कहा जाता है कि इस शक्तिपीठ में देवी ने साक्षात अपने भक्त को दर्शन दिया था
देवी को स्नान कराते समय धार्मिक मान्यताओं के कारण प्रधान पुरोहित की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है | कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस पर साक्षात मां काली की कृपा थी|
यह शक्तिपीठ कोलकाता में स्थित है। भागीरथी नदी के तटों पर स्थापित यह मंदिर हावड़ा रेलवे स्टेशन से 5 कि.मी की दूरी पर है। मंदिर के भीतर त्रिनयना, रक्तांबरा, मुंडमालिनि और मुक्ताकेशी की चौकियां स्थापित हैं।पूरे बंगाल में इसे बड़ी श्रद्धा की नज़र से देखा जाता है और इसको लेकर कई चमत्कारिक कहानियां कही सुनी जाती हें। कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस पर साक्षात मां काली की कृपा थी।
कोलकाता में आदि गंगा नदी के तट पर स्थित 'कालीघाट काली मंदिर' माँ शक्ति के प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक है। वर्तमान मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है। 15वीं सदी से 18वीं सदी तक की बांग्ला किताबों और सरकारी दस्तावेजों में भी इस काली मंदिर का उल्लेख मिलता है। मध्यकालीन बांग्ला स्थापत्य शैली में निर्मित इस मंदिर के अंदर माता काली की लाल-काली रंग की कास्टिक पत्थर की मूर्ति स्थापित है। माँ काली का मुख काले पत्थरों से निर्मित है। इस प्रतिमा में देवी के तीन नेत्र हैं और उनकी जिह्वा बाहर निकली हुई है। जिह्वा, दांत और हाथ सोने से मढ़े हुए हैं। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी (सन्यासपूर्व नाम जिया गंगोपाध्याय) द्वारा की गयी थी। पुराणों के अनुसार सुदर्शन चक्र से कटने पर जहाँ-जहाँ माता सती के अंग के टुकड़े, धारण किए हुए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आए। ये सभी शक्तिपीठ अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाए। ऐसी मान्यता है कि भगवान् शिव के रूद्र ताण्डव के समय सती के दाएं पैर की चार अंगुलियाँ इसी स्थान पर गिरी थीं। यहाँ की शक्ति 'कालिका' और भैरव 'नकुलेश' हैं। मंदिर में काली के अतिरिक्त माँ शीतला, षष्ठी, और मंगलाचंडी को भी पूजा जाता है। यहाँ पास ही में नकुलेश को समर्पित 'नकुलेश्वर मंदिर' भी स्थित है। माता का शक्तिपीठ होने के कारण माँ काली के भक्तों के मध्य यह मंदिर अत्यधिक लोकप्रिय है। श्रद्धालु दूर-दूर से यहाँ माता के दर्शन करने आते हैं। श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ सिंदूर का चोला दिया जाता है। दुर्गापूजा (नवरात्रि) के दौरान षष्ठी से दशमी तक मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। दुर्गोत्सव में दशमी को शिन्धोर (सिंदूर) खेला में सम्मिलित होने के लिए इस काली मंदिर में दोपहर 2 से शाम 5 बजे तक केवल महिलाएं ही प्रवेश करती हैं।
यह कालिका का मंदिर काली घाट के नाम से भी पहचाना जाता है और पुरे भारत में आस्था का अनुठा केंद्र है | माना जाता है की इस जगह सती माँ के दांये पाँव के चार अंगुलियां यही गिरी थी इसी कारण इसे शक्ति के 51 शक्तिपीठो में माना जाता है | यहा माँ काली की प्रचंड मूरत के दर्शन होते है जो विशालकाय है |काली माँ की लम्बी जीभ जो सोने की बनी हुई है बाहर निकली हुई है और हाथ और दांत भी सोने से ही बने हुए है |
माँ की मूरत का चेहरा श्याम रंग में है और आँखे और सिर सिन्दुरिया रंग में है | सिन्दुरिया रंग में ही माँ काली के तिलक लगा हुआ है और हाथ में एक फांसा भी इसी रंग में रंगा हुआ है | देवी को स्नान कराते समय धार्मिक मान्यताओं के कारण प्रधान पुरोहित की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है |
माँ कालिका के अलावा शीतला, षष्ठी और मंगलाचंडी के भी स्थान है।
माना जाता है की यह मंदिर 1809 के करिब बनाया गया था | इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी (सन्यासपूर्व नाम जिया गंगोपाध्याय) ने की थी। साथ ही यह कोलकाता मेट्रो का एक हिस्सा भी है |
माँ काली अघोरिया क्रियाओ और तंत्र मंत्र की सर्वोपरी देवी के रूप में जानी जाती है और साथ ही यह मंदिर इस देवी का शक्तिपीठ है | इन्ही कारणों से यह अघोर और तान्त्रिक साधना का बहूत बड़ा केंद्र बना हुआ है |
मंदिर की समय तालिका :
मंगलवार और शानिवार के साथ अष्टमी को विशेष पूजा की जाती है और भक्तो की भीड भी बहूत ज्यादा होती है| यह मंदिर सुबह 5 बजे से रात्रि 10:30 तक खुला रहता है | बीच में दोपहर में यह मंदिर 2 से 5 बजे तक बंद कर दिया जाता है | इस अवधि में भोग लगाया जाता है | सुबह 4 बजे मंगला आरती होती है पर भक्तो के लिए मंदिर 5 बजे ही खोला जाता है |
नित्य पूजा : 5:30 am से 7:00 am
भोग राग : 2:30 pm से 3:30 pm
संध्या आरती : 6:30 pm से 7:00 pm