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ये हैं गया के प्रमुख पिंडवेदी

पितर को प्रसन्न करने के लिए हम गया में अपने पितरों को पिंड दान करतें हैं। जहां पिंडदान करते हैं वो प्रमुख पिंडवेदी ये हैं- विष्णुपद- गया में महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा काले पत्थरों से निर्मित विष्णुपद मंदिर प्रमुख पिंडवेदी है। यहां गर्भगृह के अष्टकोणीय कुंड में भगवान विष्णु के चरण-चिह्न हैं। उस पर रक्त चंदन से

By Edited By: Published: Tue, 16 Sep 2014 12:32 PM (IST)Updated: Tue, 16 Sep 2014 12:42 PM (IST)
ये हैं गया के प्रमुख पिंडवेदी

गया। पितर को प्रसन्न करने के लिए हम गया में अपने पितरों को पिंड दान करतें हैं। जहां पिंडदान करते हैं वो प्रमुख पिंडवेदी ये हैं-

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विष्णुपद-

गया में महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा काले पत्थरों से निर्मित विष्णुपद मंदिर प्रमुख पिंडवेदी है। यहां गर्भगृह के अष्टकोणीय कुंड में भगवान विष्णु के चरण-चिह्न हैं। उस पर रक्त चंदन से शंख, चक्र, गदा, पद्म आदि अंकित किए जाते हैं। विष्णु के चरण पर पिंडदान की विशेष महत्ता है। पिंड के साथ तुलसी दल भी अर्पित किया जाता है।

अक्षयवट-

मान्यता है कि इस वेदी पर पिंडदान से अक्षय वरदान की प्राप्ति होती है। चारदीवारी से घिरे एक विस्तृत आंगन के बीच में वट वृक्ष है। वृक्ष के तने पर श्रद्धालु धागा बांधते हैं। यहां पर पिंडदान श्राद्ध-कर्म की अंतिम प्रक्रिया है, जहां तीर्थ पुरोहित द्वारा यजमानों को सुफल (आशीर्वाद) देने का विधान है।

सोलह देवी तीर्थ में हमेशा निवास करते पितर

आश्रि्वन शुक्ल अष्टमी मंगलवार 16 सितम्बर को 17 दिवसीय गया श्राद्ध का नवम दिन है। इस तिथि को सोलह वेदी तीर्थ के मतंग पद, क्रौंच पद, इन्द्र पद, अगस्त्य पद एवं कश्यप पद पर श्राद्ध होता है। उक्त सोलह वेदी के सभी पद देवता एवं ऋषि के चरण प्रतीक हैं। देवता हैं- कार्तिकेय, सूर्य, चन्द्र, अग्नि, गणोश एवं इन्द्र तथा ऋषि हैं- दधीचि, कण्व, कश्यप, अगस्त्य एवं मातंग। अग्नि देव के पद (चरण) सबसे अधिक है। इनके हमेशा वहां निवास करने से सोलह वेदी तीर्थ अत्यंत पवित्र माना जाता है। यहां की वेदियों पर श्राद्ध करने से पितर की ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। सोलह वेदियों में कश्यप पद वेदी सर्वश्रेष्ठ है।

भारद्वार ऋषि ने यहां श्राद्ध किया था। इनके पिता प्रत्यक्ष होकर पिंड को ग्रहण किए थे। गौर वर्ण का हाथ तथा श्याम वर्ग का हाथ दोनों हाथों में इन्होंने ंिपडदान किया। गौर वर्ण के पिता के ये औरस पुत्र थे तथा श्याम वर्ण के पिता के ये क्षेत्रज पुत्र थे। क्षेत्रधिकारी श्याम वर्ग के पिता भी ब्रह्मलोक को प्राप्त हुए। सोलह वेदी के उत्तर भाग में स्थित गणकर्ण पद पर दूध से तर्पण किया जाता है। उत्तर भाग में दो वेदियां दर्शन मात्र से पितरों का उद्धार करती है- कनकेश्वर शिवलिंग तथ केदारेश्वर शिवलिंग। विष्णु के अवतार वामन मूर्ति तथा नरसिंह मूर्ति भी समीप में उत्तर भाग में दर्शनीय है। विष्णुपद मंदिर के उत्तरी द्वार पर गजराज मूर्ति भी दर्शनीय है। उक्त दर्शनीय वेदियां 360 वेदियों में परिगणित होती है।

विष्णुपद मंदिर के दक्षिण मंदिर प्रांगण में ही जगन्नाथ माधव, सुभद्रा एवं बलदेव का मंदिर है। उक्त तीनों मूर्तियां दर्शन नमस्कार से पितरों का उद्धार करती है। 360 वेदियों में गयाधाम में ही दर्शनीय 54 वेदियां है। ये वेदियां अभी प्रत्यक्ष हैं।

पढ़ें: विष्णुचरण चिन्ह में वेदियां सन्निहित


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