कंठी वाली माता का मंदिर: दुखी लोगों की मदद करती हैं
फरुखनगर से झज्जर की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर कंठीवाली माता का मंदिर है। इसका अपने आप में अनोखा इतिहास है। मान्यता है कि मां ने गांव के एक व्यक्ति के सपने में आकर कहा था कि वह समाज के दुखी लोगों की मदद करने के लिए आई हैं।
फरुखनगर से झज्जर की ओर जाने वाले मुख्य मार्ग पर कंठीवाली माता का मंदिर है। इसका अपने आप में अनोखा इतिहास है। मान्यता है कि मां ने गांव के एक व्यक्ति के सपने में आकर कहा था कि वह समाज के दुखी लोगों की मदद करने के लिए आई हैं। उसका एक मंदिर बनवाना होगा। हमारे जिस पूर्वज ने माता के दर्शन किए थे, उसने सुबह उठकर यह कहानी अपने परिवार वालों को बताई। इस पर सभी ने खुशी जताई और माता मंदिर की अधारशिला रखी दी। वैसे तो श्रद्धालु माता की प्रतिमाह पूजा अर्चना करते है, लेकिन नवरात्रों में श्रद्धालुओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है। तीज पर्व पर मेले और कुश्ती दंगल का आयोजन किया जाता है।
कैसे पहुंचे मंदिर
माता मंदिर पुलिस थाने से करीब पांच सौ गज की दूरी पर उत्तर दिशा में है।
रेल से आने वाले श्रृद्धालु फरुखनगर रेलवे स्टेशन पर उतर कर थ्रीव्हीलर से माता मंदिर पहुंच सकते हैं। झज्जर और गुडग़ांव की ओर से आने वालों के लिए सीधा रास्ता है। वह बाई रोड़ अपने निजी वाहन से भी पहुंच सकते हैं। स्थानीय श्रद्धालु बिना किसी वाहन की मदद से माता के दर्शन करने के लिए आते हैं।
तैयारी-
नवरात्रों के करीब आते ही मंदिर की तैयारी जोरों पर शुरु कर दी जाती है। मौसम के बदले तेवर को ध्यान में रखकर पेयजल का विशेष प्रबंध किया जाता है। हारे थके श्रद्धालुओं के विश्राम के लिए हरे भरे वृक्षों की छांव में दरी गद्दे आदि बिछाए जाते हैं।
इनके बोल-
'माता मंदिर पर एक व्यक्ति चौबीस घंटे मौजूद होता है। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा का विशेष ध्यान रखा जाता है। नवरात्रों में बुद्धो माता से दर्शन करने के बाद अधिकांश श्रृद्धालु कंठी माता के दर्शन करके परिवार की खुशहाली के लिए मन्नत मांगने आते हैं। श्रीचंद भगत- माता मंदिर के पुजारी।
''तीज पर्व पर लगने वाले कुश्ती दंगल में आसपास के राज्यों से खिलाड़ी भाग लेने आते हैं। विजेता खिलाडिय़ों मेला कमेटी की ओर से पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है। मेले में शांति बनाए रखने के लिए समाज सेवी और पुलिस की व्यवस्था की जाती है।
दयाराम- श्रद्धालु।