यह होली बस्तर में जलने वाली पहली होली मानी जाती है यहां लोग मिट्टी से होली खेलते हैं
एक व्यक्ति को फूलों से सजा होलीभांठा पहुंचाया जाता है। इसे लाला कहते हैं। राजकुमारी के अपहरण की योजना बनाने वाले आक्रमणकारी को गाली दी जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार लोग प्रहलाद नामक उस विष्णु भक्त की याद में होलिकोत्सव मनाते हैं जिसे आग जला नहीं सकी लेकिन आदिवासी बहुल बस्तर संभाग के दंतेवाड़ा में ऐसी राजकुमारी की याद में होली जलती है जिसने अपनी अस्मिता के लिए आग की लपटों में कूदकर जौहर कर लिया था। यह होली बस्तर में जलने वाली पहली होली मानी जाती है। यहां लोग रंग गुलाल से नहीं बल्कि मिट्टी से होली खेलते हैं।
राजकुमारी के नाम पर सतीशिला
दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी बताते हैं कि राजकुमारी का नाम तो किसी को पता नहीं लेकिन दक्षिण बस्तर में लोक कथा प्रचलित है कि सैकड़ों साल पहले बस्तर की एक राजकुमारी को किसी आक्रमणकारी ने अपह्त करने की कोशिश की थी। इस बात की जानकारी मिलते ही राजकुमारी ने मंदिर के सामने आग प्रज्वलित करवाया और मां दंतेश्वरी का जयकारा लगाते लपटों में समा गई।
इस घटना को चिर स्थायी बनाने के लिए तत्कालीन राजाओं ने राजकुमारी की याद में एक प्रतिमा स्थापित करवाया जिसे लोग सतीशिला कहते हैं। पुरातत्व विभाग के अनुसार दंतेवाड़ा के होलीभाठा में स्थापित प्रतिमा बारहवीं शताब्दी की है। इस प्रतिमा के साथ एक पुरूष की भी प्रतिमा है। लोक मान्यता है कि यह उस राजकुमार की मूर्ति है जिसके साथ राजकुमारी का विवाह होने वाला था।
गुप्त होती है पूजा
दंतेवाड़ा में प्रतिवर्ष फागुन मंडई के नौंवे दिन रात को होलिका दहन के लिए सजाई गई लकड़ियों के बीच दंतेश्वरी मंदिर का पुजारी राजकुमारी के प्रतीक बतौर केले का पौधा रोपकर गुप्त पूजा करता है। होली में आग प्रज्वलित करने के पहले सात परिक्रमा की जाती है। राजकुमारी की याद में होली जलाने के लिए ताड़, पलाश, साल, बेर, चंदन, बांस और कनियारी नामक सात प्रकार के पेड़ों की लकड़ियों का उपयोग किया जाता है। इनमें ताड़ के पत्तों का विशेष महत्व है। होलिका दहन से आठ दिन पहले ताड़ पत्तों को दंतेश्वरी तालाब में धोकर मंदिर परिसर के भैरव मंदिर में रखा जाता है। इस रस्म को ताड़ पलंगा धोनी कहा जाता है।
मट्टी से खेलते हैं होली
आमतौर लोग रंग-गुलाल से होली खेलते हैं लेकिन दंतेवाड़ा क्षेत्र के ग्रामीण राजकुमारी की याद में जलाई गई होली की राख और दंतेश्वरी मंदिर की मिट्टी से रंगोत्सव मनाते हुए माटी की अस्मिता के लिए जौहर करने वाली राजकुमारी को याद करते हैं। वहीं एक व्यक्ति को फूलों से सजा होलीभांठा पहुंचाया जाता है। इसे लाला कहते हैं। दूसरी तरफ राजकुमारी के अपहरण की योजना बनाने वाले आक्रमणकारी को याद कर परंपरानुसार गाली दी जाती है।