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यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है यहां मां सती के नयन गिरे थे

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का नैनीताल शहर। यह शहर यूं तो अपनी प्राकृतिक छटा के कारण दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन यहां की प्रसिद्ध की एक और वजह है। और वो है यहां स्थित मां नैना देवी का मंदिर।

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 08 Oct 2015 02:47 PM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2015 12:01 PM (IST)
यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है यहां मां सती के नयन गिरे थे

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले का नैनीताल शहर। यह शहर यूं तो अपनी प्राकृतिक छटा के कारण दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन यहां की प्रसिद्ध की एक और वजह है। और वो है यहां स्थित मां नैना देवी का मंदिर।

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यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहां मां सती के नयन गिरे थे। सन् 1880 में भूस्खलन से यह मंदिर नष्ट हो गया था। बाद में इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाया गया। नैनीताल में, नैनी झील के उत्त्तरी किनारे पर नैना देवी मंदिर स्थित है। नैनी झील के बारें में माना जाता है कि जब शिव सती की मृत देह को लेकर कैलाश पर्वत जा रहे थे, तब जहां-जहां उनके शरीर के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों की स्थापना हुई।

मंदिर की भौगोलिक रूपरेखा

नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। नैना देवी हिंदूओं के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। यह स्थान राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1 से जुड़ा हुआ है। इस स्थान तक पर्यटक अपने निजी वाहनों से भी जा सकते हैं। नैना देवी मंदिर समुद्र तल से 11000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

नैना देवी मंदिर के गर्भ ग्रह में मुख्य तीन मूर्तियां है। दाई तरफ माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाई ओर भगवान गणेश की प्रतिमा है। पास ही में पवित्र जल का तालाब है जो मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है।

इस मंदिर के निर्माण तथा उत्पत्ति के विषय में कई दन्त कथाएं प्रचलित हैं परंतु यह कथा प्रमाणिक समझी जाती है। इस पहाड़ी के समीप के इलाकों में कुछ गुजरों की आबादी रहती थी। उसमें नैना नाम का गूजर देवी का परम भक्त था। वह अपनी गाय भैंस पशुओं को चराने के लिए शिवलिंग पहाड़ी पर आया करता था। इस पर जो पीपल का वृक्ष अब भी विराजमान है उसके नीचे आ कर नैना गूजर की एक अनब्याही गाय खड़ी हो जाती थी और उसके स्तनों से अपने आप दूध की धारा प्रवाहित होने लगती।

यहां ऐसे बना मंदिर

एक किंवदंती के अनुसार नैना गुजर नाम की एक व्यक्ति था। उसने यह दृश्य कई बार देखा था कि एक गाय के थनों में वहां स्थित पीपल के पेड़ के नीचे आते ही दूध आ जाता है। एक दिन उसने वहां पड़े सूखे पेड़ के पत्तों को हटाना आरंभ कर दिया। पत्तों को हटाने के उपरांत उसमें दबी हुई पिण्डी के रूप में मां भगवती की प्रतिमा दिखाई दीं।

नैना गुजर ने जिस दिन पिण्डी के दर्शन किए उसी रात को माता ने स्वप्न में उसे दर्शन दिए और कहा कि, 'मैं आदि शक्ति दूर्गा हूं, तू इस पीपल पेड़ के नीचे मेरा स्थान बनवा दे। मैं तेरे ही नाम से प्रसिद्ध हो जाऊंगी।'

नैना मां भगवती का परम भक्त था। उसने सुबह उठकर माता के मंदिर की नींव रख दी। जल्द ही माता की महिमा चारों तरफ फैलने लग पड़ी। भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होने लगी। देवी के भक्तों ने मां का सुंदर और विशाल मंदिर बनवा दिया और तीर्थ नैना देवी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। मंदिर के समीप ही एक गुफा है, जिसे नैना देवी की गुफा कहते हैं।


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