों में छठी शक्तिपीठ है। अर्बुदा देवी देवी दुर्गा के नौ रूपों में से कात्यायनी का रूप है जिनकी पूजा नवरात्र के छठे दिन होती है।
जैन धर्म और गुरु शिखर पर्वत
गुरु शिखर पर्वत पर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी आए थे। इसलिए यह स्थान जैन धर्म के अनुयायियों का भी पवित्र स्थल है। यहां का मुख्य जैन मंदिर दिलवाड़ा मंदिर है। माउंट आबू से 15 किमी दूर गुरु शिखर पर स्थित इन मंदिरों का निर्माण 11वीं और 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था।
यह मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं। दिलवाड़ा के मंदिर और मूर्तियां भारतीय स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। दिलवाड़ा के मंदिरों से 8 किमी उत्तर पूर्व में अचलगढ़ किला व मंदिर और 15 किमी दूर अरावली पर्वत श्रंखला की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर स्थित है।