मनौतियां रखने वाले लोग उपवास रख आस्था पूर्वक अग्निकुंडों में प्रवेश करते हैं
इन उत्सवों में तीनों राज्य के हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्र के मौके पर यहां बड़ी संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाते हैं।
ओम जयंती मंगला काली, भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री, स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
मां दुर्गा के इस महामंत्र में मां भद्रकाली का उल्लेख है। इस देवी का अति प्राचीन मंदिर छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के भद्रकाली नामक स्थान पर मौजूद है। इंद्रावती और गोदावरी नदी के संगम पर स्थित भद्रकाली ग्राम का नामकरण भी इस देवी के नाम पर हुआ है।
जगदलपुर से 234 किलोमीटर और भोपालपटनमसे 20 किमी दूर संगम पर प्रतिष्ठित मां भद्रकाली की प्रतिमा को पुरातत्व विभाग ने बारहवीं शताब्दी का बताया है, लेकिन जनसामान्य इसे तेरहवीं सदी में वारंगल से बस्तर आते समय राजा अन्न्मदेव द्वारा स्थापित मानते हैं। इस स्थल को तीन राज्यों छत्तीसगढ़,महाराष्ट्र और सीमा का मिलन स्थलभी माना जाता है।
आस्था
प्रतिवर्ष वसंत पंचमी के मौके पर यहां तीन दिवसीय वार्षिक मेला लगता है। तीसरे दिन के उत्सव को बोनालू कहा जाता है। इस दिनहल्दी, कुंकुम से सजे तीन घड़े रखे जाते हैं। नीचे के घट में खीर, मध्य में खिचड़ी और ऊपर वाले में सब्जी रखी जाती है।
महिलाएं घड़ों को सिर पर रखकर मंदिर की परिक्रमा करती हैं तथा प्रदक्षिणा के बाद खीर,खिचड़ी और सब्जी दर्शनार्थियों में बांटी जाती है। भद्रकाली में तीन साल के अंतराल में अग्नि प्रज्वलन समारोह भी शैव भक्तों द्वारा किया जाता है।
अग्निकुंडों में समयानुसार अग्नि प्रज्वलित रखी जाती है। मनौतियां रखने वाले लोग उपवास रख आस्था पूर्वक अग्निकुंडों में प्रवेश करते हैं और अंगारों पर चलते हैं। इन उत्सवों में तीनों राज्य के हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्र के मौके पर यहां बड़ी संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किए जाते हैं।