Move to Jagran APP

यहां हुई थी शिव-पार्वती की शादी, मान्‍यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिलती है

सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 04 Aug 2016 12:17 PM (IST)Updated: Fri, 05 Aug 2016 10:45 AM (IST)
यहां हुई थी शिव-पार्वती की शादी, मान्‍यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिलती है

ऐसा माना जाता है की शिवरात्रि वह पवित्र दिन है, जिस दिन भगवान शिव ने हिमालय के मंदाकिनी क्षेत्र के त्रियुगीनारायण में माता पार्वती से विवाह किया था। भगवान शिव के विवाह को लेकर कई तरह की कथाएं अलग-अलग धर्म ग्रंथों में प्रचलित हैं। माता पार्वती और भगवान शिव के विवाह का प्रमाण है यहां जलने वाली अग्नि की ज्योति जो त्रेतायुग से निरंतर जल रही है। कहते हैं कि भगवान शिव ने माता पार्वती से इसी ज्योति के सामने विवाह के फेरे लिए थे।

loksabha election banner

हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पर्वतराज हिमावत या हिमावन की पुत्री थी। पार्वती के रूप में सती का पुनर्जन्म हुआ था। माता पार्वती ने कठिन ध्यान और साधना से भगवान शिव का वरण किया था। जिस स्थान पर मां पार्वती ने साधना की उस स्थान को गौरी कुंड कहा जाता है। जो श्रद्धालु त्रियुगीनारायण जाते हैं वे गौरीकुंड के दर्शन भी करते हैं। पौराणिक ग्रंथ बताते हैं कि शिव जी ने गुप्त काशी में माता पार्वती के सामने विवाह प्रस्ताव रखा था।

इसके बाद उन दोनों का विवाह त्रियुगीनारायण गांव में मंदाकिनी सोन आैर गंगा के मिलन स्थल पर संपन्न हुआ। यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था।

विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।

कब और कैसे पहुंचे

केदारनाथ धाम भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ से 19 किमी पहले गंगोतरी, बूढ़ाकेदार सोनप्रयाग के रास्ते के निकट त्रियुगी नारायण मंदिर स्थित है। हर वर्ष केदारनाथ धाम मई से अक्टूबर माह के बीच आम दर्शनार्थियों के लिए खोला जाता है। शेष समय यहां का वातावरण प्रतिकूल रहता है। यहां पहुंचने के लिए हेलिकॉप्टर से भी यात्रा की जा सकती है। इसके अतिरिक्त यहां पहुंचने के लिए बस मार्ग से यात्रा करनी होती है। केदारनाथ धाम दर्शन करने के लिए भारत के किसी भी शहर से ट्रेन द्वारा हरिद्वार या ऋषिकेश पहुंचा जा सकता है। हरिद्वार से केदारनाथ धाम पहुंचने के लिए आवागमन के कई साधन उपलब्ध हैं, जो कि सड़क मार्ग से केदारनाथ धाम पहुंचते हैं।

ऋषिकेश से भी केदारनाथ के लिए कई वाहन उपलब्ध हो सकते हैं। यात्रा कठिन है, अत: हर दर्शनार्थी को स्वास्थ्य संबंधी सावधानियां रखनी चाहिए।

यदि आप हवाई जहाज से केदारनाथ यात्रा करना चाहते हैं तो आपको देहरादून तक हवाई सुविधा मिल सकती है। देहरादून से करीब 240 किमी यात्रा सड़क मार्ग से तय करने के बाद केदारनाथ धाम पहुंचा जा सकता है।

केदारनाथ धाम और प्रमुख स्थानों के बीच की दूरी

दिल्ली और केदारनाथ धाम के बीच की दूरी करीब 460 किमी है।

ऋषिकेश से केदारनाथ धाम के बीच की दूरी लगभग 225 किमी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.