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अदभुत चमत्‍कारिक है ये मंदिर कोई भी विपदा आने से पहले काला हो जाता है यहां का पानी

ऐसी मान्यता है कि मंदिर के नीचे बहने वाले पवित्र झरने के रंग से घाटी की स्थिति का संकेत मिलता है। कश्मीर में आई कई विपदाओं से पहले इस कुंड के पानी का रंग बदल चुका है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 22 Jul 2016 01:57 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jul 2016 10:37 AM (IST)
अदभुत चमत्‍कारिक है ये मंदिर कोई भी विपदा आने से पहले काला हो जाता है यहां का पानी

आपने कई प्रकार के चमत्कारी मंदिरों के बारे में पढा और सुना होगा। आज आपको एक ऐसे चमत्कारी मंदिर के बारे में बताने जा रहे है। बडी विपदा आने से पहले ही इस मंदिर के कुंड का पानी काला हो जाता है। जी हां, हम बात कर रहे है खीर भवानी देवी के मंदिर की जो जम्मू व कश्मीर के गान्दरबल जिले में तुलमुला गांव में स्थित है।

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तुलमुला गांव में एक पवित्र पानी के चश्मे के ऊपर स्थित मंदिर है जो कश्मीरी पंडितों की आस्था का केंद्र है। यह श्रीनगर से 27 किमी पूर्व में स्थित है। खीर भवानी देवी की पूजा लगभग सभी कश्मीरी हिन्दू और बहुत से ग़ैर-कश्मीरी हिन्दू भी, करते हैं। पारंपरिक रूप से वसंत ऋतू में इन्हें खीर चढ़ाई जाती थी इसलिए इनका नाम ‘खीर भवानी’ पड़ा। इन्हें महारज्ञा देवी भी कहा जाता है।

इस मंदिर में एक षट्कोणीय झरना है जो देवी का प्रतीत है। किवदंती है कि हिंदुओं के देवता राम ने अपने निर्वासन में इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा की जगह के रूप में किया था। निर्वासन की अवधि समाप्त होने के बाद भगवान हनुमान को देवी की मूर्ति को शादिपोरा स्थानान्तरित करने के लिए कहा गया, जहां यह अब भी स्थित है।

इस मंदिर की एक खास बात यह है कि देश में बड़ी विपदा आने से पहले इस मंदिर के कुंड का पानी काला हो जाता है। अधिकतर रंगों का कोई महत्व नहीं होता, परन्तु जल का रंग कल या गहरा होने पर कश्मीर के लिए अशुभ संकेत मन जाता है बहराल जिस वर्ष कुंड का जल शुद्ध एवं साफ़ होता है श्रद्धालुओं का मानना होता है की यह घाटी के लिए शुभ संकेत होता है।

श्रद्धालु मंदिर परिसर में बने पवित्र झरने में दूध एवं खीर अर्पित करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मंदिर के नीचे बहने वाले पवित्र झरने के रंग से घाटी की स्थिति का संकेत मिलता है। कश्मीर में आई कई विपदाओं से पहले इस कुंड के पानी का रंग बदल चुका है।

जब 2014 में कश्मीर में बाढ़ आई थी तब भी आपदा आने से पहले इस मंदिर के कुंड का पानी गहरा काला हो गया था तभी सब पंडित समझ गए थे की कोई बड़ी आपदा आने वाली है। यह मंदिर है कश्मीरी पंडितों की आस्था का केंद्र है। हर साल जून में शुक्ल पक्ष की ज्येष्ठ अष्टमी पर यहां मेला लगता है।

यह पवित्र मंदिर साल भर खुला रहता है, लेकिन जून से लेकर अगस्त तक यहां कुछ ज्यादा ही रौनक रहती है। हर साल देश-विदेश में बसे कश्मीरी पंडित इस मेले में जरूर माता खीर भवानी के दर्शन करने आते हैं। जम्मू कश्मीर घूमने आने वाले सैलानी इस मंदिर में आना नहीं भूलते। कई एकड़ में फैला यह मंदिर आस्था का बड़ा केंद्र है।

खीर भवानी मंदिर श्रीनगर से 27 किलोमीटर दूर तुल्ला मुल्ला गांव में स्थित है। इस मंदिर के चारों ओर चिनार के पेड़ और नदियों की धाराएं हैं, जो यहां की सुंदरता को बढाते हैं। इस मंदिर का नाम इस प्रकार पड़ा कि यहां प्रसाद के रूप में भक्तों द्वारा केवल एक भारतीय मिठाई खीर और दूध ही चढ़ाया जाता है। वास्तविक रूप से 1912 में महाराजा प्रताप सिंह द्वारा हिंदू देवी राग्न्य के सम्मान में बनवाए गए इस मंदिर का पुनर्निर्माण महाराजा हरि सिंग ने किया।

इस मंदिर का एक षट्कोणीय झरना है जो देवी का प्रतीत है। किवदंती है कि हिंदुओं के देवता राम ने अपने निर्वासन में इस मंदिर का इस्तेमाल पूजा की जगह के रूप में किया था। निर्वासन की अवधि समाप्त होने के बाद हिंदू भगवान हनुमान को देवी की मूर्ति को शादिपोरा स्थानान्तरित करने के लिए कहा गया, जहां यह अब भी स्थित है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि खीर, जो सामान्य रूप से सफेद रंग की होती है उसका रंग काला हो जाता है जो अप्रत्याशित विपत्ति का संकेत होता है। मई के महीने में पूर्णिमा के आठवें दिन बड़ी संख्या में भक्त यहां एकत्रित होते हैं। ऐसा विश्वास है कि इस शुभ दिन पर देवी पानी का रंग बदलती है। ज्येष्ठ अष्टम और शुक्ल पक्ष अष्टमी इस मंदिर में मनाये जाने वाले कुछ प्रमुख त्यौहार हैं।


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