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इस विष्णु मंदिर में रामायण के 15 दृश्यो का कलात्मक अंकन देखने को मिलता है

जांजगीर का विष्णु मंदिर अति प्राचीन मंदिरों में से एक हैइस मंदिर की स्थापना हैय वंश के राजाओं ने करवाया था। यह जांजगीर के पुरानी बस्ती के पास भीमा तालाब के निकट स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12 शताब्दी में किया गया था। पहले

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 29 May 2015 11:39 AM (IST)Updated: Fri, 29 May 2015 12:12 PM (IST)
इस विष्णु मंदिर में रामायण के 15 दृश्यो का कलात्मक अंकन देखने को मिलता है

जांजगीर का विष्णु मंदिर अति प्राचीन मंदिरों में से एक है इस मंदिर की स्थापना हैय वंश के राजाओं ने करवाया था। यह जांजगीर के पुरानी बस्ती के पास भीमा तालाब के निकट स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 12 शताब्दी में किया गया था। पहले इसे दो भागों में बनाया गया था, लेकिन दोनों भागों का निर्माण एक ही समय में पूरा नहीं हुआ था। आज के समय में भी यह अधूरा ही पड़ा है। मंदिर में देवी-देवताओं की अत्यंत सुंदर प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। साथ ही आप यहां अवतार भी देख सकते हैं, जिसे गांधर्व और किन्नेर के नाम से जाना जाता है। स्थानीय लोगों में यह मंदिर नकाता मंदिर के नाम से चर्चित है।

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छत्तीसगढ़ के इस दक्षिण कोशल क्षेत्र में कल्चुरी नरेश जाज्वल्य देव प्रथम ने भीमा तालाब के किनारे 12 वीं शताब्दी में एक मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर भारतीय स्थापत्य का अनुपम उदाहरण है। मंदिर पूर्वाभिमुखी है, तथा सप्तरथ योजना से बना हुआ है। मंदिर में शिखर हीन विमान मात्र है। गर्भगृह के दोनो ओर दो कलात्मक स्तंभ है जिन्हे देखकर यह आभास होता है कि पुराने समय में मंदिर के सामने महामंडप निर्मित था। परन्तु कालांतर में नहीं रहा। मंदिर का निर्माण एक ऊँची जगती पर हुआ है।

मंदिर के पृष्ठ भाग में सूर्य देव विराजमान हैं। मूर्ति का एक हाथ भग्न है लेकिन रथ और उसमें जुते सात घोड़े स्पष्ट हैं। यहीं नीचे की ओर कृष्ण कथा से सम्बंधित एक रोचक अंकन मंदिर के है, जिसमें वासुदेव कृष्ण को दोनों हाथों से सिर के ऊपर उठाए गतिमान दिखाये गये हैं। इसी प्रकार की अनेक मूर्तियाँ नीचे की दीवारों में खचित हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि किसी समय में बिजली गिरने से मंदिर ध्वस्त हो गया था जिससे मूर्तियां बिखर गयी। उन मूर्तियों को मंदिर की मरम्मत करते समय दीवारों पर जड़ दिया गया। मंदिर के चारो ओर अन्य कलात्मक मूर्तियों का भी अंकन है जिनमे से मुख्य रूप से भगवान विष्णु के दशावतारो में से वामन, नरसिह, कृष्ण और राम की प्रतिमाएँ है। छत्तीसगढ के किसी भी मंदिर मे रामायण से सम्बंधित इतने दृश्य कहीं नही मिलते जितने इस विष्णु मंदिर में हैं। यहाँ रामायण के 10 से 15 दृश्यो का भव्य एवं कलात्मक अंकन देखने को मिलता है। इतनी सजावट के बावजूद मंदिर के गर्भगृह में कोई मूर्ति नहीं है। यह मंदिर सूना है और एक दीप के लिये तरस रहा है।

किंवदंती

इस मंदिर के निर्माण से संबंधित अनेक जनुश्रुतियाँ प्रचलित हैं। एक दंतकथा के अनुसार एक निश्चित समयावधि (कुछ लोग इस छैमासी रात कहते हैं) में शिवरीनारायण मंदिर और जांजगीर के इस मंदिर के निर्माण में प्रतियोगिता थी। भगवान नारायण ने घोषणा की थी कि जो मंदिर पहले पूरा होगा, वे उसी में प्रविष्ट होंगे। शिवरीनारायण का मंदिर पहले पूरा हो गया और भगवान नारायण उसमें प्रविष्ट हुए। जांजगीर का यह मंदिर सदा के लिए अधूरा छूट गया। एक अन्य दंत कथा के अनुसार इस मंदिर निर्माण की प्रतियोगिता में पाली के शिव मंदिर को भी सम्मिलित बताया गया है। इस कथा में पास में स्थित शिव मंदिर को इसका शीर्ष भाग बताया गया है। एक अन्य दंतकथा जो महाबली भीम से जुड़ी है, भी प्रचलित है। कहा जाता है कि मंदिर से लगे भीमा तालाब को भीम ने पांच बार फावड़ा चलाकर खोदा था। किंवदंती के अनुसार भीम को मंदिर का शिल्पी बताया गया है। इसके अनुसार एक बार भीम और विश्वकर्मा में एक रात में मंदिर बनाने की प्रतियोगिता हुई। तब भीम ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया। मंदिर निर्माण के दौरान जब भीम की छेनी-हथौड़ी नीचे गिर जाती तब उसका हाथी उसे वापस लाकर देता था। लेकिन एक बार भीम की छेनी पास के तालाब में चली गयी, जिसे हाथी वापस नहीं ला सका और सवेरा हो गया। भीम को प्रतियोगिता हारने का बहुत दुख हुआ और गुस्से में आकर उसने हाथी के दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार मंदिर अधूरा रह गया। आज भी मंदिर परिसर में भीम और हाथी की खंडित प्रतिमा है।


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